Kashish - My Poetry
Pages
(Move to ...)
Home
▼
Monday, May 29, 2017
दर्द बिन ज़िंदगी नहीं होती
›
दर्द जिसकी दवा नहीं होती , ज़िंदगी फ़िर सजा नहीं होती। चाँद आगोश में छुपा जब हो , नींद भी नींद है नहीं होती। ज़िंदगी साथ में गुज़र...
16 comments:
Tuesday, April 18, 2017
क्षणिकाएं
›
(1) चहरे पर जीवन के उलझी पगडंडियां उलझा कर रख देतीं जीवन के हर पल को , जीवन की संध्या में झुर्रियों की गहराई में ढूँढता हू...
25 comments:
Sunday, March 12, 2017
दुख दर्द दहन हो होली में
›
दुख दर्द दहन हो होली में , हो रंग ख़ुशी के होली में। तन मन आंनदित हो जाये , जब रंग उड़ेंगे होली में। सब भेद भाव मिट जायेंगे , ज...
19 comments:
Tuesday, March 07, 2017
बेटी
›
आँगन है चहचहाता , जब होती बेटियां , गुलशन है महक जाता , जब होती बेटियां। आकर के थके मांदे , घर में क़दम रखते, हो जाती थकन गायब, जब...
13 comments:
Monday, February 27, 2017
कैसी यह मनहूस डगर है
›
भूल गयी गौरैया आँगन, मूक हुए हैं कोयल के स्वर , ठूठ हुआ आँगन का बरगद, नहीं बनाता अब कोई घर। लगती नहीं न अब चौपालें , शोर नहीं बच...
28 comments:
Tuesday, January 31, 2017
क्षणिकाएं
›
जीवन की सांझ एक नयी सोच एक नया दृष्टिकोण , एक नया ठहराव सागर की लहरों का , एक प्रयास समझने का जीवन को जीवन की नज़र से। ***** ...
19 comments:
Thursday, November 24, 2016
समस्याएं अनेक, व्यक्ति केवल एक
›
समस्याएँ अनेक उनके रूप अनेक लेकिन व्यक्ति केवल एक। नहीं होता स्वतंत्र अस्तित्व किसी समस्या या दुःख का , नहीं होती समस्या कभी सुप्त...
13 comments:
‹
›
Home
View web version