सिरहाने खड़े ख्वाब
करते रहे इंतज़ार
आँखों में नींद का,
पर न विस्मृत हुईं यादें
और न थमे आंसू,
इंतज़ार में थके ख़्वाब
बह गये अश्क़ों के साथ
छोड़ नयन तन्हा.
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सूखने
लगीं पंखुडियां
बिखरने
लगे अहसास
थक
गए पाँव,
तरसती
है हथेली
पाने
को एक छुवन
तुम्हारे
हाथों की,
चुभने
लगा है गुलाब
हथेली
में काँटों की तरह
एक
तेरे इंतजार में.
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बहुत कोशिश की अंतस
ने
ढूँढने को सुकून
अपने अन्दर हर कोने
में,
पर पसरा पाया
एक गहन सूनापन
अंधी गली की तरह.
जब न हो कोई चाह
या मंज़िल का उत्साह,
एक एक क़दम लगता भारी,
कितना कठिन होता
चलना सुनसान राहों
पर
अनजान मंजिल की ओर.
.....कैलाश शर्मा