सरसों के खिले फूल,
ओढ़े पीला दुकूल,
हरियाली नाच रही, आया वसंत है.
प्रियतम हैं आन मिलें,
मन के सब द्वार खुलें,
तनमन में नाच रहा जैसे अनंग है.
हिरणी सा मन चंचल,
गिरता सिरसे आँचल,
बार बार तके द्वार, आया न कन्त है.
पढती बार बार पाती,
क्यों न उन्हें याद आती,
क्यों मेरी राहें ही, सूनी अनंत है.
सरसों का पीलापन,
चहरे पर आया छन,
होगये कपोल पीत, कैसा वसंत है.
कोयल की मधुर कूक,
उर में बढ़ जाती हूक,
पतझड़ है चहुँ ओर, कहाँ पर वसंत है ?
ओढ़े पीला दुकूल,
हरियाली नाच रही, आया वसंत है.
प्रियतम हैं आन मिलें,
मन के सब द्वार खुलें,
तनमन में नाच रहा जैसे अनंग है.
हिरणी सा मन चंचल,
गिरता सिरसे आँचल,
बार बार तके द्वार, आया न कन्त है.
पढती बार बार पाती,
क्यों न उन्हें याद आती,
क्यों मेरी राहें ही, सूनी अनंत है.
सरसों का पीलापन,
चहरे पर आया छन,
होगये कपोल पीत, कैसा वसंत है.
कोयल की मधुर कूक,
उर में बढ़ जाती हूक,
पतझड़ है चहुँ ओर, कहाँ पर वसंत है ?
सरसों का पीलापन,
ReplyDeleteचहरे पर आया छन,
होगये कपोल पीत, कैसा वसंत है.
कविता का हर शब्द गहरा अर्थ संप्रेषित करता है ...कहाँ है बसंत ..सुंदर
बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteमन वासंती हो गया ..
ReplyDeleteवास्तव में बहुत सुन्दर गीत !
पढती बार बार पाती,
ReplyDeleteक्यों न उन्हें याद आती,
क्यों मेरी राहें ही, सूनी अनंत है ...
प्रेम और विरह के रंगों को समेटे सुन्दर रचना है ..
बहुत ही अच्छा चित्र प्रस्तुत करती कविता.
ReplyDeleteसादर
बहुत ही खुबसुरत रचना। आभार।
ReplyDeleteसरसों का पीलापन,
ReplyDeleteचहरे पर आया छन,
होगये कपोल पीत, कैसा वसंत है.
vasant ka vaasanti varnan
पढती बार बार पाती,
ReplyDeleteक्यों न उन्हें याद आती,
क्यों मेरी राहें ही, सूनी अनंत है.
दिल को छूती हैं ये पंक्तियाँ !
सरसों का पीलापन,
ReplyDeleteचहरे पर आया छन,
हो गये कपोल पीत, कैसा वसंत है।
बसंत के आगमन पर विविध दृश्यों को आकार देता सुंदर गीत।
ऐसा सरस गीत बहुत दिनों के बाद पढ़ने को मिला।
basant ka bahut sunder varnan
ReplyDelete...
सरसों का पीलापन, चहरे पर आया छन,
ReplyDeleteहो गये कपोल पीत, कैसा वसंत है
आपने तो बसंत को आम आदमी से जोड़ दिया | सुंदर रचना ,बधाई
जीवन और बसन्त का विरोधाभास दृष्टिगत है।
ReplyDeletepeele rang ka bahut sunder barnan kiya hai
ReplyDeleteवसंत को आपने शब्दों के वृक्ष से महका दिया /
ReplyDeleteवसंत की आपको ढेरो शुब्कामना.........
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteजीवन की हालातों ने छीने वासंतिक रंग .... बहुर सुंदर प्रासंगिक रचना
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना
ReplyDeleteबसंत के आगमन पर बहुत ही खुबसुरत रचना। आभार।
ReplyDeleteहिरणी सा मन चंचल,
ReplyDeleteगिरता सिरसे आँचल,
बार बार तके द्वार, आया न कन्त है
बहुतसुन्दर, शब्द रचना ख़ूबसूरत समाविष्ट की है कैलाश जी आपने !
सारी बातें बिल्कुल सच । फ़िर भी, मन बसंती कर लीजिये, फिर सब बसंती ही लगेगा । बहुत अच्छी रचना ।
ReplyDelete.
ReplyDeleteसरसों का पीलापन,
चहरे पर आया छन,
होगये कपोल पीत, कैसा वसंत है....
मन -मयूर वसंतमय हो गया ...
.
वसंत के आगमन का संदेश देती मनुहार भरी कृति !
ReplyDeletebasant me sab kuchh manbhavan ho jata hai .bahut sundar rachna .
ReplyDeleteवसंत के आगमन पर बहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
ReplyDeleteमेरे नये ब्लाग आत्म-चिंतन का अवलोकन कर अवगत करायें .. आभार ।
http://aatamchintanhamara.blogspot.com/
बहुत प्यारा गीत लिखा है सर आपने बहुत बहुत बधाई |
ReplyDeleteबसंत के स्वागत में सुदंर कविता | आपकी कविता से बसंत के आने की सूचना मिली | आजकल बसंत कविताओं, कहानियों, खबरों में ही मिलता है | मुझे कवि पद्माकर की पंक्तियां याद आती हैं
ReplyDelete"कूलन में, केलिन में, कछारन में, कुंजन में......बगरो बसंत है "
आभार
bahut hi sunder geeet. chitra bhi kafi manmohak hai. sunder prastuti.
ReplyDeletebahut pyari rachna.
ReplyDeleteकोमल अहसासो को समेटे, दिल की गहराईयों को छूने वाली खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.सादर,
ReplyDeleteडोरोथी.
कोयल की मधुर कूक,
ReplyDeleteउर में बढ़ जाती हूक,
पतझड़ है चहुँ ओर, कहाँ पर वसंत है
सुन्दर रचना !
priy sharma sahab
ReplyDeletepranam
man ke antardwand ko badi safayi ke sath paribhashit kar diya hai aapane. varna kalpanaon men jikar aatm-mugdh ,to hote hi rahte hain .sundar rachna,jaisi ham aapse asha rakhate hain
shukriya .
वसंत के कोमल खूबसूरत एहसास .
ReplyDeleteवसंत की आपको ढेरो शुब्कामना.........
ReplyDeleteसुन्दर रचना , आशावान तो हम भी है कि वसंत आयेगा !आपको वसंत पंचमी की शुभकामनाये !
ReplyDeleteVasanti rangon me rangi,kinchit udaas rachana....par hai bahut pyari!
ReplyDeleteबसंत के आगमन पर बहुत ही खुबसुरत रचना। आभार।
ReplyDeleteवसन्त की आप को हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteकई दिनों से बाहर होने की वजह से ब्लॉग पर नहीं आ सका
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
आपको वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
vasant panchami ki shubhkamnayein !....
ReplyDeleteकोयल की मधुर कूक,
ReplyDeleteउर में बढ़ जाती हूक,
पतझड़ है चहुँ ओर, कहाँ पर वसंत है ?
sahi kaha, parives me basant kho sa gya h.
कोयल की मधुर कूक,
ReplyDeleteउर में बढ़ जाती हूक,
पतझड़ है चहुँ ओर, कहाँ पर वसंत है ?
हर बसंत रंग भरा नही होता। अच्छी लगी रचना। बधाई।
badi hi sundar kavita hai sir....bilkul vasant jaisi.....bohot khoobsurat
ReplyDeleteबसंत पर प्यारा गीत , प्यारी अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteaadarniy sir
ReplyDeletewah!basant ke avsar par likha gaya aapka yah geet to sach me man ko basanti rang me bhigo gaya.
bahut hi behatreen.
सरसों का पीलापन,
चहरे पर आया छन,
होगये कपोल पीत, कैसा वसंत है.
dono hi rupon ka behatreen samanjasy---
poonam
बस आपकी कविया में आ ही गया है...
ReplyDeleteसो मौसम में भी चा जायेगा बसंत...
और आपके सवाल का जवाब बनकर तो आना ही पड़ेगा...
वाह!
ReplyDeleteपतझड़ है चहुँ ओर, कहाँ पर वसंत है ?
ReplyDeleteशर्मा जी, सच में कहाँ वसन्त है?
पेड़ ही नहीं हैं तो वसन्त क्या कल्पनालोक में होगा। कंक्रीट के बढ़ते जंगलों ने हरे-भरे वनों को निगल लिया है। अब हम कवियों की कविता में वसन्त का अनुभव कर सकते हैं। पद्माकर को पढ़कर हतप्रभ हो सकते हैं कि क्या ऐसा वसन्त कभी रहा होगा....................पर विडम्बना है कि हम उसे वर्तमान नहीं कर सकते।
आज की एक सार्वभौमिक समस्या को आपने उजागर किया है। इतनी प्रभावोत्पादक कविता लिखने के लिये धन्यवाद, जिसपर टिप्पणी किये बिना रहा नहीं गया।