जब तक तेल है
दीपक में
बाती भी जलती है,
पतंगे भी चारों ओर मंडराते हैं,
रोशनी की परछाईं भी
नाचती
और बतियाती हैं चारों ओर.
लेकिन
दीपक का तेल
जब चुक जाता है,
पतंगे उड़ जाते हैं
कहीं और,
रोशनी की अठखेलियाँ भी
छुप जाती हैं
अँधेरे की बाँहों में.
स्नेहहीन दीपक
रह जाता है
अकेला
ढूँढने अपना अस्तित्व
अँधेरे में.
अस्तित्व भी कहाँ ढूढ़ पता है ..नष्ट हो जाता है ...यथार्थ को कहती अच्छी रचना ..
ReplyDeleteओह! बडा कडवा और गहरा सच कह दिया………………यही तो ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा है।
ReplyDeleteयह रुपक अलंकार है या नहीं यह तो नहीं जानता और यह भी नहीं जानता कि इसे छायावाद भी कह सकते हैं । परन्तु दीपक के रुप में जो आदमी की असलियत वर्णन की है वह विल्कुल सच है।सब पतंगे अपनी अपनी जगह उड जाते हैं या कहें बस जाते हैं और स्नेह का तेल खत्म हो जाने पर बेचारा अकेला अपना अस्तित्व ढूंढता रह जाता है ।
ReplyDeleteबहुत बहुत अच्छी रचना.सच को छूती हुई.
ReplyDeleteस्नेहहीन दीपक
ReplyDeleteरह जाता है
अकेला
ढूँढने अपना अस्तित्व
अँधेरे में.
Sach ko bahut hi sahaj shabdon men bayan kiya hai apne.shubhkamnayen.
दीपक का दर्द - इंसान से कितना मिलता जुलता है - जब तक ताकत है, रुतबा है, धन है, सब अपने और जब कुछ नहीं तो अपने भी जैसे पराये -- आपकी कविता ने हर बात को दीपक के माध्यम से कह डाला - सुन्दर रचना ---- शुभकामनायें
ReplyDelete@संगीता जी, वन्दना जी, बृजमोहन जी, अनामिका जी, पूनम जी और डॉ.गैरोला जी
ReplyDeleteआपके विचारों और प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद.....आभार
बहुत सुन्दर..कविता में जीवन का सच उतर दिया....बधाई.
ReplyDelete______________
'शब्द-शिखर'- 21 वीं सदी की बेटी.
धन्यवाद आकांक्षा जी.....
ReplyDeleteशायद ये अकेलापन खुद को बेहतर जानने का मौका दे... very beautiful poem n close to the reality...
ReplyDeleteस्नेहहीन दीपक रह जाता है अकेला ढृंढने अपना अस्तित्व अंधेरे में।... विरोधाभास का अद्भुत चमत्कार है कविता में।
ReplyDelete.
ReplyDeleteस्वार्थ से भरी इस दुनिया में सभी मनुष्य अपने निज-स्वार्थ के लिए पतंगे की भांति तब तक मंडराते हैं , जब तक उनका स्वार्थ सिद्ध होता रहता है। बाद में दूध में मक्खी की तरह निकाल फेंकते हैं।
सच ही कहा है किसी ने----" मतलब निकल गया तो पहचानते नहीं..."
आभार एवं शुभकामनायें।
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@Monali ji
ReplyDelete@Mahendra ji
Thanx for your encouraging comments...Regards.
अले वाह, यह तो बहुत सुन्दर कविता है.
ReplyDelete_________________________
'पाखी की दुनिया' में- डाटर्स- डे पर इक ड्राइंग !
Thanx Dear Pakhi...God bless u...luv..
ReplyDeleteस्नेहहीन दीपक
ReplyDeleteरह जाता है
अकेला
ढूँढने अपना अस्तित्व
अँधेरे में.
सुन्दर रचना .. दीपक में तेल न चुकने दें.
विजय दशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteकल 07/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
gahri baat ....ant tak neh n chukne paaye isme jivan kii saarthakta hai
ReplyDeleteवाह ...बहुत ही खूबसूरत भावमय करते शब्दों का संगम ।
ReplyDeleteआह! यथार्थ को अभिव्यक्त करती सुन्दर रचना...
ReplyDeleteसादर बधाई...
कल 21/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
yatharth ko parosti aapki kavita dil ko chhoo gayi
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