(मथुरा में जन्म लेने के कारण बिहारी जी और यमुना जी से बहुत लगाव है. यमुना के बचपन से विभिन्न रूप देखे हैं. गत वर्ष मथुरा, ब्रन्दावन और गोकुल में यमुना के प्रदूषण और दुर्दशा को देख कर मन बहुत व्यथित हुआ. मन की पीड़ा शब्दों में उतर गयी. पिछले सप्ताह मथुरा जाने का फिर अवसर मिला. इतनी योजनाएं बनने के बाद भी स्तिथि यथावत है. यद्यपि इस विषय पर मैंने अपनी रचना पिछले वर्ष पोस्ट की थी,जो मेरे ब्लॉग की दूसरी पोस्ट थी, लेकिन इस विषय और रचना से विशेष लगाव होने की वजह से, मैं इसे दुबारा पोस्ट करने की गुस्ताखी कर रहा हूँ.)
यमुने कैसे देखूँ तेरा यह वैधव्य रूप ,
मैंने तुमको प्रिय आलिंगन में देखा है।
है कहाँ गया कान्हा तेरा यौवन साथी,
हो गये मौन क्यों आज मधुर बंसी के स्वर।
खो गयी कहाँ पर राधा की वह मुक्त हंसी,
लुट गये कहाँ पर सखियों के नूपुर के स्वर।मैंने तुमको प्रिय आलिंगन में देखा है।
है कहाँ गया कान्हा तेरा यौवन साथी,
हो गये मौन क्यों आज मधुर बंसी के स्वर।
खो गयी कहाँ पर राधा की वह मुक्त हंसी,
कैसे यमुने तेरे नयनों मैं जल देखूँ,
मैंने इनमें खुशियों का यौवन देखा है।
होगयी रश्मि की स्वर्णिम साडी कलुष आज,
होगये नक्षत्रों के आभूषण प्रभा हीन ।
ढलते सूरज ने मांग भरी जो सिंदूरी,
बढ़ता आता अँधियारा करने उसे लीन ।
यमुने कैसे देखूँ तेरा सूना आँचल ,
मैंने इसमें खुशियों का नर्तन देखा है।
दधि और दूध की जहाँ बहा करती नदियाँ,
अब वहां अभावों का मुख पर पीलापन है।
क्या साथ ले गये बचपन की क्रीड़ायें तुम,
या राधा की कान्हा से अब कुछ अनबन है।
आजाओ कान्हा एक बार फिर से तट पर,
मैं भी देखूँ वह जो ग्वालों ने देखा है।
इस चीरघाट पर अब भी चीर टंगे तरु पर,
पर नहीं कृष्ण जो सखियों का फिर तन ढक दे।
सूनी आँखों से दूषित यमुना राह तके ,
विष मुक्त किया था,जिसने कलि का वध करके।
कैसे निष्ठुर हो सकते हो तुम कृष्ण आज ,
जब राधा को मनुहारें करते देखा है .
मैंने इसमें खुशियों का नर्तन देखा है।
दधि और दूध की जहाँ बहा करती नदियाँ,
अब वहां अभावों का मुख पर पीलापन है।
क्या साथ ले गये बचपन की क्रीड़ायें तुम,
या राधा की कान्हा से अब कुछ अनबन है।
आजाओ कान्हा एक बार फिर से तट पर,
मैं भी देखूँ वह जो ग्वालों ने देखा है।
इस चीरघाट पर अब भी चीर टंगे तरु पर,
पर नहीं कृष्ण जो सखियों का फिर तन ढक दे।
सूनी आँखों से दूषित यमुना राह तके ,
विष मुक्त किया था,जिसने कलि का वध करके।
कैसे निष्ठुर हो सकते हो तुम कृष्ण आज ,
जब राधा को मनुहारें करते देखा है .
यमुने कैसे देखूँ तेरा सूना आँचल ,
ReplyDeleteमैंने इसमें खुशियों का नर्तन देखा है।
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आजाओ कान्हा एक बार फिर से तट पर,
मैं भी देखूँ वह जो ग्वालों ने देखा है।
..........
itni vihwalta krishn se chhupi nahi rahegi
आपकी इस रचना ने तो निशब्द कर दिया।
ReplyDeleteKabhi to is iltija kee sunwayi hogi!
ReplyDeleteyamuna ko yamraj ki bahan mana gaya hai .kavita ki pahli panktee me aapne yamuna ke roop se pahle ''vidhur'' shabd ka prayog kiya hai jo uchit nahi lagta .yamuna ka ''vaidhavya ''roop jyada sahi hai .kavita bahut hi man ko chhoone vali hai .badhai .
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति। आभार।
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteसूनी आँखों से दूषित यमुना राह तके ,
विष मुक्त किया था,जिसने कलि का वध करके।
हमें अपने अन्दर के कान्हा को ही जगाना है.
सलाम
आदरणीय शर्मा जी!
ReplyDeleteआपकी यह रचना अन्तस्थ को छू गयी।
सच में करुणा ही इतने सुन्दर प्रभावकारी शब्दों में अपनी व्यथा कह सकती है।
अन्तस्थल से निकली हुई आवाज़ प्रत्येक हृदय को प्रभावित करती है, उती ही करुणा देती है, उतना ही व्यथित करती है, जितना कवि व्यथित होता है।
यही कारन है कि आज रामायण पढ़कर किसी सहृदय का हृदय उतना ही व्यथित होता है, उसके मुख पर भावों का उतना ही उतार-चढ़ाव देखा जा सकता है, जितना स्वयं वाल्मीकि को हुआ होगा।
उनकी क्रौञ्च-वध की व्यथा कथा रामायण है।
अन्तस् की करुणा उसमें फूटी है, यही कारन है कि यह महाकाव्य आज झोपड़ी से लेकर अट्टालिका तक समान रूप से स्वीकृत है।
आपकी यमुना के प्रति करुणा यहाँ काव्य बनकर प्रवाहित हुई है।
इन पक्तियों में महाकाव्य पीड़ा है।
कवि रचकर शोक से मुक्त होता है और कविता सहृदय, रसिक, पाठक, आलोचक, भावक द्वारा चर्वणा लेने से, स्वाद लेने से, रसपान करने से मुक्त होती है।
इस कविता को महाकाव्यात्मक विस्तार आवश्यक है। यह विस्तार इसे आप ही प्रदान कर सकते हैं, क्योंकि यमुना को आपने बचपन से देखा है, उससे हृदय से जुड़े हैं। और जिससे लगाव होता है, प्रेम होता है, जो आपसे प्रारम्भ से जुड़ा होता है, उसकी दुर्दशा एक संवेदनशील मस्तिष्क नहीं देख सकता।
इन पंक्तियों में जो मर्म है, व्यथा है, पीड़ा है, करुणा है वह अन्यत्र नहीं मिल सकती।
आप सौभाग्यशाली है कि आपके पास संवदनशील हृदय के साथ-साथ कवि-प्रतिभा भी है। अन्या जिनके पास यह प्रतिभा नहीं होती वो चाहकर भी काव्य रचकर मुक्त नहीम् हो सकते।
आप इसका विस्तार कीजिये।
हमें पूर्ण विश्वास है कि आपकी यह रचना किसी भी प्रसिद्ध महाकाव्य से कम समादृत नहीं होगी।
मैंने आपकी रचना सँजो ली है।
ReplyDeleteमुझे बहुत दिनों बाद हिन्दी में कोई हृदयस्पर्शी कविता मिली है, जो रस, ध्वनि के निकष पर खरी उतर सके।
यदि आपको उचित लगे तो
ReplyDelete"नूपुर के स्वर" के स्थान पर "नूपुर-स्वर" कर लें, लय निर्बाध रहेगी।
आगरा जन्मस्थान होने से मैं भी आपकी भावनाएं समझ सकता हूँ सर!
ReplyDeleteयमुना की वर्तमान स्थिति को ब खूबी चित्रित किया है आपने.
सादर
man ke dard ka bakhubi chitran kiya hai
ReplyDelete"यमुने कैसे देखूँ तेरा सूना आँचल ,
ReplyDeleteमैंने इसमें खुशियों का नर्तन देखा है।"
प्रदूषण और दुर्दशा से उपजी पीडा का हृदयस्पर्शी चि़ञण, मर्म तक आहत हो गया । साल भर बाद भी स्थिति ज्यों की त्यों है बल्कि और बिगडी होगी । जिन पर यह जिम्मेदारी है उनकी संवेदनाएं जागने पर ही सुधार सम्भव है । आशा है वह दिन जल्दी आएगा ।
priya sharma sahab
ReplyDeletepranam ,
itani siddat ke sath aaj yamuna ko kaun yad karta hai ? apki rachana antarman ko chhu gayi , atit ko mahasus karaya hai aapki kavya kala ne . dhanyavad.
यमुने कैसे देखूँ तेरा सूना आँचल ,
ReplyDeleteमैंने इसमें खुशियों का नर्तन देखा है।
निशब्द करतीं .....प्रभावी अभिव्यक्ति.....
यमुना के प्रति मन कि वेदना को सुन्दर शब्द दिए हैं ..बहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteह्रदय से निलकी रचना आपकी कवित्व प्रतिभा का परिचय करवाती हुई ..सार्थक सन्देश देती हुई अपने मंतव्य को स्पष्ट करती है ...आपका शुक्रिया
ReplyDeleteदधि और दूध की जहाँ बहा करती नदियाँ,
ReplyDeleteअब वहां अभावों का मुख पर पीलापन है।
क्या साथ ले गये बचपन की क्रीड़ायें तुम,
या राधा की कान्हा से अब कुछ अनबन है।
पावन नदी यमुना के परिवर्तित होते रूप का जीवंत चित्रण किया है आपने अपनी इस रचना में।
इस सुंदर काव्यात्मक अभिव्यक्ति के लिए आभार।
बहुत बेहतरीन प्रस्तुति वेदना और मर्म सब कुछ समाहित कर दिया है अपने
ReplyDeleteकमाल की रचना है, यमुना की दुर्दशा पर बेहद संवेदनशील रचना!
ReplyDeleteआपकी संवेदनशीलता को व्यक्त करती एक अनुपम रचना ! मेरा सम्बन्ध वाराणसी से है गंगा का पानी भी स्वच्छ नही रहा, लेकिन लोगों की आस्था पूर्ववत बनी हुई है.
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर कविता और बहुत ही गहरे भाव ! ऐसी रचनाएं कालजयी होती हैं। इसे दुबारा पोस्ट करके आपने अच्छा किया।
ReplyDeleteइस भावपूर्ण कविता के लिए हार्दिक बधाई।
गहरे भाव लिए अच्छी प्रस्तुति |
ReplyDeleteआशा
"यमुने कैसे देखूँ तेरा सूना आँचल ,
ReplyDeleteमैंने इसमें खुशियों का नर्तन देखा है।"
प्रदूषण और दुर्दशा से उपजी पीडा का हृदयस्पर्शी चि़ञण, प्रभावी अभिव्यक्ति..
इस भावपूर्ण कविता के लिए हार्दिक बधाई।
यमुने कैसे देखूँ तेरा यह वैधव्य रूप ,
ReplyDeleteमैंने तुमको प्रिय आलिंगन में देखा है।
गीत में आपकी पकड़ अच्छी है. सुन्दर लिखा है.
.
ReplyDeleteदेश की सभी नदियों का यही हश्र हो रहा है । इसका कारण है लोगों का स्वार्थी होना । अपनी आस्था के चलते गंगा- यमुना में डुबकी लगाकर पाप धोना चाहते हैं , लेकिन इन पवित्र नदियों की वर्तमान स्थिति से इन्हें कोई सरोकार नहीं है । जन-चेतना फैलाने वाली इस अद्भुत रचना के लिए आपका आभार ।
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बहुत सुंदर प्रस्तुति। आभार
ReplyDelete*गद्य-सर्जना*:-“तुम्हारे वो गीत याद है मुझे”
यमुना से आपका गहरा लगाव इस भावपूर्ण रचना में परिलक्षित हो रहा है । उत्तम संवेदनशील लेखन। आभार ...
ReplyDeleteह्रदय से निलकी रचना आपकी कवित्व प्रतिभा का परिचय करवाती हुई ..सार्थक सन्देश देती हुई आपका शुक्रिया
ReplyDeleteek hriday sparshi rachna...:)
ReplyDeleteआजाओ कान्हा एक बार फिर से तट पर,
ReplyDeleteमैं भी देखूँ वह जो ग्वालों ने देखा है।
kya kahoon sir....ab to kuch nahin kaha jaata, baanke bihari ji se apna bhi bohot gehra naata hai....yamuna ki ye gat mujhse bhi dekhi nahin jaati....aur kitne pyaar se likhi hai ye kavita aapne.....im so touched
यमुने कैसे देखूँ तेरा सूना आँचल ,
ReplyDeleteमैंने इसमें खुशियों का नर्तन देखा है।"
बहुत खूब ...सुन्दर भावमय करते शब्द ।
इस चीरघाट पर अब भी चीर टंगे तरु पर,
ReplyDeleteपर नहीं कृष्ण जो सखियों का फिर तन ढक दे।
सूनी आँखों से दूषित यमुना राह तके ,
विष मुक्त किया था,जिसने कलि का वध करके।
Bahut sundar !
यमुना की दुर्दशा पर सुन्दर लिखा है..बेहद संवेदनशील रचना..आपका आभार
ReplyDeleteकितना कष्ट बहता है उनके मन में जिन्होने यमुना को बहते देखा है।
ReplyDeleteumda vivran!
ReplyDeleteएक एक शब्द मन मे रस घोल गया। अति सुन्दर रचना। बधाई।
ReplyDeleteक्या साथ ले गये बचपन की क्रीड़ायें तुम,
ReplyDeleteया राधा की कान्हा से अब कुछ अनबन है।
बहुत प्यारा सा प्रश्न .....
कैसे यमुने तेरे नयनों मैं जल देखूँ....
सिर्फ यमुना का ही नहीं ...हर नदी का यही हाल है ....
यहाँ लोहित भी रो रही है .....
@ विष मुक्त किया था,जिसने कलि का वध करके।
कलि ....?
@ हरकीरत 'हीर' जी
ReplyDeleteकलि एक बहुत विशाल नाग था जिसने यमुना का जल ज़हरीला कर दिया था और उसका पानी किसी के पीने के लायक नहीं रहा था. एक दिन खेल में श्री कृष्ण की गेंद यमुना में गिर गयी, जिसको निकालने के लिए कृष्ण यमुना में कूद पड़े. पौराणिक गाथाओं के अनुसार कृष्ण ने काली नाग का वध कर के मनुष्यों को उसके भय से मुक्ति दिलाई थी.
सिर्फ़ नदियों का ही ये हाल नही है ,आज का समाज भी ऐसा ही दूषित हो गया है ...
ReplyDeleteयमुना को कष्ट में देख आपकी वेदना समझ पा रहा हूँ ! यह रचना कालजयी है ...आप अपना सन्देश देने में सफल रहे हैं !
ReplyDeleteआपको प्रणाम
अंतर्मन को कचोटती रचना |आपको बहुत बहुत बधाई सर |
ReplyDeleteइस चीरघाट पर अब भी चीर टंगे तरु पर,
ReplyDeleteपर नहीं कृष्ण जो सखियों का फिर तन ढक दे।
सूनी आँखों से दूषित यमुना राह तके ,
विष मुक्त किया था,जिसने कलि का वध करके।
संवेदनशील रचना बधाई
bahut sunder rachna , badhai
ReplyDeleteआदरणीय शर्मा जी!
ReplyDeleteनमस्कार !
..............संवेदनशील रचना बधाई
प्रिय श्री शर्मा जी,
ReplyDeleteकितनी मनोहारी है यह स्वप्न-भावाभिव्यक्ति ।
आ जाओ कान्हा एक बार फिर से तट पर,
मैं भी देखूँ वह जो ग्वालों ने देखा है।
हार्दिक अभिनंदन व साधुवाद।