मेरी प्रकाशित पुस्तक 'श्रीमद्भगवद्गीता (भाव पद्यानुवाद)' के कुछ अंश:
ग्यारहवाँ अध्याय
(विश्वरूपदर्शन-योग-११.२६-३४)
सब धृतराष्ट्र पुत्र व राजा
भीष्म द्रोण कर्ण परमेश्वर!
साथ हमारे पक्ष के योद्धा
करते प्रवेश आप मुख अंदर.
विकराल आपके मुख में
शीघ्र दौड़ प्रवेश कर रहे.
कुछ दांतों के बीच फंसे हैं
कुछ के सिर हैं चूर हो रहे. (11.26-27)
वेगवती नदियों की धारा
जैसे होतीं प्रविष्ट सागर में.
वैसे ही मृत्युलोक के योद्धा
होते प्रविष्ट आपके मुख में. (11.28)
जैसे जलती हुई आग पर
मरने हेतु पतंगे आते.
वैसे ही स्वविनाश के हेतु
सर्वलोक हैं मुख में जाते. (११.२९)
अपने जलते हुए मुखों से
सब लोकों को निगल रहे हैं.
अपनी तेज प्रभा से विष्णु
सर्व जगत को जला रहे हैं. (११.३०)
कौन आप रौद्र रूप वाले हैं?
हे देव श्रेष्ठ!प्रणाम में करता.
क्या है प्रयोजन इस चेष्टा का
आदि पुरुष मैं नहीं जानता. (११.३१)
श्री भगवान
महा काल लोक नाशक हूँ
लोक संहार प्रवृत्त हुआ मैं.
बिना तुम्हारे भी न बचेंगे
सम्मुख खड़े सभी योद्धायें. (११.३२)
शत्रु जीतकर राज्य को भोगो
उठो, युद्ध कर यश को पाओ.
मार चुका हूँ मैं इन सब को,
तुम निमित्तमात्र बन जाओ. (११.३३)
स्वयं मार चुका मैं पहले ही
द्रोण, भीष्म, कर्ण वीरों को.
जीत युद्ध तुम निश्चय लोगे
डरो न,तुम मारो अब इनको. (11.34)
..........क्रमशः
पुस्तक को ऑनलाइन ऑर्डर करने के लिए इन लिंक्स का प्रयोग कर सकते हैं :
1) http://www.ebay.in/itm/Shrimadbhagavadgita-Bhav-Padyanuvaad-Kailash-Sharma-/390520652966
2) http://www.infibeam.com/Books/shrimadbhagavadgita-bhav-padyanuvaad-hindi-kailash-sharma/9789381394311.html
कैलाश शर्मा
ग्यारहवाँ अध्याय
(विश्वरूपदर्शन-योग-११.२६-३४)
सब धृतराष्ट्र पुत्र व राजा
भीष्म द्रोण कर्ण परमेश्वर!
साथ हमारे पक्ष के योद्धा
करते प्रवेश आप मुख अंदर.
विकराल आपके मुख में
शीघ्र दौड़ प्रवेश कर रहे.
कुछ दांतों के बीच फंसे हैं
कुछ के सिर हैं चूर हो रहे. (11.26-27)
वेगवती नदियों की धारा
जैसे होतीं प्रविष्ट सागर में.
वैसे ही मृत्युलोक के योद्धा
होते प्रविष्ट आपके मुख में. (11.28)
जैसे जलती हुई आग पर
मरने हेतु पतंगे आते.
वैसे ही स्वविनाश के हेतु
सर्वलोक हैं मुख में जाते. (११.२९)
अपने जलते हुए मुखों से
सब लोकों को निगल रहे हैं.
अपनी तेज प्रभा से विष्णु
सर्व जगत को जला रहे हैं. (११.३०)
कौन आप रौद्र रूप वाले हैं?
हे देव श्रेष्ठ!प्रणाम में करता.
क्या है प्रयोजन इस चेष्टा का
आदि पुरुष मैं नहीं जानता. (११.३१)
श्री भगवान
महा काल लोक नाशक हूँ
लोक संहार प्रवृत्त हुआ मैं.
बिना तुम्हारे भी न बचेंगे
सम्मुख खड़े सभी योद्धायें. (११.३२)
शत्रु जीतकर राज्य को भोगो
उठो, युद्ध कर यश को पाओ.
मार चुका हूँ मैं इन सब को,
तुम निमित्तमात्र बन जाओ. (११.३३)
स्वयं मार चुका मैं पहले ही
द्रोण, भीष्म, कर्ण वीरों को.
जीत युद्ध तुम निश्चय लोगे
डरो न,तुम मारो अब इनको. (11.34)
..........क्रमशः
पुस्तक को ऑनलाइन ऑर्डर करने के लिए इन लिंक्स का प्रयोग कर सकते हैं :
1) http://www.ebay.in/itm/Shrimadbhagavadgita-Bhav-Padyanuvaad-Kailash-Sharma-/390520652966
2) http://www.infibeam.com/Books/shrimadbhagavadgita-bhav-padyanuvaad-hindi-kailash-sharma/9789381394311.html
कैलाश शर्मा
v nc sr
ReplyDeleteश्रीमद्भगवद्गीता का बहुत ही सुंदर ,,,,(भाव पद्यानुवाद),,,आभार,कैलाश जी,
ReplyDeleteRecent post: रंग,
श्रीमद्भगवद्गीता का बहुत ही सुन्दर भाव में प्रस्तुत कर रहे हैं,आभार.
ReplyDeleteसम्मुख खड़े सभी योद्धायें. ........योद्धायें के स्थान पर योद्धा कर लें। सुन्दर।
ReplyDeleteइस उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिये आभार
ReplyDeleteसादर
बहुत ही सुंदर.
ReplyDeleteबेहद उम्दा अनुवाद किया है आपने
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल गुरूवार (07-03-2013) के “कम्प्यूटर आज बीमार हो गया” (चर्चा मंच-1176) पर भी होगी!
सूचनार्थ.. सादर!
आभार...
Deletesaral shabdo me sundar prastuti..
ReplyDeleteशत्रु जीतकर राज्य को भोगो
ReplyDeleteउठो, युद्ध कर यश को पाओ.
ये इतना प्राणवान है कि हम सब को जीवन-युद्ध में जीतना सिखाता है.
वाह . बहुत सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार
ReplyDeleteस्वयं मार चुका मैं पहले ही
ReplyDeleteद्रोण, भीष्म, कर्ण वीरों को.
जीत युद्ध तुम निश्चय लोगे
डरो न,तुम मारो अब इनको....
कृष्ण के मुख से ये वचन इसलिए हम पढ़ पा रहे हैं क्योंकि आपने इन्हें आसान भाषा में सबको उपलब्ध करा दिया ... बहुत बहुत आभार ...
विराट स्वरूप का विराट वर्णन।
ReplyDeleteअति उतम बेहतरीन वर्णन....शुभकामनायें
ReplyDeleteवेगवती नदियों की धारा
ReplyDeleteजैसे होतीं प्रविष्ट सागर में.
वैसे ही मृत्युलोक के योद्धा
होते प्रविष्ट आपके मुख में.
सुन्दर अनुवाद
उत्कृष्ट ...भाव और अनुवाद ....
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