Tuesday, June 10, 2014

यादों का सफ़र

न लिखा था कोई ख़त 
न दिया था कोई गुलाब
न ही किया था कोई वादा,
चलते रहे थे साथ 
यूँ ही कुछ दूरी तक
अपने अपने ख्वाब 
अंतस में छुपाये।

न जाने क्यों 
न ढल पाये भाव
शब्दों में,
बदल गयीं राहें
न जाने किस मोड़ पर
कब अनजाने में।


छटपटाता है आज़ वह मौन
पश्चाताप के चंगुल में,
नहीं कोई निशानी साथ में 
कोरे हैं आज भी पन्ने,
नहीं कोई गुलाब
किताबों के बीच।

केवल ताज़ा है
वह कुछ पल का साथ
आज़ भी यादों में।

....© कैलाश शर्मा 

33 comments:

  1. ​बहुत खूब , श्री कैलाश शर्मा जी

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  2. वाह ! बहुत सुंदर !

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन नाख़ून और रिश्ते - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  4. बस यही याद तो हमारी पूंजी है जीने के लिए..

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  5. अति सुन्दर. बहुत भावपूर्ण शब्द.

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  6. मन को छू गई ये रचना। आपकी लेखनी सचमुच सजीव है।

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  7. सार्थक प्रस्तुति...

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  8. सुंदर प्रस्तुति :)

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  9. अनकही दास्ताँ स्मृतियों में रही !
    भावपूर्ण !

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  10. कैलाश जी,
    कुछ अलग सा में सा स्वागत है. यूँही स्नेह बना रहे.

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  11. बहुर खूबसूरती से सहेजी हैं यादें

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  12. वाह !.. बेहतरीन रचना ...

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  13. कोमल भावों से सजी कविता..

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  14. कुछ पल का साथ बना रहे। मनभावन।

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  15. मीठी यादें |

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  16. जहाँ सब नश्वर है वहां बस ये यादें ही ही सब कुछ है. सुन्दर रचना.

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  17. At the end of the day, it is just memories that we are left with...a beautiful poem :)

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  18. खूबसूरत अभिव्यक्ति, सुंदर जज्बात. यादें कुछ ऎसी हीं होती हैं...

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  19. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  20. बहुत सुन्दर प्रस्तुति... सुन्दर भाव

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  21. बहुत अच्छा... आपके अंतरमन की आवाज़ |

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  22. केवल ताज़ा है
    वह कुछ पल का साथ
    आज़ भी यादों में।
    .........................sach kaha ks....

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  23. अनुपम भाव सन्योजन .....
    आभार

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  24. बहुत सुंदर

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  25. वाह बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति

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  26. यादें तो हैं जाने को ... वो ही काफी हैं ... बहुत ही भावपूर्ण ...

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