मेरी प्रकाशित पुस्तक 'श्रीमद्भगवद्गीता (भाव पद्यानुवाद)' के कुछ अंश:
अठारहवाँ अध्याय
(मोक्षसन्यास-योग-१८.६१-६९)
समस्त प्राणियों के ह्रदय में
परमेश्वर निवास है करता.
कठपुतलियों के सूत्रधार सा
माया से वह उन्हें नचाता. (१८.६१)
हे अर्जुन! यदि सर्व भाव से
शरण में ईश्वर की जाओगे.
निश्चय ही उसके प्रसाद से
परम शान्ति, मोक्ष पाओगे. (१८.६२)
मैंने गुह्य से भी गुह्यतर
ज्ञान तुम्हें बतलाया अर्जुन.
अच्छी तरह विचार ज्ञान को
करो तुम्हारा कहता जो मन. (१८.६३)
अत्यंत रहस्यपूर्ण वचनों को
मैं फिर तुमसे सुनने को कहता.
क्योंकि परमप्रिय तुम मुझको
मैं तुमसे हित की बात हूँ कहता. (१८.६४)
हो कर एकाग्र भक्त हो मेरे
करो प्रणाम व अर्चन मेरा.
प्राप्त करोगे तुम मुझको ही
सत्य वचन तुमको यह मेरा. (१८.६५)
सभी कर्म त्याग के अर्जुन
केवल मेरी शरण में आओ.
सब पापों से मुक्त करूँगा
नहीं कोई तुम शोक मनाओ. (१८.६६)
यह गुह्यतम ज्ञान न देना
जो तप भक्ति न करता हो.
सेवा भाव न जिसके अन्दर,
जो मुझसे ईर्ष्या करता हो. (१८.६७)
जो इस परम गुह्यज्ञान को
मेरे भक्तों को बतलायेगा.
परमभक्ति मुझमें जो रखता
वह मुझको निश्चय पायेगा. (१८.६८)
उससे प्रिय मेरे कर्मों का कर्ता
नहीं है मनुजों में और दूसरा.
और भविष्य में भी पृथ्वी पर
न होगा मेरा प्रिय और दूसरा. (१८.६९)
.....क्रमशः
....कैलाश शर्मा