Friday, August 27, 2010
पीड़ा का उपहार दिया क्यों ......
पीड़ा का उपहार दिया क्यों तुमने मेरे प्यासे उर को,
माना तुमसे खुशियों का प्रतिदान नहीं माँगा था मैंने।
फूल नहीं खिलते हर तरु पर,
लेकिन सभी नहीं ज़लते हैं।
नहीं चांदनी मिलती सब को,
लेकिन दीप नहीं बुझते हैं।
दिया अँधेरा ऐसा क्यों अस्तित्व अलोप होगया जिसमें,
माना दीप मालिका का वरदान नहीं माँगा था मैने.
दे सकती थीं नहीं प्रेम तुम,
लेकिन स्वप्न न तोडा होता।
बुझा न सकती थीं अंगारे,
नहीं कुरेदा उनको होता ।
इतना दग्ध किया क्यों उर को,बरस पड़े नयनों के बादल,
माना नहीं अधर पर स्मित का नर्तन माँगा था मैंने ।
बहुत कह दिया था नयनों ने,
लेकिन शब्द नहीं जुट पाये।
बाँध लिया था उर ने तुमको,
लेकिन हाथ नहीं बढ़ पाये ।
साथ नहीं था दिया प्रेम के मंदिर को सर्जन करने में,
कब्र बनादो मगर प्रेम की यह भी कब चाहा था मैंने।
स्वयं तोड़ दी जब सीमायें,
कैसे सीमा में तुम्हें बांधता।
किन्तु और की बांहों में हो,
यह भी सहन नहीं हो पाता।
कुछ क्षण बन आकाश दीप, क्यों आस जगादी तुमने तट की,
वरना कब तट का आँचल चाहा था मेरे भटके मन ने ।
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Bahut sundar bhavon kee khoobsurat abhivyakti.Hardik shubhkamnayen.
ReplyDeletePoonam
बहुत कह दिया था नयनों ने,
ReplyDeleteलेकिन शब्द नहीं जुट पाये।
बाँध लिया था उर ने तुमको,
लेकिन हाथ नहीं बढ़ पाये ।
बहुत सुंदर रचना
http://veenakesur.blogspot.com/
कुछ क्षण बन आकाश दीप, क्यों आस जगादी तुमने तट की,
ReplyDeleteवरना कब तट का आँचल चाहा था मेरे भटके मन ने ।
सुन्दर !...आभार ।
बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति.......आभार|
ReplyDeleteइस सुंदर नए चिट्ठे के साथ आपका ब्लॉग जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई
ब्लाग जगत में आपका स्वागत है
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
Poonamji,Veenaji,Divyaji,Joshiji(Patali),Sangeetaji,Lalitji,Ajayji,Anandji, Surendraji mere blog par aapke vicharon aur protsahan ke liye bahut dhanyavad. Aasha hai ki bhavishya main bhi Ek dusre ke blogs se humlog jude rahenge.
ReplyDeleteKailash C Sharma
www.sharmakailashc.blogspot.com
www.facebook.com/kailash.c.sharma1
बहुत सुंदर रचना ....
ReplyDeleteबहुत कह दिया था नयनों ने,
ReplyDeleteलेकिन शब्द नहीं जुट पाये।
बाँध लिया था उर ने तुमको,
लेकिन हाथ नहीं बढ़ पाये ।
वाह...
बहुत सुन्दर सर.
बहुत ही मनभावन भावों को संजोया है।
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