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Sunday, March 08, 2015

महिला दिवस

समर्पित किया तुम्हें 
जीवन का एक एक पल, 
तुम्हारी खुशियों के लिए 
भुला दिए अपने सपने, 
केवल देकर के एक दिन
चाहते चुकाना अपना ऋण?

यह एक दिन भी मेरा कहाँ?
इस दिन का फैसला तुम्हारा,
कहाँ जी पाते यह दिन भी 
स्व-इच्छानुसार.

रहने दो अपना यह अहसान,
अगर दे सको तो देना 
प्रेम, सम्मान, सुरक्षा 
जो है मेरा अधिकार.
इतनी भी नहीं कमज़ोर
जो मांगूं भीख अधिकार की,
अब नहीं चाहती बनना
केवल अनुगामिनी,
जिस दिन बन पाऊँगी सहगामिनी 
जीवन के हर क्षेत्र में
नहीं होगा केवल एक दिन मेरे लिए.

....कैलाश शर्मा 

18 comments:

  1. जो अपना पल पल दे देता है किसी एक के लिए ... उसके लिए एक दिन तो क्या पूरा जीवन भी थोडा है ...

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  2. Yupppp....
    Muje mila jine ka adhikar....thank u bhagwanji
    :-)

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (09-03-2015) को "मेरी कहानी,...आँखों में पानी" { चर्चा अंक-1912 } पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. यह भाव - प्रधान रचना , गहन चिन्तन का प्रतिफल है । सदैव की तरह पुनः नित - नवीन रचना ।
    बधाई ।

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  5. नारी सम्मान की बाते आज भी कितनी कोरी हैं
    http://savanxxx.blogspot.in
    आपको सपरिवार होली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ .....!!

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  6. नारी के हृदय को इतनी अच्छी तरह से आपने समझा इसके लिये आपको बधाई देना चाहती हूँ ! जिस दिन कृपा की जगह उसका अधिकार और सम्मान सहज रूप से मिल जाएगा उसे भीख की तरह मिले किसी 'विशेष दिन' की ज़रूरत नहीं होगी ! सुन्दर सशक्त रचना !

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  7. सुंदर और सार्थक रचना...महिलाओं के सम्मान लिए सिर्फ एक दिन ही क्यों... नाम के लिए महिला दिवस मना लेना ही काफी नहीं है। सही मायने में महिला दिवस तब सार्थक होगा जब असलियत में महिलाओं को वह सम्मान मिलेगा जिसकी वे हकदार हैं।

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  8. इतनी भी नहीं कमज़ोर
    जो मांगूं भीख अधिकार की, bahut sundar ..abhwayakti ...

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  9. यह एक दिन भी मेरा कहाँ?
    इस दिन का फैसला तुम्हारा,
    कहाँ जी पाते यह दिन भी
    स्व-इच्छानुसार.

    सही कहा आपने आदरणीय श्री कैलाश शर्मा जी ! एक औरत का जीवन उसका अपना कहाँ होता है , उसके जीवन से सम्बंधित लोग ही उसका अपना जीवन होते हैं ! सुन्दर शब्द

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  10. बेहद सटीक और सार्थक रचना।

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  11. त्याग और संतोष की जीवित मूर्ती को फिर से काली बनना होगा....परिस्थिति की यही पुकार है।

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  12. मैं आपके बलोग को बहुत पसंद करता है इसमें बहुत सारी जानकारियां है। मेरा भी कार्य कुछ इसी तरह का है और मैं Social work करता हूं। आप मेरी साईट को पढ़ने के लिए यहां पर Click करें-
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  13. बहुत सुन्दर , मंगलकामनाएं आपको !!

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  14. रहने दो अपना यह अहसान,
    अगर दे सको तो देना
    प्रेम, सम्मान, सुरक्षा
    जो है मेरा अधिकार.

    उन मनोभावों को आपने शब्द दिए हैं जिन्हें वाणी से अभिव्यक्त करना कभी-कभी कठिन प्रतीत होता है।

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  15. सुन्दर रचना
    ममता और त्याग का रूप है महिला

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