तकदीर की स्लेट
और हाथ की लकीरें.
होती शुरू
ज़िंदगी की दौड़
एक ही पंक्ति से,
समान स्तर पर,
दौड़ते सभी
अपनी अपनी सामर्थ्य
बुद्धि और मेहनत
के अनुसार.
लिखी जातीं तकदीर
अपने हाथों से
और हथेली पर लकीरें
खींच पाते
हम अपनी मर्जी से.
किस्मत पर रोने
या हथेली की लकीरों को
दोष देने से
क्या होगा?
नेताओं द्वारा दिखायी
झूठे सपनों की लहरें,
हैं सिर्फ़ दिवास्वप्न.
समझो अपनी ताकत,
आने दो सुनामी
करने को समतल
अन्याय, शोषण और भ्रष्टाचार
पर खड़े महल,
फिर उस समतल ज़मीन पर
लिख पाओगे अपनी तक़दीर
अपने हाथों से,
और ज़न्म लेने पर
हथेलियाँ होंगी
बिलकुल साफ़,
जिन पर उकेर पाओगे
रेखायें
अपनी मेहनत से.
नहीं देगा दोष कोई
फिर अपनी तकदीर
या हाथ की लकीरों को.
और ज़न्म लेने पर
ReplyDeleteहथेलियाँ होंगी
बिलकुल साफ़,
जिन पर उकेर पाओगे
रेखायें
अपनी मेहनत से
उत्प्रेरित करती शशक्त रचना सच है खीचनी ही होंगी अपने हाथों से अपने ही हाथों की लकीरें.बधाई
आने दो सुनामी
ReplyDeleteकरने को समतल
अन्याय, शोषण और भ्रष्टाचार
पर खड़े महल,
फिर उस समतल ज़मीन पर
लिख पाओगे अपनी तक़दीर
क्या बात है ! नयी बुनियाद बनानी ही होगी ,
विचारों की,संकल्प की सुनामी को आना ही होगा ...
शुभकामनायें आपको ......
नहीं देगा दोष कोई
ReplyDeleteफिर अपनी तकदीर
या हाथ की लकीरों को.
Sahee kaha kailash jee....haathon ki chand lakeeron ka ye khel hai yaar taqdeeron ka!!
मेरी नई पोस्ट पे आपका स्वागत् है....
http://raaz-o-niyaaz.blogspot.com/2011/07/blog-post.html
बेहद सशक्त सोच दर्शाती अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteबेहद सशक्त सोच दर्शाती अभिव्यक्ति .....
ReplyDeleteबहुत भावो को समेटा है………शानदार
ReplyDeleteबिलकुल सही लिखा है आपने .सभी को अपनी मेहनत के अनुसार फल मिले तो हाथ की लकीरों से कौन लड़े .?आभार
ReplyDeleteआने दो सुनामी
ReplyDeleteकरने को समतल
अन्याय, शोषण और भ्रष्टाचार
पर खड़े महल
वाह बेहद खूब कहा है.... इस आशावादी सोच के साथ ही हम आनेवाले कल को बदल सकते है......
प्रस्तुत कविता शुरू तो होती है सर्व ज्ञात सिद्धांत 'तक़दीर-लकीर' से, पर ख़त्म होने से पहले अपना सन्देश देने में कामयाब -
ReplyDeleteसमझो अपनी ताकत,
आने दो सुनामी
करने को समतल
अन्याय, शोषण और भ्रष्टाचार
पर खड़े महल,
बहुत सार्थक रचना बधाई एक शेर याद आ रहा है ....
ReplyDeleteकुछ लोगों ने तदवीर से तकदीर बना ली
और हम पंडितों को हाथ दिखाते रह गये |
हाथ की लकीरों को धन्यवाद तो दिया जाये, दोष नहीं।
ReplyDeleteआशावादी विचारों के साथ सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteभावों को सटीक प्रभावशाली अभिव्यक्ति दे पाने की आपकी दक्षता मंत्रमुग्ध कर लेती है...
ReplyDeleteइसअवस्था के लिए हम खुद भी दोषी हैं हाथ की लकीरें या किस्मत नहीं !
हमारे कर्मों से ही हमारी तक़दीर बनती है और अपनी तक़दीर हम खुद बनाते हैं !
!
आपने बहुत सुन्दर शब्दों में अपनी बात कही है। शुभकामनायें।
बहुत सुन्दर रचना... आपकी यह उत्कृष्ट रचना दिनांक 19-07-2011 को मंगलवारीय चर्चा में चर्चा मंच पर भी होगी कृपया आप चार्चा मंच http://charchamanch.blogspot.com/ पर पधार कर अपने सुझावों से अवगत कराएं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति,
ReplyDeleteसाभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
हथेलियाँ होंगी
ReplyDeleteबिलकुल साफ़,
जिन पर उकेर पाओगे
रेखायें
अपनी मेहनत से
....शशक्त रचना सच है बेहद सशक्त सोच दर्शाती अभिव्यक्ति....!
बेहतरीन
ReplyDeleteसादर
आने दो सुनामी
ReplyDeleteकरने को समतल
अन्याय, शोषण और भ्रष्टाचार
पर खड़े महल
बेहतरीन शब्द रचना ।
आशावादी विचारों के साथ सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteकिस्मत पर रोने
ReplyDeleteया हथेली की लकीरों को
दोष देने से
क्या होगा?
नेताओं द्वारा दिखायी
झूठे सपनों की लहरें,
हैं सिर्फ़ दिवास्वप्न.
बहुत सुंदर प्रेरणादायी रचना !
बेहतरीन शब्द रचना ।
ReplyDeleteनहीं देगा दोष कोई
ReplyDeleteफिर अपनी तकदीर
या हाथ की लकीरों को.
सशक्त सोच दर्शाती अभिव्यक्ति ....
सार्थक रचना...
ReplyDeleteसंवेदना से भरी मार्मिक रचना। बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद!
ReplyDeleteसशक्त अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सशक्त पोस्ट...........कहते हैं किस्मत तो उनकी भी होती है जिनके हाथ नहीं होते...........
ReplyDeletebahut sunder abhibyakti.badhaai aapko.
ReplyDeleteplease visit my blog.thanks.
अपने हाथों की लकीर हम खुंद बनाये , सशक्त रचना .
ReplyDeleteहाथों की लकीर से ...गहनता के साथ भावों को प्रस्तुत किया है आपने .सशक्त प्रस्तुतीकरण के लिए बधाई
ReplyDeleteऔर ज़न्म लेने पर
ReplyDeleteहथेलियाँ होंगी
बिलकुल साफ़,
जिन पर उकेर पाओगे
रेखायें
अपनी मेहनत से....
अद्भुत रचना है सर...
सादर...
बाजुओं में दम होना चाहिए....तकदीर भी बन जाएगी.....
ReplyDeleteहौसला बढ़ाती सुंदर प्रेरक रचना
ReplyDeletesundar bhav ,sashakta rachana
ReplyDeleteबेहद सशक्त सोच दर्शाती अभिव्यक्ति| आभार|
ReplyDeletebahut hi umda likhte hain aap Uncle... bahut kuch seekhna hai aapse... is duniya aur duniyadaari, aur uske saath hamari apni soch... kitne acche se saralta ke saath sab kuch bayan kar dete hain aap...
ReplyDeleteWonderful creation Kailash ji !
ReplyDeletekash ki aisa ho pata.
ReplyDeletebahut acchi rachna
http://meriparwaz.blogspot.com/
बुद्धि और मेहनत
ReplyDeleteके अनुसार.
लिखी जातीं तकदीर
अपने हाथों से
और हथेली पर लकीरें
खींच पाते
हम अपनी मर्जी से.
किस्मत पर रोने
या हथेली की लकीरों को
दोष देने से
क्या होगा?
सटीक पंक्तियाँ! बिना मेहनत किए फल की आशा करना मुर्खता है! सुन्दर अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना!
गहन जीवन दर्शन है आपकी इस रचना में....
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