Thursday, February 26, 2015

क्षणिकाएं

सपने हैं जीवन,      
जीवन एक सपना,
कौन है सच
कौन है अपना?
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आंधियां और तूफ़ान      
आये कई बार आँगन में
पर नहीं ले जा पाये
उड़ाकर अपने साथ,
आज भी बिखरे हैं
आँगन में पीले पात
बीते पल की यादों के
तुम्हारे साथ.
*****

नफरतों के पौधे उखाड़ कर
लगाता हूँ रोज़ पौधे प्रेम के
पर नहीं है अनुकूल मौसम या मिट्टी,
मुरझा जाते पौधे
और फिर उग आतीं
नागफनियाँ नफरतों की.
शायद सीख लिया है
जीना इंसान ने
नफरतों के साथ.
*****

करनी होती अपनी मंजिल    
स्वयं ही निश्चित
आकलन कर अपनी क्षमता,
बताये रास्ते दूसरों के
नहीं जाते सदैव
इच्छित मंजिल को.

...कैलाश शर्मा 

Saturday, February 14, 2015

प्रेम दिवस


प्यार नहीं मोहताज़ किसी दिन का 
यह है एक अनवरत प्रवाह 
मरुथल हो या गंगा का शीतल जल,
रहता है प्रेम अव्यक्त 
नहीं मांगता कोई प्रतिदान,
चाहे न चलें लेकर हाथों में हाथ 
पर दूर कब होता है साथ 
सुख में या दुःख में,
मौन प्रयास सुगम बनाने का 
रास्ता एक दूसरे का,
क्या ज़रुरत ऐसे प्यार को 
इंतज़ार किसी एक दिन का.

...कैलाश शर्मा