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Saturday, November 03, 2012

आख़िरी लहर


सागर की लहरें
आती हैं किनारे
देती हैं शीतलता
भिगोकर पैरों को 
कुछ पल को,
लेकिन जब लौटती हैं 
ले जाती हैं कुछ रेत
पैरों के नीचे से
और लगता है खालीपन
पैरों के नीचे.

खिसक रही है 
ज़िंदगी की रेत
धीरे धीरे हर पल
और महसूस होता है 
खालीपन जीवन में
वक़्त की हर लहर के 
जाने के बाद.

बस इंतज़ार है 
उस आख़िरी लहर का
जो बहा ले जाये 
रेत के आख़िरी कण 
और फ़िर न बचे 
कुछ बहने को
लहरों के साथ 
पैरों के नीचे से.

कैलाश शर्मा 

50 comments:

  1. जीवन की हकीक़त ब्यान करती ओजस्वी चिंतन......सुंदर अभिव्यक्ति ,सर ,सादर वन्दे !

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    1. बस इंतज़ार है
      उस आख़िरी लहर का
      जो बहा ले जाये
      रेत के आख़िरी कण
      और फ़िर न बचे
      कुछ बहने को
      लहरों के साथ
      पैरों के नीचे से.............

      namaskaar kailash ji
      bahut hi jeevant rachna likhi hai aapne , jeevan ki sacchai , kaash aisa hi ho pata aur sab kuch bah jane ke baad phir kuch na jaata .....sundar prastuti

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  2. खिसकी रही है,,,,,, (खिसक )
    ज़िंदगी की रेत
    धीरे धीरे हर पल
    और महसूस होता है
    खालीपन जीवन में
    वक़्त की हर लहर के
    जाने के बाद.,,,,,

    भावनात्मक खूबशूरत प्रस्तुति,,,
    RECENT POST : समय की पुकार है,

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  3. आखिरी लहर मुक्ति की ... कोई चिंता,कोई उम्मीद न रहे जकड़े ...
    यही तो प्राप्य और कर्तव्यों की इति है ...

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  4. पैरों के नीचे से कुछ खिसकने का भय न हो ..
    तो फिर जीवन आसान ही हो जाए ..

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  5. गजब की भावपूर्ण अभिव्यक्ति

    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत हैं। धन्यवाद !!
    my recent post -

    घर कहीं गुम हो गया

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  6. निःशब्द हो गया हूँ सर कितनी गहराई से इतनी गहरी बात लिखी है, आपको प्रणाम।

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  7. गहन भाव लिए उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति

    सादर

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  8. जिंदगी का खिसकना ही तो ...जीवन है ना एक अजीब से खालीपन के साथ

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  9. deepest feelings, bahut khoobबस इंतज़ार है
    उस आख़िरी लहर का
    जो बहा ले जाये
    रेत के आख़िरी कण
    और फ़िर न बचे
    कुछ बहने को
    लहरों के साथ
    पैरों के नीचे से.

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  10. गहरी अभिव्यक्ति..... मन का खालीपन यूँ ही कचोटता है

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  11. बस इंतज़ार है
    उस आख़िरी लहर का
    जो बहा ले जाये
    रेत के आख़िरी कण
    और फ़िर न बचे
    कुछ बहने को
    लहरों के साथ
    पैरों के नीचे से.

    इंतज़ार क्यूँ करना ,जब आयेगा ,तब आयेगा

    अभी तो बहुत रचनी है नित नयी - नयी रचना ..... :)

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  12. इस गहराई में बस डूबते ही जाना है..

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  13. अंतिम बेला की दस्तक पर आप ही अपने द्वार खोलें ,मन के खालीपन को समेटे शानदार रचना आभार ,

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  14. रेत का आख़िरी कण
    खिसकना ही है
    लहरों के साथ
    पैरों के नीचे से
    फिर क्यों ना
    डूबने से पहले
    तूफानों से लड़ें
    लहरों से खेलें
    गहन अभिव्यक्ति...शुभकामनायें...

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  15. गहन भाव लिए उत्कृष्ट रचना...
    :-)

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  16. बस उस एक लहर का ही तो कबसे इन्तजार है ...
    पर ना जाने क्यों बची रहती है रेत थोड़ी-सी,
    हर बार पैरों के नीचे...

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  17. बस उस एक लहर का ही तो इन्तजार है ... गहरी अभिव्यक्ति...आभार

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  18. सारगर्भित रचना

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  19. अत्यंत भावपूर्ण और गहन अभिव्यक्ति !

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  20. क्षणवाद पर बेहद सशक्त रचना .

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  21. बहुत गहरी रचना. वही आखिरी लहर जो हमे भी रेत बना दे. पुनः रेत के साथ आये हम एक बार फिर से लहरों पर.

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  22. पैरों के नीचे से खिसकती रेत जैसे जीवन गुजर जाता है . समय अपने साथ क्या कुछ नहीं बहा ले जाता !

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  23. गहन अभिव्यक्ति...लहरें रेत को ले जाती हैं और वापस भी लाती हैं.

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  24. dil ke kashmkash ko shabdon me piroya hai badi khubsurti se ....

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  25. गहन अभिव्यक्ति .. ज़िन्दगी के इस पड़ाव पे वाकई कितना कुछ दीखता है इन लहरों में ..
    सुन्दर।
    सादर
    मधुरेश

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  26. लहरें, रेत के कण, समय और जीवन, प्रतीकों में जीवन-दर्शन को तलाशती एक अच्छी कविता।

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  27. तकते हैं,
    लहरें आती हैं, जाती हैं।

    लखते हैं,
    कुछ लाती, कुछ ले जाती हैं।

    हम भी इनके संग बह जायें,
    जब समय शेष न रहे यहां,
    इनकी गतियों सा बने रहें,
    है शेष समय जो मिला यहाँ।

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  28. निशब्द कर दिया …………सार्थक जीवन चिन्तन

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  29. रोजमर्रा के अनुभवों से जीवन दर्शन को जोड़ना बहुत सुखद लगा. बधाई.

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  30. यही तो है जीवन की सच्चाई न जाने लहरों को गिनते गिनते कब वक़्त निकल जाता है और इन्तजार रहती है उस अंतिम लहर की अंतिम बिंदु की बहुत गंभीर भावपूर्ण रचना बहुत बधाई आपको

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  31. रेत सी फिसलती हुई जिंदगी, इसकी वास्तविक हकीकत तो यही है।

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  32. कल 05/11/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  33. खिसक रही है
    ज़िंदगी की रेत
    धीरे धीरे हर पल
    और महसूस होता है
    खालीपन जीवन में
    वक़्त की हर लहर के
    जाने के बाद.......और फ़िर न बचे
    कुछ बहने को
    लहरों के साथ
    पैरों के नीचे से.....और फ़िर न बचे
    कुछ बहने को
    लहरों के साथ
    पैरों के नीचे से.




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  34. सुंदर रचना !
    लहरों को इस तरह महसूस हमने भी अक्सर किया है...~ लगता है, जैसे वो अपनी बेचैनी बाँटने आतीं हैं...मगर हमसे हमारी ही बेचैनी बाँटकर मायूस हो वापस लौट जातीं हैं... :) :(
    ~सादर

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  35. खिसक रही है
    ज़िंदगी की रेत
    धीरे धीरे हर पल
    और महसूस होता है
    खालीपन जीवन में
    वक़्त की हर लहर के
    जाने के बाद.

    बहुत ही सुन्दर |

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  36. कैलाश जी जिंदगी की सच्छाई बायाँ करती उम्दा रचना के लिए बधाई स्वीकार करें ।

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  37. भाव पूर्ण रचना... कभी आना... http://www.kuldeepkikavita.blogspot.com आप का स्वागत है।

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  38. और महसूस होता है
    खालीपन जीवन में
    वक़्त की हर लहर के
    जाने के बाद.

    bahut hi sundar rachana Kailas ji abhar,

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  39. रेत घड़ी के पात्र सा पल छिन रीत रहा है जीवन .

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  40. APNAA POORAA PRABHAV MAN PAR CHHODTEE HAI AAPKEE KAVITA .
    BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA .

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  41. ye zamee chaand se behtar nazar aati hai hamein...

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  42. बहुत सुंदर जीवन दर्शन कराती रचना..उस अंतिम लहर का स्वागत करने को जो तैयार है वही उनका रहस्य भी जानता है..

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  43. गहरी अभिव्यक्ति सन्देश देती हुई बढ़िया रचना!

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