Thursday, February 14, 2019

क्षणिकाएं


जब भी पीछे मुड़कर देखा
कम हो गयी गति कदमों की,
जितना गंवाया समय
बार बार पीछे देखने में
मंज़िल हो गयी उतनी ही दूर 
व्यर्थ की आशा में।
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बदल जाते हैं शब्दों के अर्थ
व्यक्ति, समय, परिस्थिति अनुसार,
लेकिन मौन का होता सिर्फ एक अर्थ
अगर समझ पाओ तो।

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झुलसते अल्फाज़,
कसमसाते अहसास
होने को अभिव्यक्त,
पूछती हर साँस
सबब वापिस आने का,
केवल एक तुम्हारे न होने से।

...©कैलाश शर्मा

Monday, February 04, 2019

मन का आँगन प्यासा है


बरस गया सावन तो क्या है, मन का आँगन प्यासा है।
एक बार फिर तुम मिल जाओ, केवल यह अभिलाषा है।

अपनी अपनी राह चलें हम,
शायद नियति हमारी होगी।
मिल कर दूर सदा को होना,
विधि की यही लकीरें होंगी।

इंतज़ार के हर एक पल ने, बिखरा दिए स्वप्न आँखों के,
रिक्त हुए हैं अश्रु नयन के, मन में गहन पिपासा है।

साथ रहा जो कुछ कदमों का
जीवन भर का दर्द बन गया।
अहसासों में बसती जो गर्मी
अब स्पंदन है सर्द बन गया।

जाने से पहले कुछ कहते, बोझ जुदाई कुछ कम होता,
मौन दे गया प्रश्न अबूझे, अंतस में गहन कुहासा है।

एक जन्म का साथ न पाया,
जन्म जन्म का स्वप्न व्यर्थ है।
फिसल गयी जो रेत हाथ से,
उसके संचय की आस व्यर्थ है।

स्वप्न अधिक न पालो मन में, स्वप्न टूटने पर दुख होता,
हर पल को मुट्ठी में बांधो, जीवन बस एक तमाशा है।

...©कैलाश शर्मा