गीला कर गया
आँगन फिर से,
सह न पाया
बोझ अश्क़ों का,
बरस गया।
आँगन फिर से,
सह न पाया
बोझ अश्क़ों का,
बरस गया।
****
बहुत भारी है
बोझ अनकहे शब्दों का,
ख्वाहिशों की लाश की तरह।
बोझ अनकहे शब्दों का,
ख्वाहिशों की लाश की तरह।
****
एक लफ्ज़
जो खो गया था,
मिला आज
तेरे जाने के बाद।
जो खो गया था,
मिला आज
तेरे जाने के बाद।
****
रोज जाता हूँ उस मोड़ पर
जहां हम बिछुड़े थे कभी
अपने अपने मौन के साथ,
लेकिन रोज टूट जाता स्वप्न
थामने से पहले तुम्हारा हाथ,
उफ़ ये स्वप्न भी नहीं होते पूरे
ख़्वाब की तरह.
...©कैलाश शर्मा
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार मई 05 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआभार...
Deleteबहुत खूब....., सादर नमस्कार सर
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteआभार...
ReplyDeleteबहुत सुंदर या यूँ कहूँ "गागर में सागर"
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना..वाहह्हह👌
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर आदरणीय हृदय स्पर्शी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना 👌
ReplyDeleteआदरणीय सर -- मन की गहन उदासियों को बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति मिली है | विरह वेदना शब्द-शब्द झरती मन को छू रही है | यूँ तो हर क्षणिका मर्मस्पर्शी है पर अंतिम का कोई जवाब नहीं | सादर शुभकामनाएं |
ReplyDeleteएक लफ्ज़ जो खो गया था,
ReplyDeleteमिल गया तेरे जाने के बाद ।
वाह !
ज़रा देर हो गई ...
बहुत सुन्दर क्षणिकाएं...
ReplyDeleteवाह!!!
विचारों को शब्दों में ढालती रचना
ReplyDeleteदिल को छूती हुई ... सीधे अंतस तक जाते हैं भाव हर क्षणिका के ...
ReplyDeleteलाजवाब ...
दिल को छूती हृदय स्पर्शी रचना
ReplyDeleteप्रभावशाली रचना
ReplyDeleteसुन्दर एहसास, शर्मा जी।
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