यमुने कैसे देखूँ तेरा यह वैधव्य रूप ,
मैंने तुमको प्रिय आलिंगन मैं देखा है।है कहाँ गया कान्हा तेरा यौवन साथी,
हो गये मौन क्यों आज मधुर बंसी के स्वर।
खो गयी कहाँ पर राधा की वह मुक्त हंसी,
लुट गये कहाँ पर सखियों के नूपुर के स्वर।
कैसे यमुने तेरे नयनों मैं जल देखूँ,
मैंने इनमें खुशियों का यौवन देखा है।
होगयी रश्मि की स्वर्णिम साडी कलुष आज,
होगये नक्षत्रों के आभूषण प्रभा हीन ।
ढलते सूरज ने मांग भरी जो सिंदूरी,
बढ़ता आता अँधियारा करने उसे लीन ।
यमुने कैसे देखूँ तेरा सूना आँचल ,
मैंने इसमें खुशियों का नर्तन देखा है।
दधि और दूध की जहाँ बहा करती नदियाँ,
अब वहां अभावों का मुख पर पीलापन है।
क्या साथ ले गये बचपन की क्रीड़ायें तुम,
या राधा की कान्हा से अब कुछ अनबन है।
आजाओ कान्हा एक बार फिर से तट पर,
मैं भी देखूँ वह जो ग्वालों ने देखा है।
इस चीरघाट पर अब भी चीर टंगे तरु पर,
पर नहीं कृष्ण जो सखियों का फिर तन ढक दे।
सूनी आँखों से दूषित यमुना राह तके ,
विष मुक्त किया था, जिसने कलिका वध करके।
कैसे निष्ठुर हो सकते हो तुम कृष्ण आज ,
जब राधा को मनुहारें करते देखा है .
मैंने इसमें खुशियों का नर्तन देखा है।
दधि और दूध की जहाँ बहा करती नदियाँ,
अब वहां अभावों का मुख पर पीलापन है।
क्या साथ ले गये बचपन की क्रीड़ायें तुम,
या राधा की कान्हा से अब कुछ अनबन है।
आजाओ कान्हा एक बार फिर से तट पर,
मैं भी देखूँ वह जो ग्वालों ने देखा है।
इस चीरघाट पर अब भी चीर टंगे तरु पर,
पर नहीं कृष्ण जो सखियों का फिर तन ढक दे।
सूनी आँखों से दूषित यमुना राह तके ,
विष मुक्त किया था, जिसने कलिका वध करके।
कैसे निष्ठुर हो सकते हो तुम कृष्ण आज ,
जब राधा को मनुहारें करते देखा है .
A beautiful poem. You have rightly depicted the real Yamuna which we have today.
ReplyDeleteBest Wishes
Uday Mohan
Thanx. Being born and broughtup in Mathura I have seen its glory and splendour in past, but i was shocked to see its present staus. It is nothing but a dirty rivulet now.
ReplyDeleteNice poem depicting a different outlook on the problem of pollution in our holy rivers.....
ReplyDeleteKeep writing!!