Thursday, October 20, 2011

वक़्त की लहर

वक़्त की हर उत्तंग लहर
लेकर आती है
एक नयी लहर 
आशा की,
लेकिन लौटते हुए 
बहाकर ले जाती है
कुछ और रेत
पैरों के नीचे से,
और महसूस होता है
मेरे वज़ूद का एक और हिस्सा
बह गया है 
उस रेत के साथ.

46 comments:

  1. जमीन से जुड़ा वज़ूद लहरों से प्रभावित होता ही है

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  2. thode me hi bahut kuchh kah diya. gahen dard ko samaitTi sunder abhivyakti.

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  3. एक नयी लहर
    आशा की,
    लेकिन लौटते हुए
    बहाकर ले जाती है..बहुत गहन अनुभूति लिए सुन्दर अहसास...
    दीपावली की शुभकामनाएँ....

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  4. सुन्दर अभिवयक्ति कैलाश जी,
    मैं इन पंक्तियों को अपने ब्लॉग के काव्य मंच पेज पर स्थान देना चाहता हूँ | यदि आपकी आज्ञा हो तो |

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  5. लहरों सा उथल पुथल लिये जीवन।

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  6. @ Vaneet Nagpal-आप इसे अपने ब्लॉग के काव्य मंच पेज पर स्थान दे सकते हैं.

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  7. वाह!!!! बहुत गहरे भाव लिए जीवन के सत्य को ब्यान करती शानदार अभिव्यक्ति सर बहुत खूब......

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  8. गहरी भावाभिव्‍यक्ति।
    सुंदर प्रस्‍तुतिकरण।

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  9. गहन सोच लिए सार्थक रचना.

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  10. रेत के साथ वजूद का एक हिस्सा बह जाना ..मार्मिक भाव समेटे रचना ...

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  11. A deep statement in a few words..!
    Regards..!

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  12. और महसूस होता है
    मेरे वज़ूद का एक और हिस्सा
    बह गया है
    उस रेत के साथ.
    सुन्दर अभिवयक्ति.

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  13. एक और लहर आयेगी और नई आशा जगायेगी । हां पर ये आपने सही कहा कि लहर जब लौटती है तो लगता है कि पांव के नीचे से धरती फिसल रही है ।खम शब्दों में सुंदर आशय ।

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  14. वक़्त की लहर के साथ वजूद का हिस्सा...... बहुत खूब

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  15. बेहद खुबसूरत,बधाई..

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  16. कुछ और रेत
    पैरों के नीचे से...खूबसूरत

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  17. खूबसूरत प्रस्तुति |

    त्योहारों की नई श्रृंखला |
    मस्ती हो खुब दीप जलें |
    धनतेरस-आरोग्य- द्वितीया
    दीप जलाने चले चलें ||

    बहुत बहुत बधाई ||

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  18. सच का आईना दिखाती कविता।

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  19. समय को चंद शब्‍दों में समेट कर पूर्ण विस्‍तार दे दिया आपने, धन्‍यवाद.

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  20. गहन अभिव्यक्ति... शुभकामनायें

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  21. वाह ...बहुत ही गहरे भाव लिये हुये बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  22. उत्तम भावनात्मक कविता !

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  23. वक्त की रेत मे काफ़ी कुछ बह जाता है और जो बचता है वो ही अपना होता है।

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  24. bahut gahan bhaav darshati hui kavita.umda...

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  25. लेकिन आती हुई लहर कुछ न कुछ नया दे भी जाती है...जीवन इसी का नाम है!

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  26. फिर भी हम लहरों के लिए बाँहे फैलाए रहते हैं..

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  27. कुछ अलग ही बात कहती हैं यह पंक्तियाँ।
    ----
    कल 22/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  28. हर लहर के साथ हमारे पैरों के नीचे रेत कम हो रहे हैं और एक हम हैं की अपने पांव की तरफ़ न देख आकाश की ओर निहार रहे हैं।

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  29. और महसूस होता है
    मेरे वज़ूद का एक और हिस्सा
    बह गया है
    उस रेत के साथ.

    बहुत खुबसूरत..........ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी..........शानदार|

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  30. aasha ke baad niraasha jivan ka sach hai...
    और महसूस होता है
    मेरे वज़ूद का एक और हिस्सा
    बह गया है
    उस रेत के साथ.

    niraasha mein bhi aashaa awshyambhaavi hai. bahut achchhi rachna, badhai.

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  31. प्रभावशाली रचना को सम्मान , पवों की सुभकामना ,
    बधाईयाँ जी /

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  32. सरकती रेत... वाह!
    बहुत शानदार अभिव्यक्ति.....
    सादर बधाई...

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  33. बहुत ही प्यारी रचना....

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  34. सार्थक एवं सुन्दर प्रस्तुति

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  35. बहुत सही कहा आपने वक्त सच में कुछ ना कुछ ले जाता है हमसे...और हम खाली होते जाते हैं... पैरों के नीचे पड़े रेत कि तरह..

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  36. एक सम्पूर्ण जीवन दर्शन को समेटे बेहतरीन पंक्तियाँ ! बहुत ही अद्भुत रचना ! दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें स्वीकार करें !

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  37. सच समय तिल तिल कर बहाता जाता है बहुत कुछ और अंत में सब कुछ !मार्मिक !

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  38. वक्त की लहरों के थपेड़ों से भला कौन बच सका है ?
    सुंदर अभिव्यक्ति।

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  39. जीवन भी तो फिसलता रहता इसी रेत की तरह ... बहुत खूब ... लाजवाब रचना

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  40. शानदार अभिव्यक्ति ! प्यारी रचना !
    आपको एवं आपके परिवार के सभी सदस्य को दिवाली की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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