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Sunday, October 28, 2012

श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद (३७वीं कड़ी)


           नौवां अध्याय 
(राजविद्याराजगुह्य-योग-९.२३-२८

श्रद्धायुक्त भक्त जो अर्जुन
अन्य देव का अर्चन करते.
विधियुक्त नहीं है ये पूजन  
पर वे मेरा ही पूजन करते.  (९.२३)

मैं ही सब यज्ञों का भोक्ता 
मैं ही हूँ स्वामी भी उस का.
मेरा यथार्थ वे नहीं जानते,
जिससे लगता फेरा जग का.  (९.२४)

देवभक्त देव लोक में जाते,
पितृवत हैं पितरों को पाते.
जीवलोक जीवों के पूजक,
मेरे पूजक मुझको हैं पाते.  (९.२५)

पत्र पुष्प, फल व जल को
भक्तिपूर्व जो अर्पित करता.
प्रेम पूर्वक उस अर्पण को 
हर्षित हो स्वीकार में करता.  (९.२६)

तू जो करता कर्म है कुछ भी
जो कुछ खाता है तू अर्जुन.
यज्ञ, दान व तप अपने को
करो मुझे ही तुम सब अर्पण.  (९.२७)

शुभ और अशुभ फलों के दाता
मुक्त कर्म बंधन से होगे.
सन्यासयोग से चित्त लगाकर,
होकर मुक्त मुझे पाओगे.  (९.२८)

                  .......क्रमशः

कैलाश शर्मा 

21 comments:

  1. बस समझना है इस रहस्य को

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  2. बहुत सार्थक प्रस्तुति .आभार

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  3. आदरणीय सर ,सादर नमस्कार !
    भागवत का सार समझना व् उसे अपने कर्मो में ढालना मनुष्य का परम कर्तव्य होना चाहिए ,इस संदर्भ में आपका लेखन व् सृष्टी कलयाण की भावना सराहनीय है ! सादर बधाई !

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  4. चित्त युक्त हो बस मुझमें ही ।

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  5. हर रूप मे वो है समाया
    ये तो बस मन की है माया

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  6. पत्र पुष्प, फल व जल को
    भक्तिपूर्व जो अर्पित करता.
    प्रेम पूर्वक उस अर्पण को
    हर्षित हो स्वीकार में करता.

    बहुत सुन्दर भाव सरणी ,भावानुवाद गंगा .

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  7. तेरी महिमा अपार ,तेरे रुप अनेक..

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  8. सरल भाषा शैली में प्रभु की महिमा का वर्णन किया है आपने .आभार

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  9. वाह!
    आपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 29-10-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1047 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ

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  10. पावन दृष्टांत ||
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति |
    आभार आदरणीय ||

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  11. पावन महिमा के लिये आभार।

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  12. शुभ और अशुभ फलों के दाता
    मुक्त कर्म बंधन से होगे.
    bahut badhiya...

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  13. देवभक्त देव लोक में जाते,
    पितृवत हैं पितरों को पाते.
    जीवलोक जीवों के पूजक,
    मेरे पूजक मुझको हैं पाते.
    बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति

    सादर

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  14. तू जो करता कर्म है कुछ भी
    जो कुछ खाता है तू अर्जुन.
    यज्ञ, दान व तप अपने को
    करो मुझे ही तुम सब अर्पण

    गीता का अनुपम ज्ञान..आभार !

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  15. सुन्दर ..सार्थक प्रस्तुति

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  16. गीता का अनुपम भावानुवाद,,,,,,,

    RECENT POST LINK...: खता,,,

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  17. गीता ज्ञान के लिए आभार कैलाश जी |
    आशा

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  18. बहुत बातें आपके इस अनुवाद के द्वारा समझ में आ रही है..आभार..

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  19. बहुत सुन्दर सार्थक प्रस्तुति के लिये आभार!

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  20. saral, sarthak avam sarahniy prastuti

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  21. हमेशा की तरह सुन्दर

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