ठहर
थोडा सुस्ताले,
कब तक ढोता जायेगा,
अपने जीवन की लाश
अपने कन्धों पर,
अभी मरघट दूर है........
रोता है,
पागल,
अपनी ही मौत पर
कहीं रोया करते हैं.
तू ज़िन्दगी का मसीहा,
जिसने कभी हार नहीं मानी,
आज अपनी ही मौत से घबराता है.
यह विक्रमादित्य के कंधे पर रखा हुआ
वैताल का शव नहीं
जो मौन भंग होने पर
फिर पेड़ पर जाकर बैठ जाए
और कन्धों का बोझ हलका कर दे,
इसे तो तुम्हें मरघट तक ढोना ही होगा.
माना बहुत बोझ है,
लेकिन
दूसरों के कन्धों पर जाने से बेहतर है
कि अपनी लाश को
अपने ही कन्धों पर ले जाकर
मरघट में
अपने ही हाथों से अग्नि को सोंप दिया जाये.
क्या अफ़सोस है
कि तेरी लाश पर
किसी ने दो गज कफ़न भी नहीं डाला?
क्या दो गज कफ़न का टुकड़ा
इतने लम्बे सफ़र के लिए काफी होता?
ओढ़ ले अपनी बीती यादों का कफ़न
जो जितना पुराना होता जायेगा,
उतना ही और नया लगेगा,
जिस तरह कि हर नयी चोट
पुरानी यादों को और भी
उभार जाती है.
अपने इन आंसुओं को
व्यर्थ में मत बहा,
अभी तो इन्ही से तुझे अपना तर्पण करना है.
चल उठ,
अँधेरा बढ़ रहा है
और तुझे बहुत दूर चलना है,
उठाले अपने जीवन की लाश,
अपने ही कन्धों पर,
अभी मरघट दूर है..........
थोडा सुस्ताले,
कब तक ढोता जायेगा,
अपने जीवन की लाश
अपने कन्धों पर,
अभी मरघट दूर है........
रोता है,
पागल,
अपनी ही मौत पर
कहीं रोया करते हैं.
तू ज़िन्दगी का मसीहा,
जिसने कभी हार नहीं मानी,
आज अपनी ही मौत से घबराता है.
यह विक्रमादित्य के कंधे पर रखा हुआ
वैताल का शव नहीं
जो मौन भंग होने पर
फिर पेड़ पर जाकर बैठ जाए
और कन्धों का बोझ हलका कर दे,
इसे तो तुम्हें मरघट तक ढोना ही होगा.
माना बहुत बोझ है,
लेकिन
दूसरों के कन्धों पर जाने से बेहतर है
कि अपनी लाश को
अपने ही कन्धों पर ले जाकर
मरघट में
अपने ही हाथों से अग्नि को सोंप दिया जाये.
क्या अफ़सोस है
कि तेरी लाश पर
किसी ने दो गज कफ़न भी नहीं डाला?
क्या दो गज कफ़न का टुकड़ा
इतने लम्बे सफ़र के लिए काफी होता?
ओढ़ ले अपनी बीती यादों का कफ़न
जो जितना पुराना होता जायेगा,
उतना ही और नया लगेगा,
जिस तरह कि हर नयी चोट
पुरानी यादों को और भी
उभार जाती है.
अपने इन आंसुओं को
व्यर्थ में मत बहा,
अभी तो इन्ही से तुझे अपना तर्पण करना है.
चल उठ,
अँधेरा बढ़ रहा है
और तुझे बहुत दूर चलना है,
उठाले अपने जीवन की लाश,
अपने ही कन्धों पर,
अभी मरघट दूर है..........
सुन्दर ढंग से विचारणीय अभिव्यक्ति !!!
ReplyDeleteअथाह...
dhnyvaad
ओह्…………यही तो ज़िन्दगी का सच है और जिसने इसे समझ लिया उसे ही जीने का ढंग आ गया………………बेहतरीन …………………गज़ब के भाव भर दिये………………लाजवाब्।
ReplyDeleteसही शब्दों मे जीवन की सच्चाई को उजागर करती रचना|
ReplyDeleteअपने इन आंसुओं को
ReplyDeleteव्यर्थ में मत बहा,
अभी तो इन्ही से तुझे अपना तर्पण करना है.
चल उठ,
अँधेरा बढ़ रहा है
और तुझे बहुत दूर चलना है,
उठाले अपने जीवन की लाश,
अपने ही कन्धों पर,
अभी मरघट दूर है.....
itani sahjta se kitni gambhir baat kahi hai aapne jiska ek-ekshabd jindgi ki sachchai ko ujagar karta hai.ati uttam,bahut khoob.
mere blog par aane v apna samarthan dene ke liye mai dil se aapki aabhari hun.
dhanyvaad-------------------------poonam
.
ReplyDeleteअँधेरा बढ़ रहा है
और तुझे बहुत दूर चलना है,
उठाले अपने जीवन की लाश,
अपने ही कन्धों पर,
अभी मरघट दूर है.....
You made me emotional. Very touching lines.
Regards,
.
उफ़ ! ज़िन्दगी के कटु यथार्थ का अपने सुन्दर भावों के माध्यम से अद्भुत शब्द चित्र खीचा है आपने ....आभार
ReplyDeletehttp://anushkajoshi.blogspot.com/
सुन्दर विचारणीय अभिव्यक्ति....आभार
ReplyDeletekadvaa sach ko jag jaahir kiya hai aapne..........uttam abhivyakti
ReplyDeleteI appreciate your lovely post, happy blogging!
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 22 - 9 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
ReplyDeleteकृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत भावभीनी रचना जो कटु दर्द को उकेरती हुई सत्य की राह पर जाने को आंदोलित करती है.
ReplyDeleteकल गल्ती से तारीख गलत दे दी गयी ..कृपया क्षमा करें ...साप्ताहिक काव्य मंच पर आज आपकी रचना है
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/2010/09/17-284.html
Ajeeb se bhavo se ot prot... avsaad rakhne ka mann nahi karta magar aapki lekhni ka jaadu kaafi din tak ye kavita zehan me taaza rakhega...
ReplyDeleteजीवन की लाश जीवन के कान्धों पर होगी तो जीजिविषा को शायद ऊर्जा मिल जाये
ReplyDeleteapki post pr comments post nahi ho pa raha hai.
ReplyDelete"Deepak ka dard' pr comments dena chahraha thaa pr yah rachna bhi badi bejod hai.
सृजन नहीं कर सकते?
चलो कोई बात नहीं.
मंदिर-मस्जिद नहीं जा सकते,
अब भी कोई बात नहीं.
अपने चौकठ पर,
दीप जला तो सकते हो,
अपने घर के अँधेरे को,
भगा तो सकते हो,
नहीं जानते तुम,
यह एक दीप नहीं,
प्रवृत्ति है.
बन जाये आदत,
यही सत्प्रवृत्ति है.
Aap lage rahie yah deepak bujhega nahin punah prajjwalit hoga laharrayega, andhera door bhagayegaa.
Thanx Dr.Tiwari for ur beautiful and encoraging comments....
ReplyDeleteमुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !
ReplyDeleteHAPPY MOTHER’S DAY !
ReplyDeleteआपने लिखा....हमने पढ़ा
और लोग भी पढ़ें;
इसलिए कल 13/05/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
धन्यवाद!
Nape tule shabdon men jiwan ki sachhaie ko batati sundar kavita
ReplyDeleteजीवन का सच ....
ReplyDeleteबढ़िया रचना ... सादर !
चल उठ,
ReplyDeleteअँधेरा बढ़ रहा है
और तुझे बहुत दूर चलना है,
उठाले अपने जीवन की लाश,
अपने ही कन्धों पर,
अभी मरघट दूर है..........
jindagi ka sach, behtareen...
yah rachna kaise kagaj par utari aapne.....??????//
ReplyDeleteactually m bhi wo kala sikhna chahugi sir...........:-)
बोधगम्य - रचना , पर इसमें अत्यधिक वेदना है , एकाकी - पन की पीडा है ।
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