Thursday, January 17, 2019

क्षणिकाएं

मत बांटो ज़िंदगी
दिन, महीनों व सालों में,
पास है केवल यह पल
जियो यह लम्हा
एक उम्र की तरह।
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रिस गयी अश्क़ों में
रिश्तों की हरारत,
ढो रहे हैं कंधों पर
बोझ बेज़ान रिश्तों का।
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एक मौन
एक अनिर्णय
एक गलत मोड़
कर देता सृजित
एक श्रंखला
अवांछित परिणामों की,
भोगते जिन्हें अनचाहे
जीवन पर्यंत।

...©कैलाश शर्मा

Friday, January 04, 2019

पली गैर हाथों यह ज़िंदगी है


करीने से सज़ी कब ज़िंदगी है,
यहां जो भी मिले वह ज़िंदगी है।

सदा साथ रहती कब चांदनी है,
अँधेरे से सदा अब बंदगी है।

हमारी ज़िंदगी कब थी हमारी,
पली गैर हाथों यह ज़िंदगी है।

नहीं है नज़र आती साफ़ नीयत,
जहां देखता हूँ बस गंदगी है।

दिखाओगे झूठे सपने कब तक,
सजे फिर कब है बिखर ज़िंदगी है।

...©कैलाश शर्मा