Sunday, July 19, 2015

यादें

कैसा था ज़ुनून
दूर होने का तुम्हारी यादों से,
दफ़ना दिए सब ख़्वाब
कुचल दिया वह दिल
जिसमें बसाया तुम्हें,
खरोंच दी परतें ज़िस्म से
पर फ़िर भी रही बाक़ी
चुभन तेरी छुवन की,
अहसास तेरे होने का
रोम रोम में ज़िस्म के।


शायद घुल गयी तेरी यादें
बूँद बूँद में लहू के
देतीं पल पल दर्द
तेरे न होने पर भी अहसास होने का,
ढोना ही होगा ताउम्र
यह बोझ तेरी यादों का।

...कैलाश शर्मा 

Friday, July 03, 2015

जीवन

कानों को फोड़ता
शोर सन्नाटे का,
चीत्कार दमित शब्दों की 
छुपी मौन अंतस में,
चुभता आँखों में
काला गहरा अंधियारा,
मांगता तनहाई से
कुछ पल साथ तनहा मन,
कितना अज़ीब फ़लसफ़ा
हर बाहर जाती श्वास
निर्भर वापिस आने को
मृत्यु के अहसान पर।

....कैलाश शर्मा