खटखटाने को तरसता है दरवाज़ा,
नहीं आती कोई कदमों की आहट भी,
बैठे हुए कमरे में
तक़ते हैं उदास नज़रों से
एक दूसरे को,
जानते हैं कोई नहीं आयेगा
फिर भी इंतज़ार है
किसी के आने की आहट का.
(२)
इतने अश्क बहे आँखों से
कि स्वप्न भी
सूख गये,
चलो किसी आँख से
सपने उधार ले आयें.
सूनेपन को बहुत अच्छा बयां किया है सर!
ReplyDeleteसादर
इतने अश्क बहे आँखों से
ReplyDeleteकि स्वप्न भी
सूख गये,
चलो किसी आँख से
सपने उधार ले आयें.
Bahut khoob Kailashji....Bemisaal abhivyakti...Bhavon ko jaise shabd mil gaye.
hrdy ke bhavon ko bahut gahrai ke sath prastut kiya hai aapne .sadar ..
ReplyDeleteaap ki lekhni dil ko gehrai se choo jati hai
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा.
ReplyDeleteदोनों रचनायों ने दिल छू लिया.
सलाम.
इतने अश्क बहे आँखों से
ReplyDeleteकि स्वप्न भी
सूख गये,
चलो किसी आँख से
सपने उधार ले आयें.
..... bahut bahut badhiya
"
ReplyDeleteचलो किसी आँख से सपने उधार ले आएं " बहुत सुन्दर
बहुत प्यारा भाव लिए हुए कविता है |
आशा
इतने अश्क बहे आँखों से
ReplyDeleteकि स्वप्न भी
सूख गये,
चलो किसी आँख से
सपने उधार ले आयें
दोनों ही रचनाएँ.... बेहतरीन ....
चलो किसी आँख से
ReplyDeleteसपने उधार ले आयें.
सुंदर अभिव्यक्ति बधाई...
अकेलेपन और खालीपन को बयां करती दोनों रचनाएँ बहुत ही अच्छी हैं !
ReplyDelete"चलो किसी आँख से
ReplyDeleteसपने उधार ले आयें."
रचनाएं सुन्दर हैं
लेकिन ये पंक्तियाँ जीवन का सूत्र-वाक्य सी हैं
दोनों रचनाएं दिल को छू गईं।
ReplyDeleteसूनेपन को दर्शाती अच्छी रचनाएँ ..
ReplyDeletepriya sharma sahab ,
ReplyDeletepranam ,
kavya lalit thodi si panktiyon men ,utkristh ban
gaya hai .gahrayion men le jate samveg . sundar .
aahat aur intezaar , achhi kavita hai kailash ji
ReplyDeleteकैलाश जी आप निसंदेह परिपक्व कवि हो ।
ReplyDeleteअलग ही हो । क्या कहूँ ।
कैलाश जी अब ब्लाग वर्ळ्ड काम पर ही सही कोड उपलब्ध
ReplyDeleteहै । उसे कापी करके फ़िर से लगायें । तो इमेज भी दिखेगी ।
आज का दुख तो यही है कि कोई सपने भी उधार नहीं देता है।
ReplyDeleteअज कल तो सपने भी कहाँ उधार मिलते हैं। सुन्दर अभिव्यक्ति। शुभकामनायें।
ReplyDeleteexcellent .....
ReplyDeleteआद.कैलाश जी,
ReplyDeleteआपकी रचनाएं हमेशा दिल को छूती हैं !
इतने अश्क बहे आँखों से
कि स्वप्न भी
सूख गये,
चलो किसी आँख से
सपने उधार ले आयें
वाह! क्या बात कह दी ,हम सभी के पास उधार के ही सपने तो हैं !
आभार !
दोनों रचनायों ने दिल छू लिया.
ReplyDeleteदोनो रचनायें अंतस मे उतर गयीं और निशब्द कर गयीं।
ReplyDeleteसूनापन और सपनों का अभाव दोनों ही संवेदनशील हृदय को आहत कर जाते हैं !
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी प्रस्तुति...
ReplyDeleteकमाल की रचना ! आपकी कल्पनाओं को शुभकामनायें !!
ReplyDeleteअकेलेपन की बेहतरीन अभिव्यक्ति .......
ReplyDeleteशुभकामनायें ।
जानते हैं कोई नहीं आएगा , फिर भी इन्तजार है ...
ReplyDeleteचलो किसी आँख से सपना चुराएँ ....
सुन्दर !
इतने अश्क बहे आँखों से
ReplyDeleteकि स्वप्न भी
सूख गये,
चलो किसी आँख से
सपने उधार ले आयें.
कैलाश जी ऐसे तो दोनों ही रचनाएँ उत्तम है पर यह पंक्तियाँ तो लाजवाब है. बहुत बड़ी बात कह दी. शुभकामनाएँ.
इतने अश्क बहे आँखों से
ReplyDeleteकि स्वप्न भी
सूख गये,
चलो किसी आँख से
सपने उधार ले आयें।
सपने उधार लाना - यह कल्पना अच्छी लगी।
सच है, आज आदमी की आंखों से सपने भी सूखने लगे हैं।
हाँ , कभी-कभी जीवन में ऐसी परिस्थिति आती है की कोई दरवाजा खडके और कोई आये । लेकिन किसी के आने का लंबा इंतज़ार करने से बेहतर है , की निकल पड़ें उस बंद दरवाज़े के बाहर , किसी से मिलने । फिर अनजाने भी अपने से लगने लगते हैं ।
ReplyDeleteकुछ भी नही कहेगें , क्योकि जो कुछ भी कहा वो कम ही होगा ।
ReplyDeleteJeevan kaa yatarth bayaan kartee,behad sundar kshanikayen!
ReplyDeleteवाह ....बहुत ही सुन्दर शब्द ।
ReplyDeleteदोनों रचनाएँ लाजवाब है.
दोनो रचनाओं मे तन्हाई की व्यथा। अच्छी रचना के लिये शुभकामनायें।
ReplyDeleteआदरणीय कैलाश जी ... दोनों ही रचनाएँ बहुत भावमयी है ... सीधा दिल की गहराईयों में उतरने वाली ... शुभकामनाएं
ReplyDeleteदोनों रचनाएँ बहुत ही अच्छी हैं| धन्यवाद|
ReplyDeleteचलो किसी आँख से
ReplyDeleteसपने उधार ले आयें.bahut sunder....
दोनों रचनाएँ लाजवाब है
ReplyDeleteक्या सच में तुम हो???---मिथिलेश
यूपी खबर
न्यूज़ व्यूज और भारतीय लेखकों का मंच
दोनों ही शब्दचित्र बहुत बढ़िया हैं!
ReplyDeleteबाऊ जी,
ReplyDeleteमाफ़ कीजिये अगर मैं पर्सनल हो रहा हूँ.
लेकिन कविता पढ़के ऐसा लगता है जैसे बुज़ुर्ग मियाँ-बीवी राह देख रहे हो के....
मेरे सपने आपके सपने....
कवितायेँ अच्छी हैं अगर कवितायें भर हैं तो,
आशीष
Kailash ji, In dono kavitaon mein bahut gehre bhaav hain .....
ReplyDeleteSurinder Ratti
Mumbai
आदरणीय शर्मा जी आपने बहुत सुंदर कविताएं लिखी हैं |इसमें सुंदर विचारों के महकते गुलदस्ते हैं |बधाई
ReplyDeleteवाह ...बहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
ReplyDelete'कुछ दिल ने कहा ...,कुछ दिल ने सुना ...
ReplyDeleteकुछ भी नहीं... कुछ भी नहीं.....
ऐसी भी बातें होती हैं ,ऐसी भी बातें होती हैं '
आपकी सुंदर अभिव्यक्ति ने मजबूर कर दिया उपरोक्त
पंक्तियाँ गुनगुनाने को .मार्मिक और भावपूर्ण रचना .
ये तन्हाई का आलम यूं छाया...
ReplyDeleteकि अब अपनों ने भी साथ छोड़ दिया...
बहुत सुन्दर...
आदरणीय शर्मा जी ! आज प्रथम बार आपके यहाँ आना हुआ. आपकी कुछ रचनाओं का अवलोकन किया. लगा, टेढ़ी-मेढ़ी गलियों से निकलकर एक साफ़-सुथरे पार्क में आ गया हूँ . आपकी कुछ रचनाएँ तो निश्चित ही कालजयी हैं. आपके ब्लॉग पर आने की बाध्यता हो गयी है अब.
ReplyDeleteपहली रचना पढ़ कर तो मैं डर गया हूँ, क्या सेवानिवृत्ति के बाद हमारा भी यही हाल होना है ? दूसरी रचना के लिए निःशब्द हूँ.