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Thursday, November 27, 2014

यादें

कल खरोंची उँगलियों से
दीवारों पर जमी यादों की परतें,
हो गयीं घायल उंगलियाँ
रिसने लगा खून
डूब गयीं यादें कुछ पल को
उँगलियों के दर्द के अहसास में।

कितनी गहरी हैं परतें यादों की,
आज फ़िर उभर आया अक्स
दीवारों पर यादों का,
नहीं कोई कब्रगाह
जहाँ दफ़्न कर सकें यादें,
शायद चाहतीं साथ आदमी का
दफ़्न होने को क़ब्र में।

...कैलाश शर्मा 

29 comments:

  1. बहुत सुन्दर

    तेरी यादों के कफ़न में इक जाँ उलझ गई है
    फ़रियाद क्या करें हम उन पर्दा नशीनों से

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  2. यादें भी इंसान के साथ जी दफ़न होती हैं ... वरना छुपी रहती हैं सांस लेती ...

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  3. aisa hi hota hai .....yade marne par hi khatm hoti hai ....bahut sundar rachna

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  4. बेहद भावपूर्ण रचना..मार्मिक भी...

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  5. सच कहा आपने यादों की कोई कब्रगाह नहीं होती ये सदैव हमारे साथ ही होती हैं !

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  6. बहुत अच्छी कविता।

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  7. बहुत खूबसूरत प्रस्तुति ! अति सुंदर !

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  8. बेहद सुंदर प्रस्तुति

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  9. नहीं कोई कब्रगाह
    जहाँ दफ़्न कर सकें यादें,
    शायद चाहतीं साथ आदमी का
    दफ़्न होने को क़ब्र में।

    काश, कोई ऐसा क़ब्रगाह होता तो जि़ंदगी ज़्यादा सुकून भरी होती...!

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  10. बहुत सुन्दर प्रस्तुति शर्माजी ,कहना चाहूंगा -
    मै तेरा ही बुत बनाऊँगा ,तेरी यादों की मजार पर ,
    बेशक ज़माना मुझे पागल दीवाना कहे

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  11. सुन्दर प्रस्तुति...

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  12. बहुत बढ़िया ....
    इंसान भले ही ख़त्म हो जाए लेकिन उसकी याद कभी खत्म नहीं होती ..वे किसी न किसी रूप में यही जिन्दा रहती हैं ..

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  13. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.........अच्छा लगा पढ़कर!

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  14. बिल्कुल ...यही जीवन की सच्चाई है ......जीवंत कविता ...!

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  15. इतना भी आसान न होता, गुमसुम दर्द भुला पाना !
    बहतीं और सूखती रहतीं,कितनी नदियां आँखों में !

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  16. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति भावों और यादों की .

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  17. बहुत बढ़िया ....यादें मरती हैं क्या कभी .....सादर नमस्ते भैया

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  18. bahut khub likha apne app mera blog bhi check kijiye main ache stories likhi hai hope appko pasand aye

    http://the-livingtreasure.blogspot.com/

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  19. सुन्दर प्रस्तुति

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  20. वाह बहुत गहरी बात ब्यान करती रचना ।

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  21. बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
    कभी यहाँ भी पधारें

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  22. यादों के दरीचे देते रहतें हैं जब तब आवाज़ ,

    करता रहता हूँ मैं सुनी अनसुनी।

    बढ़िया बिम्ब लिए आई है ये रचना :

    दीवारों पर यादों का,
    नहीं कोई कब्रगाह
    जहाँ दफ़्न कर सकें यादें,
    शायद चाहतीं साथ आदमी का
    दफ़्न होने को क़ब्र में।

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  23. भावपूर्ण प्रस्तुति....
    यादें होती ही ऐसी है

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