(क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभाग-योग-१३.१९-२६)
प्रकृति और पुरुष दोनों को
तुम अर्जुन अनादि ही जानो.
लेकिन विकार और गुणों को
तुम उत्पन्न प्रकृति से जानो. (१३.१९)
कार्य, कारण, कर्तव्य का हेतु
प्रकृति को बतलाया जाता.
सुख दुःख के होने का कारण
जीवात्मा को कहा है जाता. (१३.२०)
आत्मा होकर शरीर में स्थित,
प्रकृतिजन्य गुणों को भोगता.
जन्म है अच्छी बुरी योनि में
आसक्ति गुणों के कारण होता. (१३.२१)
परम पुरुष शरीर में स्थित
साक्षी व अनुमति का दाता.
वही है भर्ता और भोक्ता,
महेश्वर,परमात्मा कहलाता. (१३.२२)
आत्मा और गुणों को जो जन
प्रकृति सहित जान है लेता.
करते हुए भी सब कर्मों को
वह फिर से है जन्म न लेता. (१३.२३)
स्वयं आत्म में ध्यान द्वारा
आत्मतत्व को कोई देखते.
कुछ ज्ञान व योग के द्वारा,
कुछ कर्मयोग से इसे देखते. (१३.२४)
अन्य जो न इस रूप जानते,
सुन उपदेश ध्यान हैं करते.
श्रुति परायण वे जन भी हैं
भव सागर से निश्चय तरते. (१३.२५)
जग के सभी चराचर प्राणी
अर्जुन जो उत्पन्न हैं होते.
ऐसा जानो तुम हे अर्जुन!
क्षेत्र क्षेत्रज्ञ संयोग से होते. (१३.२६)
......क्रमशः
...कैलाश शर्मा
आत्मा होकर शरीर में स्थित,
प्रकृतिजन्य गुणों को भोगता.
जन्म है अच्छी बुरी योनि में
आसक्ति गुणों के कारण होता. (१३.२१)
परम पुरुष शरीर में स्थित
साक्षी व अनुमति का दाता.
वही है भर्ता और भोक्ता,
महेश्वर,परमात्मा कहलाता. (१३.२२)
आत्मा और गुणों को जो जन
प्रकृति सहित जान है लेता.
करते हुए भी सब कर्मों को
वह फिर से है जन्म न लेता. (१३.२३)
स्वयं आत्म में ध्यान द्वारा
आत्मतत्व को कोई देखते.
कुछ ज्ञान व योग के द्वारा,
कुछ कर्मयोग से इसे देखते. (१३.२४)
अन्य जो न इस रूप जानते,
सुन उपदेश ध्यान हैं करते.
श्रुति परायण वे जन भी हैं
भव सागर से निश्चय तरते. (१३.२५)
जग के सभी चराचर प्राणी
अर्जुन जो उत्पन्न हैं होते.
ऐसा जानो तुम हे अर्जुन!
क्षेत्र क्षेत्रज्ञ संयोग से होते. (१३.२६)
......क्रमशः
...कैलाश शर्मा