मीरा तो बन सकती हूँ.
मुरली बन न अधर छू सकी,
मुरली तो सुन सकती हूँ.
नहीं ज़रूरी है जीवन में,
साथ मिले प्रियतम का हर पल.
मेरे लिये बहुत है इतना,
हर श्वासों में हो तेरी हल चल.
प्रेम न तन का साथ मांगता,
वह तो रोम रोम बसता है.
नयन उठाकर जिधर मैं देखूं,
कण कण में तू ही दिखता है.
श्याममयी हो गया है जीवन,
ईर्ष्या फिर राधा से क्यों हो?
चरण धूल सिंदूर बन गया,
इससे बढ़ आशा फिर क्यों हो?
प्रेम न तन का साथ मांगता,
ReplyDeleteवह तो रोम रोम बसता है.
नयन उठाकर जिधर मैं देखूं,
कण कण में तू ही दिखता है.
बहुत ख़ूबसूरत जज्बातों से सजी पोस्ट.....शानदार|
श्याममयी हो गया है जीवन,
ReplyDeleteईर्ष्या फिर राधा से क्यों हो?
बहुत बढ़िया |
बधाई ||
http://dineshkidillagi.blogspot.com/
प्रेम न तन का साथ मांगता,
ReplyDeleteवह तो रोम रोम बसता है.
नयन उठाकर जिधर मैं देखूं,
कण कण में तू ही दिखता है.
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बहुत सुन्दर कविता रची है आपने!
श्याममयी हो गया है जीवन,
ReplyDeleteईर्ष्या फिर राधा से क्यों हो?
चरण धूल सिंदूर बन गया,
इससे बढ़ आशा फिर क्यों हो?
इसके बाद कहने को क्या बचा…………बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
श्याममयी हो गया है जीवन....बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteपवित्रता से भरी अतिसुन्दर रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई.
ReplyDeletemeera ka yahi samarpan unhe poornta deta hai
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत कविता है सर!
ReplyDeleteसादर
सुन्दर रचना
ReplyDeleteprem to bas prem hai.....
ReplyDeleteकुछ न कुछ तो हो प्रियतम का,
ReplyDeleteप्राप्ति वही, सन्तोष वही..
श्याममयी हो गया है जीवन,
ReplyDeleteईर्ष्या फिर राधा से क्यों हो?
बहुत ही खूबसूरत रचना सर
सादर....
नहीं ज़रूरी है जीवन में,
ReplyDeleteसाथ मिले प्रियतम का हर
मेरे लिये बहुत है इतना,
हर श्वासों में हो तेरी हल चल...bhaut hi umda....
अगर नहीं बन पायी राधा,
ReplyDeleteमीरा तो बन सकती हूँ.
मुरली बन न अधर छू सकी,
मुरली तो सुन सकती हूँ.
maja aa gaya sir bahut khub likha hai
jai hind jai bharat
नहीं ज़रूरी है जीवन में,
ReplyDeleteसाथ मिले प्रियतम का हर पल.
मेरे लिये बहुत है इतना,
हर श्वासों में हो तेरी हल चल.
चंद लाइन में आपने बहुत गहरी बात कहा है बधाई हो आपको आप भी आये मेरे ब्लाग पर और जरुर शामिल हो ब्लाग और फेसबुक दोनों में
लिंक नीचे है
MADHUR VAANI
MITRA-MADHUR
बहुत सुन्दर प्रस्तुति, आभार .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति वाह!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति, आभार
ReplyDeleteचरण धूल सिंदूर बन गया,
ReplyDeleteइससे बढ़ आशा फिर क्यों हो?
Gahan...Bahut Sunder Rchana...
सुंदर भावभरी रचना।
ReplyDeletepavitr prembhavon se saji sundar rachna
ReplyDeleteसुन्दर भावप्रवण रचना , कैलाश जी की पोटली से बेहतरीन काव्य बधाई
ReplyDeleteगहरे भाव।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति।
prem ka sachha chitran
ReplyDeletebahut sunder :)
श्याममयी हो गया है जीवन,
ReplyDeleteईर्ष्या फिर राधा से क्यों हो?
चरण धूल सिंदूर बन गया,
इससे बढ़ आशा फिर क्यों हो?
पवित्र प्रेम और समर्पण के अद्भुत भाव...
शर्मा जी आप की प्रस्तुतियों में अद्भुत प्रवाह के साथ साथ भावों का भी बहुत ही सुंदर चित्रण होता है। बधाई।
ReplyDeleteगुजर गया एक साल
BEAUTIFUL !!!!!
ReplyDeleteabsolutely lovely poem - thanks :)
प्रेम न तन का साथ मांगता,
ReplyDeleteवह तो रोम रोम बसता है.
नयन उठाकर जिधर मैं देखूं,
कण कण में तू ही दिखता है.
वाह ...बहुत बढि़या ।
मधुर रचना।
ReplyDeleteप्रेम न तन का साथ मांगता,
ReplyDeleteवह तो रोम रोम बसता है.
नयन उठाकर जिधर मैं देखूं,
कण कण में तू ही दिखता है.
बहुत सुंदर और अनुकरणीय विचार।
प्रेम की पराकाष्ठा को दर्शाती हुई सुंदर कविता...
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता .
ReplyDeleteyet again... a fantastic read :)
ReplyDeletespecially liked the last verse
श्याममयी हो गया है जीवन,
ReplyDeleteईर्ष्या फिर राधा से क्यों हो?
चरण धूल सिंदूर बन गया,
इससे बढ़ आशा फिर क्यों हो?..madhusudan ke charno ki raj mil jaaye is se badi aasha honi bhi nahi chahiye...behtarin rachna,,,sadar badhayee aaur amantran ke sath
श्याममयी हो गया है जीवन,
ReplyDeleteईर्ष्या फिर राधा से क्यों हो?
प्रेम की पूर्णता होने पर किसी भी तरह के आग्रह व बंधन बेमानी हो जाते हैं।बहुत सुंदर व आध्यात्मिक संतुष्टि देती प्रस्तुति।
भावना और कविता, दोनों ही लाजवाब!
ReplyDeleteयही समर्पण तो ‘उससे’ मिलने की राह दिखाता है।
ReplyDeleteश्याममयी हो गया है जीवन,
ReplyDeleteईर्ष्या फिर राधा से क्यों हो?
चरण धूल सिंदूर बन गया,
इससे बढ़ आशा फिर क्यों हो?
एक बार जब श्याममय हो ही गए फिर संशय का स्थान कहा.
नहीं जरूरी है जीवन में,
ReplyDeleteसाथ मिले प्रियतम का हर पल.
मेरे लिये बहुत है इतना,
हर श्वासों में हो तेरी हल चल.
इस सुंदर गीत के लिए आभार।
मुरली बन न अधर छू सकी,
ReplyDeleteमुरली तो सुन सकती हूँ.
सुंदर!
श्रद्धा भक्ति और समर्पण भाव से ओतप्रोत रचना ...
ReplyDeleteकृष्णमयी रचना के लिये धन्यवाद.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
ReplyDeleteअगर नहीं बन पायी राधा,
मीरा तो बन सकती हूँ.
आपकी पोस्ट को आज ब्लोगर्स मीट वीकली(१३)के मंच पर प्रस्तुत की गई है आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आप हिंदी की सेवा इसी मेहनत और लगन से करते रहें यही कामना है /आपका
ReplyDeleteब्लोगर्स मीट वीकली के मंच पर आपका स्वागत है /जरुर पधारें/आभार /
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना! लाजवाब प्रस्तुती !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर! लाजवाब प्रस्तुती !
ReplyDeleteसमर्पित प्रेम का ये भाव कमाल है ... जो मिले बहुत है ... सुन्दर भावपूर्ण रचना ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर मीरा के प्रेम की तरह ।
ReplyDeleteप्रेम न तन का साथ मांगता,
ReplyDeleteवह तो रोम रोम बसता है.
नयन उठाकर जिधर मैं देखूं,
कण कण में तू ही दिखता है.
bhut khub.
वाह! अनुपम,शानदार.
ReplyDeleteभक्तिमय कर दिया है आपने.
आभार.