भोर सुनहरी करे प्रतीक्षा, सत्य मार्ग के राही की,
भ्रष्ट न धो पायेगा अपनी लिखी इबारत स्याही की.
कब तक छुपा सकेगी चादर
दाग लगा जो दामन में,
बोओगे तुम यदि अफीम तो
महके तुलसी क्यों आँगन में.
भ्रष्ट करो मत अगली पीढ़ी अपने निन्द्य कलापों से,
वरना ताप न सह पाओगे, अपनी आग लगाई की.
भ्रष्ट व्यक्ति का मूल्य नहीं है
उसकी केवल कीमत होती.
चांदी की थाली हो, या सूखी पत्तल,
खानी होती है सबको,केवल दो रोटी.
भरलो अपना आज खज़ाना संतुष्टि की दौलत से,
कहीं न कालाधन ले आये तुमको रात तबाही की.