Pages

Thursday, August 13, 2015

बंजारा

जग से है क्यूँ मोह बढाता
कौन हुआ किसका बंजारा।
मिले काफ़िले उन्हें भुला दे 
कौन साथ चलता बंजारा।

कौन रुका है यहाँ सदा को
कौन ठांव होता अपना है।
सभी मुसाफ़िर हैं सराय में
एक एक सबको चलना है।
पल भर हाथ थाम ले काफ़ी
सदा साथ सपना बंजारा।

अच्छा बुरा कौन है जग में
जो भी मिलता साथ उठाले।
कौन है अपना कौन पराया
जो भी मिलता गले लगाले।
छोड़ यहीं जब सब जाना है
क्यूँ है फ़िर चुनता बंजारा।


आज़ नहीं, न कल था तेरा
आने वाला कल क्या होगा। 
मेहंदी रचा हाथ में कोई
इंतज़ार कब करता होगा।
थके क़दम पर नहीं है रुकना
नियति तेरी चलना बंजारा।

......©कैलाश शर्मा

22 comments:

  1. सच को उकेरती पंक्तियाँ

    ReplyDelete
  2. जीवन दर्शन से भरपूर एक सशक्त प्रस्तुति !

    ReplyDelete
  3. आज इस सत्‍य को लोग भूल चुके हैं। बहुत सुन्‍दर कवित्‍व।

    ReplyDelete

  4. अच्छा बुरा कौन है जग में
    जो भी मिलता साथ उठाले।
    कौन है अपना कौन पराया
    जो भी मिलता गले लगाले।
    छोड़ यहीं जब सब जाना है
    फ़िर क्यूँ चुनता है बंजारा।


    बहुत बहुत शुभकामनाएं ।

    ReplyDelete
  5. स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ आपको बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस पोस्ट को, १४ अगस्त, २०१५ की बुलेटिन - "आज़ादी और सहनशीलता" में स्थान दिया गया है। कृपया बुलेटिन पर पधार कर अपनी टिप्पणी प्रदान करें। सादर....आभार और धन्यवाद। जय हो - मंगलमय हो - हर हर महादेव।

    ReplyDelete
  6. भावपूर्ण सुंदर गीत.

    स्वतंत्रता दिवस की अग्रिम शुभकामनाएँ.

    ReplyDelete
  7. HAPPY INDEPENDENCE DAY
    सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...

    ReplyDelete
  8. मन कि उपजाऊ धरती पे
    लेखनी कि कलम चलेगी
    आप के ब्लॉग लाज़वाब

    ReplyDelete
  9. गहरे भाव लिय हुए रचना । मेरी ब्लॉग पर आपका स्वागत है ।

    ReplyDelete
  10. कौन रुका है यहाँ सदा को
    कौन ठांव होता अपना है।
    सभी मुसाफ़िर हैं सराय में
    एक एक सबको चलना है।
    पल भर हाथ थाम ले काफ़ी
    सदा साथ सपना बंजारा।
    ​जीवन यही बस है किन्तु सब कुछ जानते हुए भी आदमी राक्षस बना हुआ है !! बहुत ही सुन्दर

    ReplyDelete
  11. नदी का बहना और मानव का चलना ही जीवन ...............
    http://savanxxx.blogspot.in

    ReplyDelete
  12. सुंदर और सार्थक

    ReplyDelete
  13. आज़ नहीं, न कल था तेरा
    आने वाला कल क्या होगा।
    मेहंदी रचा हाथ में कोई
    इंतज़ार कब करता होगा।
    थके क़दम पर नहीं है रुकना
    नियति तेरी चलना बंजारा।
    mahtvpurn panktiyan

    ReplyDelete
  14. अच्छा बुरा कौन है जग में
    जो भी मिलता साथ उठाले।
    कौन है अपना कौन पराया
    जो भी मिलता गले लगाले।

    संसार की नश्वरता को प्रतिबिम्बित करता सुंदर गीत।

    ReplyDelete
  15. नश्वर - जगत को परिभाषित करती सुन्दर - प्रस्तुति ।

    ReplyDelete
  16. सच कहा भीड़ केवल आभास देती है साथ होने का लेकिन हर मनुष्य को अकेले ही
    चलना होता है यही नियति है ! बहुत सार्थक जीवन दर्शन है रचना में, आभार !

    ReplyDelete