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Wednesday, October 23, 2019

जीवन यात्रा


कितनी दूर चला आया हूँ,
कितनी दूर अभी है जाना।
राह है लंबी या ये जीवन,
नहीं अभी तक मैंने जाना।

नहीं किसी ने राह सुझाई,
भ्रमित किया अपने लोगों ने।
अपनी राह न मैं चुन पाया,
बहुत दूर जाने पर जाना।

बढ़े हाथ उनको ठुकराया,
अपनों की खुशियों की खातिर।
लेकिन आज सोचता हूँ मैं,
अपने दिल की क्यूँ न माना।

माना समय नहीं अब बाकी,
जो भी बचा उसे अपनाया।
जो भी रेत बचा मुट्ठी में,
उसको ही उपलब्धि माना।

...©कैलाश शर्मा

Saturday, September 21, 2019

चादर सन्नाटे की


चारों ओर पसरा है सन्नाटा
मौन है श्वासों का शोर भी,
उघाड़ कर चाहता फेंक देना
चीख कर चादर मौन की,
लेकिन अंतस का सूनापन
खींच कर फिर से ओढ़ लेता 
चादर सन्नाटे की।

पास आने से झिझकता
सागर की लहरों का शोर,
मौन होकर गुज़र जाता दरवाज़े से 
दबे क़दमों से भीड़ का कोलाहल
अनकहे शब्दों का क्रंदन
आकुल है अभिव्यक्त होने को,
क्यूँ आज तक हैं चुभतीं 
टूटे ख़्वाब की किरचें अंतस में।

थप थपा कर देखो कभी मौन का दरवाज़ा भी
दहल जाएगा अंतस सुन कर शोर सन्नाटे का।

...©कैलाश शर्मा

Thursday, August 08, 2019

क्षणिकाएं


बन न पाया पुल शब्दों का,
भ्रमित नौका अहसासों की
मौन के समंदर में,
खड़े है आज भी अज़नबी से
अपने अपने किनारे पर।
****

अनछुआ स्पर्श
अनुत्तरित प्रश्न
अनकहे शब्द
अनसुना मौन
क्यों घेरे रहते
अहसासों को
और माँगते एक जवाब
हर पल तन्हाई में।
****

रात भर सिलते रहे
दर्द की चादर,
उधेड़ गया फिर कोई
सुबह होते ही.
****

ख्वाहिशों की दौड़ में
भरते जाते मुट्ठियाँ,
पाते विजय रेखा पर
अपने आप को
बिलकुल रीता और अकेला।

...©कैलाश शर्मा

Saturday, July 06, 2019

मेरी जीवन अभिलाषा हो


तुम संबल हो, तुम आशा हो,
तुम जीवन की परिभाषा हो।

शब्दों का कुछ अर्थ न होता,
उन से जुड़ के तुम भाषा हो।

जब भी गहन अँधेरा छाता,
जुगनू बन देती आशा हो।

जीवन मंजूषा की कुंजी,
करती तुम दूर निराशा हो।

नाम न हो चाहे रिश्ते का,
मेरी जीवन अभिलाषा हो।

...©कैलाश शर्मा

Wednesday, June 05, 2019

जीवन ऐसे ही चलता है


कुछ घटता है, कुछ बढ़ता है,
जीवन ऐसे ही चलता है।

इक जैसा ज़ब रहता हर दिन,
नीरस कितना सब रहता है।

मन के अंदर है जब झांका,
तेरा ही चहरा दिखता है।

चलते चलते बहुत थका हूँ,
कांटों का ज़ंगल दिखता है।

आंसू से न प्यास बुझे है,
आगे भी मरुधर दिखता है।

...©कैलाश शर्मा

Friday, May 03, 2019

क्षणिकाएं


गीला कर गया
आँगन फिर से,
सह न पाया
बोझ अश्क़ों का,
बरस गया।
****

बहुत भारी है
बोझ अनकहे शब्दों का,
ख्वाहिशों की लाश की तरह।
****

एक लफ्ज़
जो खो गया था,
मिला आज
तेरे जाने के बाद।
****

रोज जाता हूँ उस मोड़ पर
जहां हम बिछुड़े थे कभी
अपने अपने मौन के साथ,
लेकिन रोज टूट जाता स्वप्न
थामने से पहले तुम्हारा हाथ,
उफ़ ये स्वप्न भी नहीं होते पूरे
ख़्वाब की तरह.

...©कैलाश शर्मा

Wednesday, April 17, 2019

बेटियां


यादों में जब भी हैं आती बेटियां,
आँखों को नम हैं कर जाती बेटियां।

आती हैं स्वप्न में बन के ज़िंदगी,
दिन होते ही हैं गुम जाती बेटियां।

कहते हैं क्यूँ अमानत हैं और की,
दिल से सुदूर हैं कब जाती बेटियां।

सोचा न था कि होंगे इतने फासले,
हो जाएंगी कब अनजानी बेटियां।

होंगी कुछ तो मज़बूरियां भी उसकी,
माँ बाप से दूर कब जाती बेटियां।

माँ बाप से दूर हों चाहे बेटियां,
लेकिन जगह दुआ में पाती बेटियां।

...©कैलाश शर्मा

Wednesday, March 27, 2019

शब्दों की चोट


बहुत आसान है फेंकना 
एक कंकड़ शब्द का 
और कर देना पैदा
लहरें अशांति की
अंतस के शांत जल में।

बिखरी हुई अशांत लहरें
यद्यपि हो जातीं शांत 
समय के साथ,
लेकिन कितना कठिन है
लगाना अनुमान गहराई का
जहाँ देकर गया चोट
वह फेंका हुआ कंकड़ झील में।

...©कैलाश शर्मा

Tuesday, March 12, 2019

मरुधर में बोने सपने हैं


कुछ दर्द अभी तो सहने हैं,
कुछ अश्क़ अभी तो बहने हैं।

मत हार अभी मांगो खुद से,
मरुधर में बोने सपने हैं।

बहने दो नयनों से यमुना,
यादों को ताज़ा रखने हैं।

नींद दूर है इन आंखों से,
कैसे सपने अब सजने हैं।

बहुत बचा कहने को तुम से,
गर सुन पाओ, वह कहने हैं।

कुछ नहीं शिकायत तुमने की,
यह दर्द हमें भी सहने हैं।

हमने मिलकर जो खाब बुने,
अब दफ़्न अकेले करने हैं।

...©कैलाश शर्मा

Thursday, February 14, 2019

क्षणिकाएं


जब भी पीछे मुड़कर देखा
कम हो गयी गति कदमों की,
जितना गंवाया समय
बार बार पीछे देखने में
मंज़िल हो गयी उतनी ही दूर 
व्यर्थ की आशा में।
****

बदल जाते हैं शब्दों के अर्थ
व्यक्ति, समय, परिस्थिति अनुसार,
लेकिन मौन का होता सिर्फ एक अर्थ
अगर समझ पाओ तो।

****

झुलसते अल्फाज़,
कसमसाते अहसास
होने को अभिव्यक्त,
पूछती हर साँस
सबब वापिस आने का,
केवल एक तुम्हारे न होने से।

...©कैलाश शर्मा

Monday, February 04, 2019

मन का आँगन प्यासा है


बरस गया सावन तो क्या है, मन का आँगन प्यासा है।
एक बार फिर तुम मिल जाओ, केवल यह अभिलाषा है।

अपनी अपनी राह चलें हम,
शायद नियति हमारी होगी।
मिल कर दूर सदा को होना,
विधि की यही लकीरें होंगी।

इंतज़ार के हर एक पल ने, बिखरा दिए स्वप्न आँखों के,
रिक्त हुए हैं अश्रु नयन के, मन में गहन पिपासा है।

साथ रहा जो कुछ कदमों का
जीवन भर का दर्द बन गया।
अहसासों में बसती जो गर्मी
अब स्पंदन है सर्द बन गया।

जाने से पहले कुछ कहते, बोझ जुदाई कुछ कम होता,
मौन दे गया प्रश्न अबूझे, अंतस में गहन कुहासा है।

एक जन्म का साथ न पाया,
जन्म जन्म का स्वप्न व्यर्थ है।
फिसल गयी जो रेत हाथ से,
उसके संचय की आस व्यर्थ है।

स्वप्न अधिक न पालो मन में, स्वप्न टूटने पर दुख होता,
हर पल को मुट्ठी में बांधो, जीवन बस एक तमाशा है।

...©कैलाश शर्मा

Thursday, January 17, 2019

क्षणिकाएं

मत बांटो ज़िंदगी
दिन, महीनों व सालों में,
पास है केवल यह पल
जियो यह लम्हा
एक उम्र की तरह।
****

रिस गयी अश्क़ों में
रिश्तों की हरारत,
ढो रहे हैं कंधों पर
बोझ बेज़ान रिश्तों का।
****

एक मौन
एक अनिर्णय
एक गलत मोड़
कर देता सृजित
एक श्रंखला
अवांछित परिणामों की,
भोगते जिन्हें अनचाहे
जीवन पर्यंत।

...©कैलाश शर्मा

Friday, January 04, 2019

पली गैर हाथों यह ज़िंदगी है


करीने से सज़ी कब ज़िंदगी है,
यहां जो भी मिले वह ज़िंदगी है।

सदा साथ रहती कब चांदनी है,
अँधेरे से सदा अब बंदगी है।

हमारी ज़िंदगी कब थी हमारी,
पली गैर हाथों यह ज़िंदगी है।

नहीं है नज़र आती साफ़ नीयत,
जहां देखता हूँ बस गंदगी है।

दिखाओगे झूठे सपने कब तक,
सजे फिर कब है बिखर ज़िंदगी है।

...©कैलाश शर्मा