नहीं सहन होता
जब कोई कहता है,
तुम्हारी बेटी
बेटों से बढकर है.
एक वाक्य
लगा देता है प्रश्न चिन्ह
मेरे वज़ूद पर,
और जगा देता है
एक हीन भाव
बेटे से कमतर होने का.
क्यों मैं अवांछित रहती हूँ
जन्म लेने से पहले ही ?
क्यों मैं बन कर रह जाती हूँ
केवल सेकंड ऑप्शन
माँ बाप को
सांत्वना का ?
क्यों कर दिया जाता है
परायी जन्म लेते ही
और दिलाया जाता है
अहसास
हमेशा पराया होने का ?
देखे हैं किसी ने
मेरे आंसू
जो बहे हैं चुपचाप
उनसे दूर
उनकी याद में ?
नहीं बनना चाहती
वारिस
किसी विरासत का.
काश, मिलती पहचान
मुझे मेरे अपने अस्तित्व से
और न तुलना की जाती
मेरी किसी बेटे से.
नहीं बनना चाहती
ReplyDeleteवारिस
किसी विरासत का.
काश, मिलती पहचान
मुझे मेरे अपने अस्तित्व से
और न तुलना की जाती
मेरी किसी बेटे से.
Kaash!
बेटियाँ भी बेटों से अधिक अपना कर्म निभाती हैं।
ReplyDeleteक्यों मैं अवांछित रहती हूँ
ReplyDeleteजन्म लेने से पहले ही ?
क्यों मैं बन कर रह जाती हूँ
केवल सेकंड ऑप्शन
माँ बाप को
सांत्वना का ?
bahut sahi kaha
हर बेटी के मन के भावों को उकेर दिया है ..
ReplyDeleteमन को छूने वाली रचना।
ReplyDeleteथैन्क्स गॉड!
हमारे घर में बेटियां पहले दर्ज़े पर रहीं।
नहीं सहन होता
ReplyDeleteजब कोई कहता है,
तुम्हारी बेटी
बेटों से बढकर है.
bhut achi pankti.
मन को छूने वाली रचना। धन्यवाद|
ReplyDeleteकही अंतर तक झकझोरने वाली रचना. काश इस दर्द से उन्हें बाहर आने का रास्ता मिले और लोग कहे तुम्हारा बेटा तुम्हारी बेटी की तरह ही होनहार है किसी बेटी से कम नहीं.बधाई कैलाश जी
ReplyDeleteएक बिटिया को यहां देख सकते हैं.
ReplyDeletebilkul sahi kaha aapne.... sarthak abhivaykti...
ReplyDeletebahut hi badiyaa byang karati hui saarthak rachanaa .badhaai aapko
ReplyDeletemeri nai post per aapkaa swagat hai .
इस सम्बन्ध में इतना कहा ,लिखा .पढ़ा गया , लेकिन
ReplyDeleteयह बुराई मंच पर दीखती है ,परन्तु ,घरों में श्रधास्थालों ,कुलदेवता -स्थानों में ,पवित्र उचित व सर्व-मान्य है ,तो न्याय कैसे ,कहाँ ...इस कोढ़ का कौन करे इलाज ?.....
महत्वपूर्ण सामाजिक प्रश्न उठाया है। बहुत अच्छी सार्थक अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबेटियों को यथोचित स्थान मिले. उनकी अहमियत को समझाने की सुंदर कोशिश कविता के माध्यम से बहुत अच्छी लगी. धन्यबाद.
ReplyDeleteक्यों कर दिया जाता है
ReplyDeleteपरायी जन्म लेते ही
और दिलाया जाता है
अहसास
हमेशा पराया होने का
बेटियों का दर्द इन पंक्तियों में मुखर हो गया है।
यह तुलना वाकई निरर्थक है ,धीरे धीरे जायेगा । अच्छी रचना ।
ReplyDeleteकई बार बेटा भी जब घर के काम में हाथ बंटाता है तब यही कहा जाता है कि मेरा बेटा तो बेटियों से भी ज्यादा काम करता है।
ReplyDeleteExpressions at its best...
ReplyDeletetouch every possible points..
Lovely touched my heart :)
"काश, मिलती पहचान
ReplyDeleteमुझे मेरे अपने अस्तित्व से
और न तुलना की जाती
मेरी किसी बेटे से।"
कडवा सच।
नहीं बनना चाहती
ReplyDeleteवारिस
किसी विरासत का.
काश, मिलती पहचान
मुझे मेरे अपने अस्तित्व से
और न तुलना की जाती
मेरी किसी बेटे से.
बहुत सशक्त प्रस्तुति।
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 03-10 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में ...किस मन से श्रृंगार करूँ मैं
शादी के बाद मारी जाती हैं बहुएं
ReplyDeleteऔर बेटियाँ ...
जन्म से पहले ही
घोंट दिया जाता है उनका गला
ये हिन्दू धर्म में कितना विरोधाभास है की हम नारी जाति की देवी के रूप में पूजा भी करते हैं. काश हमारा कथनी और करनी एक होता ?
बहुत खूब कहा है कही अंतर तक झकझोरने वाली समझने योग्य है
बहुत अच्छी सार्थक अभिव्यक्ति
बहुत सार्थक रचना सर,,,
ReplyDeleteसादर...
बहुत सुन्दर ....मन को छूने वाली रचना।..
ReplyDeleteबहुत सार्थक प्रस्तुति!
ReplyDelete--
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और यशस्वी प्रधानमंत्री रहे स्व. लालबहादुर शास्त्री के जन्मदिवस पर उन्हें स्मरण करते हुए मेरी भावपूर्ण श्रद्धांजलि!
इन महामना महापुरुषों के जन्मदिन दो अक्टूबर की आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
bahut sahi aur sach kaha....beti ki kasak kaun samjhta hai.
ReplyDeleteबाऊ जी,
ReplyDeleteनमस्ते!
सशक्त अभिव्यक्ति और एक जायज़ ख्वाहिश.
आशीष
--
लाईफ?!?
saarthak post!!!
ReplyDeleteआपकी पोस्ट ब्लोगर्स मीट वीकली (११) के मंच पर प्रस्तुत की गई है /आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत कराइये/आप इसी तरह मेहनत और लगन से हिंदी की सेवा करते रहें यही कामना है /आपका
ReplyDeleteब्लोगर्स मीट वीकली
के मंच पर स्वागत है /जरुर पधारें /
बेटियों की तुलना किसी भी बेटे से करना गलत बात है | जब तक हम तुलना करते रहेगें, तो वो अपनी अहमियत कैसे समझेंगी |
ReplyDelete*******बहुत ही सुन्दर रचना ******
दिल को झकझोर देने वाली कविता... सचमुच आज भी समाज में लिंग भेद किया जाता है...जो शर्मनाक है.
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत रचना! दिल को छू गई! बेटा और बेटी में आजकल कोई फर्क नहीं है!
ReplyDeleteनहीं सहन होता
ReplyDeleteजब कोई कहता है,
तुम्हारी बेटी
बेटों से बढकर है.
बहुत ही बढि़या ।
हमको अपनी मानसिकता बदलने की ज़रूरत है .......
ReplyDeleteलाजवाब रचना
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत अहसास समेटे पोस्ट.........लाजवाब |
ReplyDeleteबेटियों के मनोभावों का सुंदर और भावनात्मक प्रस्तुतिकरण....
ReplyDeleteवैसे यह मानव स्वभाव है कि वह तुलना करना चाहता है हर किसी का... बेटियां यदि अच्छा काम करें मेरी बेटी बेटे से बढकर है... या मेरी बेटी मेरा बेटा है... बेटे यदि घर के कामों में सहयोग करें तो मेरा बेटा बेटी की तरह मदद कर रहा है... आदि आदि....
बेटियों के मनोभावों का सुंदर और भावनात्मक प्रस्तुतिकरण....
ReplyDeleteवैसे यह मानव स्वभाव है कि वह तुलना करना चाहता है हर किसी का... बेटियां यदि अच्छा काम करें मेरी बेटी बेटे से बढकर है... या मेरी बेटी मेरा बेटा है... बेटे यदि घर के कामों में सहयोग करें तो मेरा बेटा बेटी की तरह मदद कर रहा है... आदि आदि....
नहीं बनना चाहती
ReplyDeleteवारिस
किसी विरासत का.
काश, मिलती पहचान
मुझे मेरे अपने अस्तित्व से
और न तुलना की जाती
मेरी किसी बेटे से.
Kitni Sunder aur Arthpoorn panktiyan hain...... sach me betiyon ke man ki baat ....
विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं। बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक यह पर्व, सभी के जीवन में संपूर्णता लाये, यही प्रार्थना है परमपिता परमेश्वर से।
ReplyDeleteनवीन सी. चतुर्वेदी
आपको विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
ReplyDeleteकैलाश जी नमस्कार, सुन्दर भाव मन को छू जाने वाली रचना -नही बनना चाह्ती विरासत-----------------
ReplyDeleteये हालत तो तब है जब बेटा न तो आजकल "आई एस आई "मार्का होता है न "ब्यूरो ऑफ़ इन्डियन स्टेंडर्ड "सा .मानकीकरण तो तब हो जब भारतीय मर्द अपने दिमाग से सोचता हो -इन्डियन मेल्स आर द्रिविन बाई देयर फीमेल्स .
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