कल कल करते हुए
निकल गए कितने आज।
और फिर एक दिन दस्तक दी मृत्यु ने
और कहा चलना है,
अभी और आज।
मैंने अपने चारों और देखा
और कहा कल आना
आज मैं व्यस्त हूँ।
वह मुस्करायी,
चारों और देखा,
दीवारों की खूंटियों पर,
घर के हर कोने में,
मेज पर, अलमारी में
कल के इंतजार में पड़े आज को
और बोली
मैं हर पल को उस पल में ही जीती हूँ,
मेरे शब्दकोस में
कल जैसा शब्द नहीं।
निकल गए कितने आज।
और फिर एक दिन दस्तक दी मृत्यु ने
और कहा चलना है,
अभी और आज।
मैंने अपने चारों और देखा
और कहा कल आना
आज मैं व्यस्त हूँ।
वह मुस्करायी,
चारों और देखा,
दीवारों की खूंटियों पर,
घर के हर कोने में,
मेज पर, अलमारी में
कल के इंतजार में पड़े आज को
और बोली
मैं हर पल को उस पल में ही जीती हूँ,
मेरे शब्दकोस में
कल जैसा शब्द नहीं।
waastvikta se paripurn bahut hi saar garbhi rachna. saadhuwaad. aapki kalam me to jaadu hai bhaai . bahut pasand aai yah kavita.
ReplyDeleteThanx Dr.Tiwari..
ReplyDeleteआदरणीय शर्मा जी प्रणाम
ReplyDeleteकाल करे सो आज कर
आज करे सो अब की एक नए रूप में अत्यंत ही सुन्दर प्रस्तुति है
bahut hi saarthak........
ReplyDelete