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Friday, May 03, 2019

क्षणिकाएं


गीला कर गया
आँगन फिर से,
सह न पाया
बोझ अश्क़ों का,
बरस गया।
****

बहुत भारी है
बोझ अनकहे शब्दों का,
ख्वाहिशों की लाश की तरह।
****

एक लफ्ज़
जो खो गया था,
मिला आज
तेरे जाने के बाद।
****

रोज जाता हूँ उस मोड़ पर
जहां हम बिछुड़े थे कभी
अपने अपने मौन के साथ,
लेकिन रोज टूट जाता स्वप्न
थामने से पहले तुम्हारा हाथ,
उफ़ ये स्वप्न भी नहीं होते पूरे
ख़्वाब की तरह.

...©कैलाश शर्मा

19 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार मई 05 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत खूब....., सादर नमस्कार सर

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  3. सुन्दर रचना

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  4. बहुत सुंदर या यूँ कहूँ "गागर में सागर"

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  5. बहुत सुंदर रचना..वाहह्हह👌

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  6. बहुत सुंदर आदरणीय हृदय स्पर्शी रचना

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  7. बहुत सुंदर रचना 👌

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  8. आदरणीय सर -- मन की गहन उदासियों को बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति मिली है | विरह वेदना शब्द-शब्द झरती मन को छू रही है | यूँ तो हर क्षणिका मर्मस्पर्शी है पर अंतिम का कोई जवाब नहीं | सादर शुभकामनाएं |

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  9. एक लफ्ज़ जो खो गया था,
    मिल गया तेरे जाने के बाद ।

    वाह !
    ज़रा देर हो गई ...

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  10. बहुत सुन्दर क्षणिकाएं...
    वाह!!!

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  11. विचारों को शब्दों में ढालती रचना

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  12. दिल को छूती हुई ... सीधे अंतस तक जाते हैं भाव हर क्षणिका के ...
    लाजवाब ...

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  13. दिल को छूती हृदय स्पर्शी रचना

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  14. प्रभावशाली रचना

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