शाम से ही फ़िर उदासी छा गयी.
मूँद करके नयन, विस्मृत कर दिये थे मिलन क्षण,
नयन रीते हो गये, सब बह गये थे अश्रु कण.
नयन रीते हो गये, सब बह गये थे अश्रु कण.
उंगलियां तुम पर उठें न, कर दिया खुद को अजाना,
दर्द खुद ही सहलिये, करने को चुकता प्रेम ऋण.
दर्द खुद ही सहलिये, करने को चुकता प्रेम ऋण.
हो गया अभ्यस्त तपती धूप का,
आज फ़िर काली घटा क्यों छा गयी.
एक सलवट से भी बिस्तर था अजाना ही रहा,
स्वप्न उठते थे नयन में, तन कुंवारा ही रहा.
तोड़ने को मौन सागर की लहर सिर पटकती थीं,
कर्णवेधी शोर से पर मन अविचलित ही रहा.
कर दिया था दफ़्न खुद को कब्र में,
क्यों सताने तेरी आहट आ गयी.
झूठ था शायद, तुम्हारा नाम विस्मृत कर दिया,
मेज़ से फोटो हटाने से क्या रिश्ता मिट गया?
बन न पाया था मैं पत्थर, लाख कोशिश मैंने की,
आज बस क्षण एक में, यह भरम भी मिट गया.
अब सतायेगा अकेलापन बहुत,
याद बन चिंगारी ज़लाने आगयी.
याद बन चिंगारी ज़लाने आगयी.