लेकर गुलाब लाल खड़े इंतज़ार में,
गहराई प्यार की है छुपी स्वर्णहार में,
प्रियतम की बांह और संगीत है मधुर,
मस्ती में नाचते हैं, उत्सव है प्यार का.
है गर नहीं गुलाब तो क्या प्यार ही नहीं,
अभिव्यक्त कर सके न,तो क्या प्यार ही नहीं,
इज़हार ही से आंकते गहराई प्यार की,
कैसे कहूँ मैं इसको त्यौहार प्यार का.
पत्थर को तोड़ती हुई मायूस है नज़र,
रोता है भूखा बचपन धूप में उधर,
कैसे जलेगा शाम को चूल्हा यह फिक्र है,
लायेगा वह कहाँ से उपहार प्यार का.
है प्यार सिर्फ़ नाम का, पैसे का खेल है,
कहने को शब्द भर हैं, न दिलों का मेल है,
जो ढो रहे हैं ज़िन्दगी का भार सिरों पर,
कैसे कहें कि उनको नहीं ज्ञान प्यार का.
गहराई प्यार की है छुपी स्वर्णहार में,
प्रियतम की बांह और संगीत है मधुर,
मस्ती में नाचते हैं, उत्सव है प्यार का.
है गर नहीं गुलाब तो क्या प्यार ही नहीं,
अभिव्यक्त कर सके न,तो क्या प्यार ही नहीं,
इज़हार ही से आंकते गहराई प्यार की,
कैसे कहूँ मैं इसको त्यौहार प्यार का.
पत्थर को तोड़ती हुई मायूस है नज़र,
रोता है भूखा बचपन धूप में उधर,
कैसे जलेगा शाम को चूल्हा यह फिक्र है,
लायेगा वह कहाँ से उपहार प्यार का.
है प्यार सिर्फ़ नाम का, पैसे का खेल है,
कहने को शब्द भर हैं, न दिलों का मेल है,
जो ढो रहे हैं ज़िन्दगी का भार सिरों पर,
कैसे कहें कि उनको नहीं ज्ञान प्यार का.
बहुत ही बढ़िया अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteआपने दिखावटी प्यार की सारी कलई खोल दी है .
है गर नहीं गुलाब तो क्या प्यार ही नहीं,
अभिव्यक्त कर सके न,तो क्या प्यार ही नहीं,
इज़हार ही से आंकते गहराई प्यार की,
कैसे कहूँ मैं इसको त्यौहार प्यार का
आपकी कलम को नमन
है गर नहीं गुलाब तो क्या प्यार ही नहीं,
ReplyDeleteअभिव्यक्त कर सके न,तो क्या प्यार ही नहीं,
इज़हार ही से आंकते गहराई प्यार की,
कैसे कहूँ मैं इसको त्यौहार प्यार का.
pyaar to bas ehsaas hai...
है प्यार सिर्फ़ नाम का, पैसे का खेल है,
ReplyDeleteकहने को शब्द भर हैं, न दिलों का मेल है,
बिल्कुल सत्य...
बहुत खूब .....
ReplyDeleteशुभकामनायें भाई जी !
"...है प्यार सिर्फ़ नाम का, पैसे का खेल है,
ReplyDeleteकहने को शब्द भर हैं, न दिलों का मेल है,..."
आपने सच को बहुत ही सुन्दर शब्द दिए हैं सर!
'कहां किसी का प्यार पूरा होता है,
ReplyDeleteप्यार का तो पहला अक्षर ही आधा होता है।'
बेहतरीन अभिव्यक्ति।
सुंदर अभिव्यक्ति ! सच्चे प्यार में प्रतिदान की न तो कोई चाह होती है न ही कोई उलाहना !
ReplyDeleteहै गर नहीं गुलाब तो क्या प्यार ही नहीं,
ReplyDeleteअभिव्यक्त कर सके न,तो क्या प्यार ही नहीं,
-बहुत उम्दा!!
है गर नहीं गुलाब तो क्या प्यार ही नहीं,
ReplyDeleteअभिव्यक्त कर सके न,तो क्या प्यार ही नहीं,
इज़हार ही से आंकते गहराई प्यार की,
कैसे कहूँ मैं इसको त्यौहार प्यार का.
सुन्दर,सामयिक और प्यारी रचना. बहुत बढ़िया.
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (14-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
है प्यार सिर्फ़ नाम का, पैसे का खेल है,
ReplyDeleteकहने को शब्द भर हैं, न दिलों का मेल है,
जो ढो रहे हैं ज़िन्दगी का भार सिरों पर,
कैसे कहें कि उनको नहीं ज्ञान प्यार का.
आज की परिस्थितियों से आपने बखूबी परिचय करवा दिया .....
Bahut khoob !
ReplyDeleteहै प्यार सिर्फ़ नाम का, पैसे का खेल है,
ReplyDeleteकहने को शब्द भर हैं, न दिलों का मेल है,
जो ढो रहे हैं ज़िन्दगी का भार सिरों पर,
कैसे कहें कि उनको नहीं ज्ञान प्यार का.
सुन्दर रचना
प्रेम दिवस की बधाई!
गुलाब और प्यार में शायद पुराना रिश्ता है
ReplyDeleteहै प्यार सिर्फ़ नाम का, पैसे का खेल है,
ReplyDeleteकहने को शब्द भर हैं, न दिलों का मेल है,
जो ढो रहे हैं ज़िन्दगी का भार सिरों पर,
कैसे कहें कि उनको नहीं ज्ञान प्यार का...
बहुत सुन्दर..सिर्फ अहसास है ये रूह से महसूस करो...
आज की परिस्थितियों से रूबरू कराती बेहतरीन रचना....
पत्थर को तोड़ती हुई मायूस है नज़र,
ReplyDeleteरोता है भूखा बचपन धूप में उधर,
कैसे जलेगा शाम को चूल्हा यह फिक्र है,
लायेगा वह कहाँ से उपहार प्यार का.
ये पम्क्तियाँ बहुत ही प्रभावोत्पादक हैं
वसन्त पर आप द्वारा लिखी हुई कवित बहुत ही सुन्दर है
पत्थर को तोड़ती हुई मायूस है नज़र,
ReplyDeleteरोता है भूखा बचपन धूप में उधर,
कैसे जलेगा शाम को चूल्हा यह फिक्र है,
लायेगा वह कहाँ से उपहार प्यार का.
Kya baat kah dee!Ye kaisi vidambana hai!
आदरणीय शर्मा जी आपने प्यार को बड़े प्यार से दार्शनिक अंदाज में समझाया है |बधाई आपको सर |ब्लॉग पर आने के लिए आभार |
ReplyDeleteप्रेम को कितनी सार्थक और सच्ची अभिव्यक्ति दी आपने .....
ReplyDeleteप्रेम गहरा है, सतही नहीं।
ReplyDeleteप्रेम दिवस पे बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति शर्मा जी!
ReplyDeleteआपकी नज़र से प्यार के ये रंग भी जानने अछे लगे
ReplyDeleteSharma ji, Namaskar!
ReplyDeleteहै गर नहीं गुलाब तो क्या प्यार ही नहीं,
अभिव्यक्त कर सके न,तो क्या प्यार ही नहीं,
इज़हार ही से आंकते गहराई प्यार की,
कैसे कहूँ मैं इसको त्यौहार प्यार का.
Too much meaningful creation sir!
Too much impressive and sensitive,
Have bound to think again & again.
Thanks Sir! many -many thanks....
बहुत खूब। प्यार का यह रंग बहुत अच्छा लगा।
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना, आभार.
ReplyDeleteअच्छा लगा यहां आना
ReplyDeleteआदरणीय कैलाश जी
ReplyDeleteसादर सस्नेहाभिवादन !
प्रेम के बनावटी स्वरूप पर अच्छी रचना लिखी है आपने -
है गर नहीं गुलाब तो क्या प्यार ही नहीं ?
अभिव्यक्त कर सके न, तो क्या प्यार ही नहीं ?
इज़हार ही से आंकते गहराई प्यार की … !
भाव बहुत दूर ले गए … बहुत पीछे की ओर …
वो क्या समझे प्यार को , जिनका सब कुछ चांदी सोना है
धन वालों की इस दुनिया में दिल तो एक खिलौना है
सदियों से दिल टूटता आया , दिल का बस ये रोना है…
आभार !
प्रेम बिना निस्सार है यह सारा संसार !
प्रणय दिवस मंगलमय हो ! :)
बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
है प्यार सिर्फ़ नाम का, पैसे का खेल है,
ReplyDeleteकहने को शब्द भर हैं, न दिलों का मेल है,
जो ढो रहे हैं ज़िन्दगी का भार सिरों पर,
कैसे कहें कि उनको नहीं ज्ञान प्यार का.
वेलेन्टाइन डे की यही हकीकत है . सुंदर अभिव्यक्ति के लिये आभार.
है प्यार सिर्फ़ नाम का, पैसे का खेल है,
ReplyDeleteकहने को शब्द भर हैं, न दिलों का मेल है,
जो ढो रहे हैं ज़िन्दगी का भार सिरों पर,
कैसे कहें कि उनको नहीं ज्ञान प्यार का.
वेलेन्टाइन डे की यही हकीकत है . सुंदर अभिव्यक्ति के लिये आभार.
है गर नहीं गुलाब तो क्या प्यार ही नहीं,
ReplyDeleteअभिव्यक्त कर सके न,तो क्या प्यार ही नहीं,
बहुत गहरी बात लिखी आपने .
.
दिल की गहराइयों से निकली आवाज़ . सुंदर कविता. आभार .
ReplyDeleteAwismarniy prastuti !
ReplyDeleteआदरणीय कैलाश जी नमस्कार .
ReplyDeleteदिल की गहराइयों से निकली आवाज़ . सुंदर कविता, बहुत बढ़िया.
आआजकल के युवा प्यार और आस्क्ति मे फर्क नही कर पा रहे\ प्यार कहाँ रहा अब आस्क्ति को ही प्यार माना जा रहा है। सुन्दर रचना। बधाई।
ReplyDeleteहै गर नहीं गुलाब तो क्या प्यार ही नहीं,
ReplyDeleteअभिव्यक्त कर सके न,तो क्या प्यार ही नहीं,
बहुत ही सुन्दर गहन भावों का समावेश हर पंक्ति में ।
खूबसूरत प्रस्तुति.
ReplyDeleteसुन्दर,सामयिक और प्यारी रचना. बहुत बढ़िया.
ReplyDeleteप्रेमदिवस की शुभकामनाये !
ReplyDeleteकई दिनों से बाहर होने की वजह से ब्लॉग पर नहीं आ सका
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
ye baat to bilkul sach hai ...
ReplyDeleteप्यार तो बस प्यार है, हर चीज से ऊपर ! प्यार और दिखावट पर आपकी रचना बहुत अच्छी लगी ...
ReplyDeleteवाह...वाह...वाह...इस बेजोड़ रचना के माध्यम से आपने मेरे दिल की बात लिख दी...बधाई...
ReplyDeleteनीरज
है गर नहीं गुलाब तो क्या प्यार ही नहीं,
ReplyDeleteअभिव्यक्त कर सके न,तो क्या प्यार ही नहीं,
इज़हार ही से आंकते गहराई प्यार की,
कैसे कहूँ मैं इसको त्यौहार प्यार का.
आपने तो मेरे दिल की बात लिख दी !
भारत में तो हर दिन प्यार के इजहार का दिन होता है !
पूरी कविता सच्चाई का आईना है !
बहुत, बहुत साधुवाद कैलाश जी
है प्यार सिर्फ़ नाम का, पैसे का खेल है,
ReplyDeleteकहने को शब्द भर हैं, न दिलों का मेल है,
जो ढो रहे हैं ज़िन्दगी का भार सिरों पर,
कैसे कहें कि उनको नहीं ज्ञान प्यार का।
प्यार का गहन विश्लेषण करती एक अच्छी रचना।
jindagi ke donon pahluon par aapki nazar hai..
ReplyDeleteek taraf pyaar ke izhaar par dikhavatipan...aur doosari taraf bina izhaar ke jarooraton ko poora karne main laga hua sachcha pyaa...!!
shaayad hum pyaar ko dikhne wala apna dil,dimaag aur aankh kho chuke hain...isiliye ek gulaab de kar kaam chala lete hain.!!
अब यहाँ सुख चैन के मंजर नहीं मिलते
ReplyDeleteबात होती है जुबां से दिल नहीं मिलते
काट डाले नफरतो की बेड़िया मिलकर
"धीर" ढूंढे से भी वो खंजर नहीं मिलते
........आपको पढ़कर सीखने का प्रयास
करता हूँ, काश आप जैसा लिख पाता....
आपका अनुज.....
धीरेन्द्र गुप्ता"धीर"
पत्थर को तोड़ती हुई मायूस है नज़र,
ReplyDeleteरोता है भूखा बचपन धूप में उधर,
कैसे जलेगा शाम को चूल्हा यह फिक्र है,
लायेगा वह कहाँ से उपहार प्यार का.
behad khoobsurat
पत्थर को तोड़ती हुई मायूस है नज़र,
ReplyDeleteरोता है भूखा बचपन धूप में उधर,
कैसे जलेगा शाम को चूल्हा यह फिक्र है,
लायेगा वह कहाँ से उपहार प्यार का.
bahut pyara...
priya sharma sahab ,
ReplyDeletepranam
kya bat hai ! anang ke sath chipi umang varnit karti hai bhavnaon ki bhasha ,paribhasha ko . sundar kavya .badhayiyan .
बहुत अर्थपूर्ण रचना सर !
ReplyDeleteआप हमारे ब्लॉग में पधारे, हमें प्रोत्साहन दिया ! आपका हार्दिक धन्यवाद व आभार !:-)
आज सुबह से मन में बार बार यही विचार उभर रहे थे... 'आई लव यू' कहने से या लिखने से ही प्यार की अभिव्यक्ति होती है क्या ? ये तीन बेजान शब्द... कहा जाता है, इनमें बड़ी ताक़त होती है.., क्या सचमुच, बोल देने से... प्यार के होने का अहसास संपूर्ण हो जाता है ? प्यार अगर फूलों की डगर है...तो उसकी महक से ताउम्र दिल महकता रहना चाहिए और प्यार अगर काँटों की डगर है...तो उसकी चुभन से ताउम्र दिल में मीठी कसक रहनी चाहिए...~प्यार सिर्फ़ बोल नहीं है...इसका एहसास बहुत ही अनोखा, अनमोल है...जो हर किसी के नसीब नहीं है...
~सादर !