आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज शनिवार (01-07-2017) को "विशेष चर्चा "चिट्टाकारी दिवस बनाम ब्लॉगिंग-डे" पर भी होगी। -- सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। -- चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है। जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। हार्दिक शुभकामनाओं के साथ। सादर...! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 02 जुलाई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अगर मैं गलत नहीं हूँ तो आप पतझड़ के माध्यम से इंसान की जिंदगी के विभिन्न आयामों को छूना चाह रहे हैं , जिंदगी को सम्बंधित करना चाह रहे हैं और बखूबी कर रहे हैं !! शानदार और अनूठी कृति है आदरणीय शर्मा जी !!
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteआदरनीय कैलाश शर्मान जी ,खूबसूरत यथार्थ पर आधारित सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteप्रकृति, प्रेम, परिवार...सहसम्बंधों को उजागर करती रचना...अहा.🐥🐦
ReplyDeleteघनेरी छाँव सबको भाती है, वक़्त-वक़्त की बात होती है
ReplyDeleteबहुत सही लिखा है
सटीक अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteबहुत बढिया..
जीवन का सत्य है ये ... बिछड़े सभी बारी बारी ...
ReplyDeleteपंची भी छोड़ जाते हैं ठूंठ का साथ ...
समय का खेल सब ...हृदयस्पर्शी
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज शनिवार (01-07-2017) को
ReplyDelete"विशेष चर्चा "चिट्टाकारी दिवस बनाम ब्लॉगिंग-डे"
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार ...
Deletesundar abhivyakti
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 02 जुलाई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआभार....
Deleteएक वक़्त आता है, जब सब झूठ लगने लगता है, शायद विरक्ति के लिए यह लग्न सही है
ReplyDelete, सारे मोहबंध खुल जाते हैं ...
कम शब्दों में कभी-कभी बहुत सी बातें कह दी जातीं हैं... आपकी ये छोटी सी कविता भी मुझे वैसी ही लगी...
ReplyDeleteहरे थे जब पात.
ReplyDeleteसबका था तब साथ...
वाह!!!
पात सूखे साथ छूटे...
वृद्धावस्था है ठूठ सी...
सुन्दर प
रतीकात्मक रचना....
यही जीवन की रीत है
ReplyDeleteसमय के स्वाभाव को सरलता के साथ अभिव्यक्ति दी है आपने। सीधे दिल में उतरते शब्द। शानदार रचना।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीय । बहुत खूब ।
ReplyDeleteबेहद गहन भाव ...
ReplyDeleteएकाकीभाव ही चरम सत्य है शायद ! अन्य सभी भाव आते जाते रहते हैं... सादर ।
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा
ReplyDeleteयथार्थ की संवेदनशील प्रस्तुति ।
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी...
अंतिम सत्य कहा है ।
ReplyDeleteअगर मैं गलत नहीं हूँ तो आप पतझड़ के माध्यम से इंसान की जिंदगी के विभिन्न आयामों को छूना चाह रहे हैं , जिंदगी को सम्बंधित करना चाह रहे हैं और बखूबी कर रहे हैं !! शानदार और अनूठी कृति है आदरणीय शर्मा जी !!
ReplyDeleteजीवन के पतझर में कोई साथ नही होता. यही जीवन और यही सत्य. भावप्रवण रचना के लिए बधाई.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता है सर.
ReplyDeleteछोटी सी रचना में कितना सुंदर सन्देश है ------- जीवन के पतझड़ में एक पल का साथी भी अनंत सुख देता होगा !!! निश्चित ही !! लाजवाब !!!!
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