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Tuesday, October 15, 2013

श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद (५७वीं कड़ी)

                                    मेरी प्रकाशित पुस्तक 'श्रीमद्भगवद्गीता (भाव पद्यानुवाद)' के कुछ अंश: 
               

       चौदहवां  अध्याय 
(गुणत्रयविभाग-योग-१४.२१-२७)

अर्जुन 

उनके क्या लक्षण हैं भगवन 
जो त्रिगुणों से ऊपर उठ जाता.
कैसा है व्यवहार वह करता 
कैसे त्रिगुणों के पार है जाता.  (१४.२१)

श्री भगवान

ज्ञान, कर्म, मोह होने पर 
वह उनसे है द्वेष न करता.
होने पर निवृत्त है उनसे 
नहीं कामना उनकी करता.  (१४.२२)

साक्षी रूप से स्थिर होकर 
नहीं गुणों से विचलित होता.
केवल गुण ही कर्म कर रहे
ऐसा समझ न विचलित होता.  (१४.२३)

सुख दुःख में समान है रहता, 
लोहा, मिट्टी, सोना सम होता.
सम निंदा स्तुति प्रिय अप्रिय, 
बुद्धिमान गुणातीत वह होता.  (१४.२४)

मान अपमान बराबर जिसको,
सम व्यवहार मित्र शत्रु से होता.
करता परित्याग सभी कर्मों का
त्रिगुणों से ऊपर वह जन होता.  (१४.२५)

अनन्य भाव से जो मुझको 
पूर्ण भक्ति योग से भजता.
इन त्रिगुणों से परे है होकर 
ब्रह्मभाव का पात्र है बनता.  (१४.२६)

मैं ही अनश्वर ब्रह्म में स्थित
शाश्वत धर्म और अमृत भी.
अर्जुन मुझमें ही आश्रय समझो 
एकांतिक अखंड सुख का भी.  (१४.२७)

                .....क्रमशः

**चौदहवां अध्याय समाप्त**

...कैलाश शर्मा 

16 comments:

  1. अनन्‍य भाव एकांतिक अखण्‍ड सुख।

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  2. 'श्रीमद्भगवद्गीता का बेहतरीन भाव पद्यानुवाद...!

    RECENT POST : - एक जबाब माँगा था.

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  3. बहुत सुंदर पद्यानुवाद.
    नई पोस्ट : रावण जलता नहीं

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  4. अनुपम अनुवाद ! उत्कृष्ट प्रस्तुति !

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  5. अनुपम अतुलनीय अतिसुन्दर

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!

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  7. बहुत सुंदर प्रस्तुति !

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  8. सहज, सरल, अनुपम ज्ञान … अति सुन्दर

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  9. Trigunon se oopar uthne vale prabhu ke kareeb ho jate hain ...
    Saral bhasha mein geeta ka sandesh jan jan tak pahuncha rahe hain aap ... Naman hai mera ...

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  10. सहज, सरल, अनुपम ज्ञान कैलाश जी, मझे अत्यंत ख़ुशी है। कि आप जैसा गुनी विद्वान शख्स मेरे संपर्क में है।

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  11. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!

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  12. मैं ही अनश्वर ब्रह्म में स्थित
    शाश्वत धर्म और अमृत भी.
    अर्जुन मुझमें ही आश्रय समझो
    एकांतिक अखंड सुख का भी.

    सुन्दरम मनोहरम भावसार भाव शांति पैदा करता है।

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  13. सुख दुखे समे कृत्वा
    सुन्दर अनुवाद।

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  14. साक्षी रूप से स्थिर होकर
    नहीं गुणों से विचलित होता.
    केवल गुण ही कर्म कर रहे
    ऐसा समझ न विचलित होता.

    तीन गुणों की सुंदर व्याख्या !

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  15. is sundar gyanvardhak post ke liye abhaar

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