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Monday, October 27, 2014

चौराहा

चौराहे पर खड़ा हूँ कब से, 
भ्रमित चुनूँ मैं राह कौन सी।
कौन राह मंज़िल को जाए,
अंध गली ले जाय कौन सी।

जितने पार किये चौराहे,
नया दर्द हर राह दे गयी।
बोझ बढ़ गया है कंधों पे,

दृष्टि धूमिल आज हो गयी।

कितने मीत बने रस्ते में,
चले गये सब अपनी राहें।
दूर कारवां चला गया है,
तकता अब बस सूनी राहें।

सूनी राहों पर चलते रहना,
शायद यही नियति है मेरी।
घिरा हुआ था कभी भीड़ से,
भूल गया क्या खुशियाँ मेरी।

क्या उद्देश्य यहाँ आने का,
भूल गया जग की माया में।
अंतस की आवाज़ सुनी न,
कुछ पल रिश्तों की छाया में।

सांध्य अँधेरा लगा है बढ़ने,
नहीं सुबह की आस है बाक़ी।
पैमाना खाली, पर उठ चल,
चली गयी महफ़िल से साक़ी।

....कैलाश शर्मा  

28 comments:

  1. बहुत खूब। अकेलेपन की हद हो गई।

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  2. भावपूर्ण रचना..

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  3. सांध्य अँधेरा लगा है बढ़ने,
    नहीं सुबह की आस है बाक़ी।
    पैमाना खाली, पर उठ चल,
    चली गयी महफ़िल से साक़ी...
    सच है की महफिर खाली हो गयी पर जब तक बंद हो जाए ... चलेगी ... अंतिम सांस तो लेनी ही पड़ती है ...
    भाव पूर्ण ...

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (28-10-2014) को "माँ का आँचल प्यार भरा" (चर्चा मंच-1780) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    छठ पूजा की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. कितने मीत बने रस्ते में,
    चले गये सब अपनी राहें।
    दूर कारवां चला गया है,
    तकता अब बस सूनी राहें।
    =कडवी सच्चाई ...... उम्दा रचना

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  6. जीवन का सत्य उद्घाटित है इस रचना में, सादर बधाई

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  7. वाह ! बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति !

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  8. 'क्या उद्देश्य यहाँ आने का,
    भूल गया जग की माया में।
    अंतस की आवाज़ सुनी न,
    कुछ पल रिश्तों की छाया में।'
    - यही तो दुनिया है !

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  9. बहुत गहरी प्रस्तुति,भीड में भी अकेले हैं हम सभी.
    अकेलापन भ्रमित भी करता है तो कभी-कभी अपने तक ले भी जाता .है

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  10. जीवन के चोराहे मुश्किल हैं .....सुन्दर प्रस्तुति

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  11. जीवन का सत्य लिखा है आपने. सुन्दर रचना. द्रष्टि से आपका दृष्टि तो नहीं?

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    1. गूगल transliteration से कोशिश करने पर भी मैं दृष्टि टाइप नहीं कर पाया. अब आपके लिखे को कॉपी करके सुधार दिया है...आभार

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  12. राहें जिंदगी की कई कहानियाँ कह जाती हैं
    सुन्दर !

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  13. अंतस की आवाज़ सुनी न,
    कुछ पल रिश्तों की छाया में।'
    - यही तो दुनिया है ...बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति !

    Recent Post कुछ रिश्ते अनाम होते है:) होते

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  14. बेहद भावपूर्ण और यथार्थपरक अभिव्यक्ति... इस बेहतरीन रचना के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@आंधियाँ भी चले और दिया भी जले
    नयी पोस्ट@श्री रामदरश मिश्र जी की एक कविता/कंचनलता चतुर्वेदी

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  15. क्या ही सटीक बात !
    जितने पार किये चौराहे,
    नया दर्द हर राह दे गयी।

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  16. कल 30/अक्तूबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  17. दुनिया के मेले में हर कोई अकेला है. भावपूर्ण रचना

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  18. चौराहों पर ही जाने कब शाम हो जाती है जीवन की।
    कश्मकश को अच्छे शब्द भाव मिले !

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  19. सुंदर प्रभावी रचना...

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  20. सूनी राहों पर चलते रहना,
    शायद यही नियति है मेरी।
    घिरा हुआ था कभी भीड़ से,
    भूल गया क्या खुशियाँ मेरी।
    चौराहे पर आदमी ! आदमी की वास्तविक कहानी को कहते सार्थक शब्द

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