Kashish - My Poetry
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Thursday, February 14, 2019
क्षणिकाएं
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जब भी पीछे मुड़कर देखा कम हो गयी गति कदमों की , जितना गंवाया समय बार बार पीछे देखने में मंज़िल हो गयी उतनी ही दूर व्यर्थ की आशा मे...
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Monday, February 04, 2019
मन का आँगन प्यासा है
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बरस गया सावन तो क्या है , मन का आँगन प्यासा है। एक बार फिर तुम मिल जाओ , केवल यह अभिलाषा है। अपनी अपनी राह चलें हम , शायद नियति ह...
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Thursday, January 17, 2019
क्षणिकाएं
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मत बांटो ज़िंदगी दिन , महीनों व सालों में , पास है केवल यह पल जियो यह लम्हा एक उम्र की तरह। **** रिस गयी अश्क़ों में रिश्तों की...
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Friday, January 04, 2019
पली गैर हाथों यह ज़िंदगी है
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करीने से सज़ी कब ज़िंदगी है , यहां जो भी मिले वह ज़िंदगी है। सदा साथ रहती कब चांदनी है , अँधेरे से सदा अब बंदगी है। हमारी ज़िंद...
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Wednesday, December 12, 2018
क्षणिकाएं
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जियो हर पल को एक पल की तरह सम्पूर्ण अपने आप में , न जुड़ा है कल से न जुड़ेगा कल से। *** काश होता जीवन कैक्टस पौधे जैसा , अप्र...
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Saturday, December 01, 2018
क्षणिकाएं
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नहीं चल पाता सत्य आज अपने पैरों पर , वक़्त ने कर दिया मज़बूर पकड़ कर चलने को उंगली असत्य की। *** चलते नहीं साथ साथ हमारे दो पैर...
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Wednesday, May 02, 2018
अनकहे शब्द
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फंस जाते जब शब्द भावनाओं के अंधड़ में और रुक जाते कहीं जुबां पर आ कर , ज़िंदगी ले लेती एक नया मोड़। सुनसान पलों में जब भी ...
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