अंतस का कोलाहल
रहा अव्यक्त शब्दों में,
कुनमुनाते रहे शब्द
उफ़नते रहे भाव
उबलता रहा आक्रोश
उठाने को ढक्कन
शब्दों के मौन का।
रहा अव्यक्त शब्दों में,
कुनमुनाते रहे शब्द
उफ़नते रहे भाव
उबलता रहा आक्रोश
उठाने को ढक्कन
शब्दों के मौन का।
बहुत आसान है
फेंक देना शब्दों को
दूसरों पर आक्रोश में,
हो जाते शब्द
शांत कुछ पल को
हो जाती संतुष्टि अभिव्यक्ति की।
फेंक देना शब्दों को
दूसरों पर आक्रोश में,
हो जाते शब्द
शांत कुछ पल को
हो जाती संतुष्टि अभिव्यक्ति की।
होने पर शांत तूफ़ान
डूबने उतराने लगते शब्द
पश्चाताप के दलदल में,
हो जाता और भी कठिन
निकलना इस दलदल से।
डूबने उतराने लगते शब्द
पश्चाताप के दलदल में,
हो जाता और भी कठिन
निकलना इस दलदल से।
कब होता है शाश्वत
अस्तित्व तूफ़ान का,
बेहतर है सहलाना शब्दों को
बहलाना रहने को मौन
तूफ़ान के गुज़र जाने तक।
अस्तित्व तूफ़ान का,
बेहतर है सहलाना शब्दों को
बहलाना रहने को मौन
तूफ़ान के गुज़र जाने तक।
....©कैलाश शर्मा

