Thursday, March 22, 2018

ज़िंदगी


जग में जब सुनिश्चित
केवल जन्म और मृत्यु
क्यों कर देते विस्मृत
आदि और अंत को,
हो जाते लिप्त
अंतराल में 
केवल उन कृत्यों में 
जो देते क्षणिक सुख
और भूल जाते उद्देश्य 
इस जग में आने का।


बहुत है अंतर ज़िंदगी गुज़ारने
और ज़िंदगी जीने में,
रह जाती अनज़ान ज़िंदगी 
कभी जी कर भी वर्षों तक,
कभी जी लेते भरपूर ज़िंदगी 
केवल एक पल में।


...©कैलाश शर्मा

18 comments:

  1. सच कहती बहुत सुंदररचना

    ReplyDelete
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (24-03-2017) को "कविता का आथार" (चर्चा अंक-2919) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  3. आत्मबोध को अभिव्यक्त करती विचारणीय रचना।

    ReplyDelete
  4. बहुत ही सुन्दर संरचना हैं

    ReplyDelete
  5. सच कहा है ... ये अंतर-बोध की बात है ...
    पल भर में जीवन जिया जाता है ... सुन्दर रचना है ...

    ReplyDelete
  6. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2018/03/62.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  7. रह जाती अनज़ान ज़िंदगी
    कभी जी कर भी वर्षों तक,
    कभी जी लेते भरपूर ज़िंदगी
    केवल एक पल में।-
    आदरणीय सर बहुत ही लजवाब बात लिखी आपने | बहुत सुंदर भावों से सजी रचना | सादर ----------

    ReplyDelete
  8. बहुत सुंदर बात, सीधे और सरल शब्दों में..जीवन जीने का अंदाज जिसे आ गया वही तृप्त हो गया

    ReplyDelete
  9. बहुत ही खूबसूरत लाइन्स प्रस्तुत की.

    ReplyDelete
  10. वाआआह लाजवाब

    ReplyDelete
  11. बहुत है अंतर ज़िंदगी गुज़ारने
    और ज़िंदगी जीने में
    क्या बात कह दी सर ! बहुत सही और सटीक !! कभी -कभी कहते भी हैं कि जिंदगी भले छोटी हो लेकिन शानदार हो !!

    ReplyDelete