Friday, August 22, 2014

श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद (१८वां अध्याय)

                                  मेरी प्रकाशित पुस्तक 'श्रीमद्भगवद्गीता (भाव पद्यानुवाद)' के कुछ अंश: 

      अठारहवाँ अध्याय 
(मोक्षसन्यास-योग-१८.६१-६९

समस्त प्राणियों के ह्रदय में
परमेश्वर निवास है करता.
कठपुतलियों के सूत्रधार सा
माया से वह उन्हें नचाता.  (१८.६१)

हे अर्जुन! यदि सर्व भाव से
शरण में ईश्वर की जाओगे.
निश्चय ही उसके प्रसाद से
परम शान्ति, मोक्ष पाओगे.  (१८.६२)

मैंने गुह्य से भी गुह्यतर 
ज्ञान तुम्हें बतलाया अर्जुन.
अच्छी तरह विचार ज्ञान को 
करो तुम्हारा कहता जो मन.  (१८.६३)

अत्यंत रहस्यपूर्ण वचनों को
मैं फिर तुमसे सुनने को कहता.
क्योंकि परमप्रिय तुम मुझको 
मैं तुमसे हित की बात हूँ कहता.  (१८.६४)

हो कर एकाग्र भक्त हो मेरे 
करो प्रणाम व अर्चन मेरा. 
प्राप्त करोगे तुम मुझको ही
सत्य वचन तुमको यह मेरा.  (१८.६५)

सभी कर्म त्याग के अर्जुन
केवल मेरी शरण में आओ.
सब पापों से मुक्त करूँगा
नहीं कोई तुम शोक मनाओ.  (१८.६६)

यह गुह्यतम ज्ञान न देना 
जो तप भक्ति न करता हो.
सेवा भाव न जिसके अन्दर,
जो मुझसे ईर्ष्या करता हो.  (१८.६७)

जो इस परम गुह्यज्ञान को
मेरे भक्तों को बतलायेगा.
परमभक्ति मुझमें जो रखता          
वह मुझको निश्चय पायेगा.  (१८.६८)

उससे प्रिय मेरे कर्मों का कर्ता
नहीं है मनुजों में और दूसरा.
और भविष्य में भी पृथ्वी पर 
न होगा मेरा प्रिय और दूसरा.  (१८.६९)

               .....क्रमशः

....कैलाश शर्मा 

Sunday, August 17, 2014

मत मौन रहो अब मनमोहन

                 **श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें**

मत मौन रहो अब मनमोहन, वरना पाषाण कहाओगे।
क्या भूल गये वादा अपना, तुम दुष्ट दलन को आओगे।

है लाज नारियों की लुटती,
तुम मौन खड़े क्यों देख रहे?
क्या सुनते सिर्फ़ द्रौ
पदी की,
क्या औरों से रिश्ते नहीं रहे?

द्वापर में एक दुशासन था, बस्ती बस्ती में अब घूम रहे,
नित दिन है चीर हरण होता, क्या आँख मूँद सो पाओगे।

क्या झूठ कहा तुमने माधव,
जब भी अधर्म होगा जग में।
स्थापना धर्म की हेतु पुनः,   
मैं आऊँगा तब तब जग में।

जब नहीं सुरक्षित बच्ची भी, फ़िर क्या अधर्म अब बाकी है,
क्या है अधर्म का मापदंड, क्या दुनिया को बतलाओगे।

जब सत्य खड़ा चौराहे पर,
सिंहासन पर बैठा असत्य।
जन कैसे यह विश्वास करे,
पाता सदैव ही विजय सत्य।

जन जन है त्रसित पुकार रहा, कैसे है चुप तुम रह सकते,
विश्वास भक्त का भंग हुआ, रणछोर पुनः कहलाओगे।


....कैलाश शर्मा 

Saturday, August 02, 2014

आवाज़ मौन की

जीवन के अकेलेपन में     
और भी गहन हो जाती
संवेदनशीलता,
होता कभी अहसास
घर के सूनेपन में
किसी के साथ होने का,
शायद होता हो अस्तित्व
सूनेपन का भी.
     ***
शायद हुई आहट           
दस्तक सुनी दरवाज़े पर
पर नहीं था कोई,
गुज़र गयी हवा
रुक कर कुछ पल दर पर,
सुनसान पलों में हो जाते
कान भी कितने तेज़
सुनने लगते आवाज़
हर गुज़रते मौन की.
      ***
आंधियां और तूफ़ान       
आये कई बार आँगन में
पर नहीं ले जा पाये
उड़ाकर अपने साथ,
आज भी बिखरे हैं
आँगन में पीले पात
बीते पल की यादों के
तुम्हारे साथ.


...कैलाश शर्मा