Kashish - My Poetry
Thursday, June 29, 2017
पतझड़
हरे थे जब पात
अपनों का था साथ
गूँजते थे स्वर
टहनियों पर बने घोंसलों से।
रह गया जब ठूंठ
अपने गये छूट
सपने गये रूठ
,
कितना अपना सा लगता
एक पल का साथी भी
जीवन के सूनेपन में।
...
©कैलाश शर्मा
Newer Posts
Older Posts
Home
Subscribe to:
Posts (Atom)