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Saturday, April 11, 2015

सन्नाटे की चीख ड़से है

कैसे देखूं मैं अब सपने, 
इन आँखों में अश्रु भरे हैं,
नींद खडी है दरवाज़े पर, 
हर कोने में दर्द खड़े हैं।

रातों का हर पहर डराता 
तिमिर ढांक अंतस को जाता,
रात अमावस की काली में 
कोई अस्तित्व नज़र न आता,
कैसे हाथ बढ़ा कर पकडूँ
सौगंधों के शूल गढ़े हैं।

धूमिल हुई हाथ की मेहंदी 
सजल नयन सूखे सूखे से,
भीगे भीगे भाव हैं मन के
तृषित अधर रूखे रूखे से,
नज़र चाँद की आज न उठती
तारे पहरेदार खड़े हैं।

बोझ है मन पर कितना भारी
जीवन हुआ सिर्फ लाचारी,
वर्षा ऋतु में मन बगिया की          
पतझड़ झेल रही हर क्यारी,
खुशियाँ मौन खड़ी हैं दर पर
सन्नाटे की चीख ड़से है.

...कैलाश शर्मा  

36 comments:

  1. निराश मन की व्यथा का भावपूर्ण वर्णन ...बहुत गहरे दर्द के भाव उभरे हैं ...बधाई ....सादर

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  2. marmsprshi rachna .....bahut sundar ..!

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  3. हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल रविवार (12-04-2015) को "झिलमिल करतीं सूर्य रश्मियाँ.." {चर्चा - 1945} पर भी होगी!
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. निराशा में सब जगह अँधेरा ही नज़र आता है ..
    बहुत बढ़िया ...

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  5. बहुत सुन्दर

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  6. कैसे देखूँ मै अब सपनें
    इन आँखों में अश्रु भरे हैं
    नींद खड़ी है दरवाजे पर
    हर कोनें में दर्द खड़े है।
    बहुत ही बेहतरीन कविता।आँसू , दर्द, नींद, इन भावों को लेकर कमाल की रचना प्रस्तुत किया है आप नें शर्मा जी।बहुत सुन्दर सर बधाई।

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  7. कैसे देखूँ मै अब सपनें
    इन आँखों में अश्रु भरे हैं
    नींद खड़ी है दरवाजे पर
    हर कोनें में दर्द खड़े है।
    बहुत ही बेहतरीन कविता।आँसू , दर्द, नींद, इन भावों को लेकर कमाल की रचना प्रस्तुत किया है आप नें शर्मा जी।बहुत सुन्दर सर बधाई।

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  8. कैसे देखूँ मै अब सपनें
    इन आँखों में अश्रु भरे हैं
    नींद खड़ी है दरवाजे पर
    हर कोनें में दर्द खड़े है।
    बहुत ही बेहतरीन कविता।आँसू , दर्द, नींद, इन भावों को लेकर कमाल की रचना प्रस्तुत किया है आप नें शर्मा जी।बहुत सुन्दर सर बधाई।

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  9. बहुत सुंदर और भावपूर्ण रचना.

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  10. मन की पीड़ा को अत्यंत सशक्त अभिव्यक्ति दी है ! बहुत सुन्दर रचना !

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  11. सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
    शुभकामनाएँ।

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  12. Hardayvidarak krandan ko hardaysparshi shabd mile hai. Sundar

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  13. ऐसा लगा ......ह्रदय की चीख सुनाई दे रही है ..बहुत सशक्त अभिव्यक्ति L

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  14. नज़र चाँद की आज न उठती
    तारे पहरेदार खड़े हैं।

    लाजव़ाब!

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  15. दिल से निकली ..दिल तक पहुंची ......शुभकामनायें |

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  16. दिल से निकली ..दिल तक पहुंची ......शुभकामनायें |

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  17. सुंदर और भावपूर्ण रचना

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  18. बोझ है मन पर कितना भारी
    जीवन हुआ सिर्फ लाचारी,
    वर्षा ऋतु में मन बगिया की
    पतझड़ झेल रही हर क्यारी,
    खुशियाँ मौन खड़ी हैं दर पर
    सन्नाटे की चीख ड़से है....
    आपने जैसे अंतिम समय के खौफ को शब्दों का जामा पहना दिया ... निराशा के घोर काले बादल घिर आये हों जैसे ... पर फिर भी कहीं दूर एक आशा है यही याद रखना जरूरी है ...

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  19. बोझ है मन पर कितना भारी
    जीवन हुआ सिर्फ लाचारी,
    वर्षा ऋतु में मन बगिया की
    पतझड़ झेल रही हर क्यारी,
    खुशियाँ मौन खड़ी हैं दर पर
    सन्नाटे की चीख ड़से है.

    सन्नाटे की चीख डसे है

    धूमिल हुई हाथ की मेहंदी
    सजल नयन सूखे सूखे से,
    भीगे भीगे भाव हैं मन के
    तृषित अधर रूखे रूखे से,
    नज़र चाँद की आज न उठती
    तारे पहरेदार खड़े हैं।

    भाषिक प्रांजलता से संसिक्त भाव गीत। सुन्दर मनोहर।

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  20. भावपूर्ण प्रस्तुति।
    बहुत ही खूबसूरत रचना।

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  21. बेहतरीन रचना

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  22. शुक्रिया कैलाश भाई साहब। बढ़िया लिख रहें हैं आप अक्सर हमारी आपकी टिप्पणियाँ परस्पर एक दूसरे के लेखन के लिए आंच बन जातीं हैं ऊर्जा हो जातीं हैं लेखन की। शुक्रिया आपका।

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  23. शुक्रिया कैलाश भाई साहब। बढ़िया लिख रहें हैं आप अक्सर हमारी आपकी टिप्पणियाँ परस्पर एक दूसरे के लेखन के लिए आंच बन जातीं हैं ऊर्जा हो जातीं हैं लेखन की। शुक्रिया आपका।

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  24. बहुत सुन्दर सार्थक सृजन, बधाई

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  25. हर कोने मे दर्द खडे हैण वाह क्या तस्वीर खीण्ची है1 बहुत बदिया1

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  26. धूमिल हुई हाथ की मेहंदी
    सजल नयन सूखे सूखे से,
    भीगे भीगे भाव हैं मन के
    तृषित अधर रूखे रूखे से,
    नज़र चाँद की आज न उठती
    तारे पहरेदार खड़े हैं।
    बहुत सुन्दर सार्थक सृजन ! शानदार शब्द संयोजन आदरणीय कैलाश शर्मा जी

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  27. अद्भुत - प्रणय - गीत । चित्रात्मक - शब्द । हर दृश्य ऑखों के आगे दिखता है ।

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  28. सन्नाटे की आवाज किसी भी शोर से कही ज्यादा होती है।

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  29. भावपूर्ण.. करुण रस में डूबी पंक्तियाँ..

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