Pages

Saturday, June 25, 2011

बरगद का दर्द

उदास है बरगद
अपने साये में छाये 
सन्नाटे से.

खोगयी हैं 
किलकारियां
छाया में खेलते 
बच्चों की,
गुम हो गये हैं
नौजवान,
जो करते थे चर्चा
अपने प्रेम की
उसकी छाया में.

आज बैठे हैं मौन
कुछ चेहरे
अपनी झुर्रियों में 
कितने दर्द की परतें चढाये,
ताकते उस सड़क को
जिससे अब कोई नहीं आता,
क्योंकि
युवा और बच्चे
खो गये हैं दूर
कंक्रीट के जंगल में
और भूल गये हैं रस्ता
बरगद तक वापिस आने का.

46 comments:

  1. bilkul sach likha hai .....gaaon ki bargad ki chanv ,chaupal sab kuch khota ja raha hai

    ReplyDelete
  2. आजकल बरगद का दर्द सुनता ही कौन है?
    --
    रचना बहुत अच्छी लिखी है आपने!

    ReplyDelete
  3. बरगद के माध्यम से बहुत गहरी बात कह दी।

    ReplyDelete
  4. प्रतीकों ,प्रतिमानों व आश्रयदानों का मजबूत हमसफ़र आज सूना अकेला जरुर है ,फिर भी लिखने का अकथनीय सबब जरुर बन गया है .....बहुत ही आकर्षक ,मार्मिक वर्णन ... नमन आपको ,लेखनी को ......

    ReplyDelete
  5. वास्तविक रचना..
    इस छद्म विकास और उपभोगतावाद की कुछ कीमत चुकानी पड़ेगी हमे आप को और शयद बरगद को भी..

    ReplyDelete
  6. बरगद की विशाल छाँव हो या एसी की शीतल हवा?

    ReplyDelete
  7. यह भी बदलाब से आहत है सुंदर रचना, बधाई.....

    ReplyDelete
  8. बरगद के माध्यम से बुजुर्गों के मन की टीस लिख दी है ..सुन्दर अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  9. बरगद की टीस बहुत ही मार्मिक वर्णन ,सुन्दर अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  10. ओह!! बहुत भावपूर्ण....सुन्दर!

    ReplyDelete
  11. बचपन में गाँव के बरगद के नीचे दुपहरी में खेलने जाया करते थे..यादें ताज़ा हो गयीं..बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति सर..

    ReplyDelete
  12. बरगद को जीवन का प्रभावी प्रतीक बना दिया है आपने ....... सादर!

    ReplyDelete
  13. बरगद का प्रतीक लेकर आज कि परिवेश को और उसकी उपयोगिता को बहुत मजबूती से प्रस्तुत किया है कविता में. आभार.

    ReplyDelete
  14. Bilkul sach likha hai. badhiya prastuti

    ReplyDelete
  15. आदरणीय कैलाश जी,
    जब मैंने आपकी इस कविता को पढ़ा तो मेरे होश फाकता हो गये...
    अरे ये तो मेरी एक कथा का काव्य-रूपांतरण है.
    जो अभी तक अप्रकाशित है.
    जिसमें एक वृक्ष की पीड़ा है ... उसके पास बच्चे अब नहीं आते...न ही उसपर चढ़ते हैं और न ही डालियों पर लटकते हैं, झूला डालकर झूलते हैं... हाय! अब उनको न जाने कौन ऐसा मिल गया है जो उन्हें व्यस्त रखता है... एक पक्षी कह रहा था "अब बच्चे घरों में ही खेलते हैं... कम्यूटर और टीवी से ही मन बहलाते हैं. उनकी मम्मियाँ उन्हें बाहर जाने को नहीं कहतीं. वे गंदे हो जायेंगे ना ! इसलिये"
    ........ आपकी कविता ने मुझे फिर से बचपन के समय में भेज दिया. आभार.
    सच... बड़ा सुख होता है बाल-स्मृतियों का.

    ReplyDelete
  16. वैसे भी बरगद एक परिवार का प्रतीक है और परिवार में आज का युवा कहाँ रहना चाहता है?

    ReplyDelete
  17. aadarniy sir
    vilamb se aane ke liye xhama chahti hun.
    aapki rachna nisaneh bahut hi marmik aur samyik hai jise aapne bade hi pratikatmakta ka prayog karke bahut hi bahatreen treeke se prastutt kiya hai .
    bahut bahut badhai
    sadar naman
    poonam

    ReplyDelete
  18. बहुत अच्छा लिखा है सर!

    सादर

    ReplyDelete
  19. बहुत खरी बात कह दी आपने। काश, इसे लोग महसूस कर पाते।

    ---------
    विलुप्‍त हो जाएगा इंसान?
    ब्‍लॉग-मैन हैं पाबला जी...

    ReplyDelete
  20. आज बैठे हैं मौन
    कुछ चेहरे
    अपनी झुर्रियों में
    कितने दर्द की परतें चढाये,
    ताकते उस सड़क को
    जिससे अब कोई नहीं आता,
    क्योंकि
    युवा और बच्चे
    खो गये हैं दूर
    कंक्रीट के जंगल में
    और भूल गये हैं रस्ता
    बरगद तक वापिस आने का.
    बच्चों के दूर जाने का दर्द बरगद के दर्द जैसा ही है कभी इसी बरगद से गाँव की रोनक का अन्दाजा लगाया जाता था अज ये दर्द का एहसास करवाता है। बहुत अच्छी रचना। खास कर ये आखिरी पँक्तियाँ।

    ReplyDelete
  21. गुम-सुम सा आज, गांव का बरगद अपना |

    पीपल पेड़ का बाकी निशान नहीं प्यारे ||

    ReplyDelete
  22. बरगद के मध्यम से कितना कुछ कह दिया ... ज़माने का कडुवा सच ... लाजवाब ...

    ReplyDelete
  23. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (27-6-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

    ReplyDelete
  24. युवा और बच्चे
    खो गये हैं दूर
    कंक्रीट के जंगल में
    और भूल गये हैं रस्ता
    बरगद तक वापिस आने का.

    बहुत ही भावुक रचना..... हार्दिक बधाई।

    ReplyDelete
  25. बरगदऋ संस्कार और संस्कृति का प्रतीक,
    इस बरगद की ओर अब कोई झांकता भी नहीं।
    शर्मा जी, इस रचना में एक सभ्यता की पीड़ा समाई हुई है।
    इस श्रेष्ठ कविता के लिए आभार।

    ReplyDelete
  26. ओह्ह....बहुत सुन्दर...दर्द उभर कर आया है...

    ReplyDelete
  27. bargad ko prateek roop me lena bahut hi sateek prayog raha. aajkal ke buzurgo ke akelepan ka dard bahut bariki se ukera hai.

    ReplyDelete
  28. वाकई हम लोग अकेले से रह गए हैं ...सब चले गए उन ऊंचे जंगलों में आनंद खोजने !
    शुभकामनायें आपको !

    ReplyDelete
  29. बरगद एक पेड़ नहीं परंपरा है. बरगद एक पेड़ नहीं पूरी संग्कृति है. इसका सूना हो जाना अपने पतन के शुरूआत होने का संकेत है. सोचनीय और कारण खोजने के लिए पूरी ऊर्जा के साथ झकझोरती काय वाणी. क्या हम सम्वेद्स्नशील रह गए हैं जो सुने इस दर्द को/ बाते इसके एहसास और अंतर्मन की पीड़ा को? देखना है इस बत ब्रिक्ष जिस्न्र पता नहीं कितनों का रराण किया है बच्पाब से बुढापे तद, क्या आज हम उसका ऋण चुकायेंगे याकन्नी काट जायेंगे? एहसान फरामोश और कृतघ्न कहलायेंगे? हम तो ठहरे मानव, धरती की सर्वोत्क्रिस्ट . रचना इस तुच्छ वृक्ष के बहकावे में क्यों आयेंगे? फिर भी है आशा, एक प्रत्याशा जो आगे बढकर आएगा, फर्ज अपना निभाएगा. ऐसे ही लोग होते हैं जो कहलाते हैं साधु और फ़कीर, कुछ उन्हें असभ्य और भिखारी भी कह देते हैं, लेकिन वे यह नहीं देखते पूरे साम्राज्य को त्याग कर फ़कीर चाँद बना है. उसके पास है पूँजी सामर्थ्य पूरी जगत की सुनने और सेवा करने के लिए.

    बधाई बहुत बधाई इस प्यारी किन्तु सम्वेदन्शीएल रचना के लिए. बहुत पसंत आयी यह कविता....जो प्रकृति और संस्कृति से प्रति उपेक्षा को रेखान्तित करती है, कुछ करने को प्रेरित करती है.

    ReplyDelete
  30. बहुत सुन्दरता से आपने बरगद के दर्द को शब्दों में पिरोया है! शानदार रचना!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

    ReplyDelete
  31. बेहद भावमय करती शब्‍द रचना ।

    ReplyDelete
  32. बरगद के माध्यम से बहुत अच्छा सन्देश देती पोस्ट........शानदार|

    ReplyDelete
  33. इस भाव पूर्ण रचना के लिए नमन करता हूँ आपकी लेखनी को....मेरी ह्रदय से बधाई स्वीकारें...

    नीरज

    ReplyDelete
  34. आप भी मेरी तरह पर्यावरण-प्रेमी लगते हैं.
    बरगद पर बेहतरीन रचना.

    ReplyDelete
  35. अपनत्व भरा बरगद खो गया है कंक्रीट के परायेपन के जंगल में उदास झुर्री दार चेहरे ताकते हैं उस राह को जो कहीं दूर खो गयी है...बहुत सुन्दर संवेदनशील रचना...कोटि कोटि शुभकामनाएं....

    ReplyDelete
  36. बहुत मार्मिक रचना, बरगद के बहाने आज के बदलते हुए हालात पर गहरा दुःख झलकता है आपकी कविता में..

    ReplyDelete
  37. शर्मा जी!
    प्रणाम!
    वटवृक्ष हमारी परम्परा का, हमारी संस्कृति का, हमारी दार्शनिक विचारधाराओं का प्रतीक है। सबको आत्मसात् करने वाला, सबका संरक्ष करने वाला, सबका सहयोगी है यह। इसकी शाखायें हमारे क्षैतिज दर्शनधारा को व्यक्त करती हैं। जिस प्रकार इसकी शाखायें एक साथ इस विशाल वृक्ष को अपने ऊपर टिकाये रहती हैं, उसी प्रकार हमारी सनातन संस्कृति को, हमारे बौद्धिक परम्परा को चार्वाक से लेकर अद्वैत वेदान्त तक विभिन्न दर्शनधारायें साथ-साथ मिलकर वाद-विवाद से परस्पर सहयोग करके टिकाये हुए हैं, जीवब्न्त बनाये हुए हैं उसके प्रवह को।

    आज परिस्थितियाँ बदल गयी हैं। भले ही युवा पीढ़ी समय से कदम मिलाअकर चलने की होड़ में बरगद को भुला दे, उसकी शीतल छांव को भुला दे। परन्तु बरगद के दिन फिर बहुरेगें।
    आज भी एक थके हुए पथिक के लिये बरगद वैसे ही सुखदायक और आत्मीय है, जैसे पहले था।


    कंक्रीट के जम्गलों ने बरगद को दूर गाँव तक ही सीमित कर दियाअ है......हा‘ं उसकी जगह घरों में बोनसाई अवश्य सज गयी है।

    बहुत ही मार्मिक कविता है।
    आपने अपने अनुभव को बहुत मर्मस्पर्शी शब्द दिये हैं , जिससे कविता सीधे हृदय तक जाती है।

    ReplyDelete
  38. बुजुर्गों के साये से दूर भागती युवावस्था शहर के किसी अपार्टमेन्ट में 2-BHK या 3-BHK की छत को ही अपने सिर पर छाया समझ बैठी है जहाँ न तो जमीं अपनी है न ही छत .बरगद की पीड़ा भला कौन समझे ?

    ReplyDelete
  39. barag ke bahane jivan-darshan diya hai aapane. badhai, sarthak kavita k liye.

    ReplyDelete
  40. बच्चों को बरगद तक ले जाने की ज़िम्मेदारी हमारी ही है|

    ReplyDelete
  41. बरगद के माध्यम से कड़वा सच बयाँ कर दिया है...

    ReplyDelete
  42. बरगद को लेकर जिस ओर आपने इशारा करने की कोशिश की है, मुझे लगता है कि उसे सभी ने समझा है। दरअसल युवाओं को लगता है कि बरगद की जड़ें बहुत मजबूत हैं,लिहाजा वो पानी देने से भी भागते हैं।

    युवा और बच्चे
    खो गये हैं दूर
    कंक्रीट के जंगल में
    और भूल गये हैं रस्ता
    बरगद तक वापिस आने का.

    बहुत सुंदर रचना है

    ReplyDelete
  43. बरगद का दर्द समझा तो किसी ने ....
    बेहतरीन !

    ReplyDelete