कितना हालात ने लाचार किया है मुझको,
पोंछ सकता नहीं आँखों से तुम्हारे आंसू.
मैं यह सह लेता,अगर हाथ किसी का बढ़ता,
देख सकता नहीं दिन रात ये बहते आंसू.
गर मिला होता कोई कांधा तुम्हें रोने को,
फेर कर नज़रें, मैं हट जाता तेरी राहों से.
होता बस में मेरे, दे देता उजाले अपने,
सर्द रातों को तपा देता, मेरी साँसों से.
अब न रिश्ता, न कोई हक़ है करीब आने का,
सिर्फ अहसास का अनजान सा है एक नाता.
ज़िस्म के रिश्ते छुपे रहते हैं चादर में यहाँ,
सिर्फ ज़ज्बात का रिश्ता ही है पत्थर खाता.
कह नहीं सकता कि अब आओ कहीं दूर चलें,
जब ज़मीं अपनी नहीं, आसमां क्यों कर होगा.
बंद खिड़की ये करो, हसरतें जगती दिल में,
खुश्क हैं आँख, मगर दिल भी न क्या तर होगा.
पोंछ सकता नहीं आँखों से तुम्हारे आंसू.
मैं यह सह लेता,अगर हाथ किसी का बढ़ता,
देख सकता नहीं दिन रात ये बहते आंसू.
गर मिला होता कोई कांधा तुम्हें रोने को,
फेर कर नज़रें, मैं हट जाता तेरी राहों से.
होता बस में मेरे, दे देता उजाले अपने,
सर्द रातों को तपा देता, मेरी साँसों से.
अब न रिश्ता, न कोई हक़ है करीब आने का,
सिर्फ अहसास का अनजान सा है एक नाता.
ज़िस्म के रिश्ते छुपे रहते हैं चादर में यहाँ,
सिर्फ ज़ज्बात का रिश्ता ही है पत्थर खाता.
कह नहीं सकता कि अब आओ कहीं दूर चलें,
जब ज़मीं अपनी नहीं, आसमां क्यों कर होगा.
बंद खिड़की ये करो, हसरतें जगती दिल में,
खुश्क हैं आँख, मगर दिल भी न क्या तर होगा.
सुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteअब न रिश्ता, न कोई हक़ है करीब आने का,
ReplyDeleteसिर्फ अहसास का अनजान सा है एक नाता.
ज़िस्म के रिश्ते छुपे रहते हैं चादर में यहाँ,
सिर्फ ज़ज्बात का रिश्ता ही है पत्थर खाता.
आखिर दिल बात जुबान पर आ ही गयी ...बहुत खूब ....शुभकामनायें
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ReplyDeleteगर मिला होता कोई कांधा तुम्हें रोने को,
फेर कर नज़रें, मैं हट जाता तेरी राहों से.
होता बस में मेरे, दे देता उजाले अपने...
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कवी के प्रेमी-ह्रदय को नमन ।
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खूबसूरत अहसासों को पिरोती हुई एक सुंदर भावप्रवण रचना. आभार.
ReplyDeleteसादर
डोरोथी.
अब न रिश्ता, न कोई हक़ है करीब आने का,
ReplyDeleteसिर्फ अहसास का अनजान सा है एक नाता.
ज़िस्म के रिश्ते छुपे रहते हैं चादर में यहाँ,
सिर्फ ज़ज्बात का रिश्ता ही है पत्थर खाता.
यथार्थ की अभिव्यक्ति।
सिर्फ ज़ज्बात का रिश्ता ही है पत्थर खाता.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति
प्रभावी रचना.....नमन्!
ReplyDeleteसुन्दर भाव से भरा हुआ काव्य है|हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति है....मेरी शुभकामनाये......
ReplyDeleteबहुत खूब चाचा जी,
ReplyDeleteकह नहीं सकता कि अब आओ कहीं दूर चलें,
जब ज़मीं अपनी नहीं, आसमां क्यों कर होगा.
बंद खिड़की ये करो, हसरतें जगती दिल में,
खुश्क हैं आँख, मगर दिल भी न क्या तर होगा.
सिर्फ ज़ज्बात का रिश्ता ही है पत्थर खाता.
ReplyDeletebahut khoob.
इस भावगर्भित अभिव्यक्ति पर आपको बधाई...!
ReplyDeleteकहते हैं कि प्रयुक्त शब्दों के पार्श्व से व्यक्ति के अंतर्जगत् का चित्र झलकता है...मैं आपके सहज इंसानी जज़्बात को सलाम करता हूँ!
कह नहीं सकता कि अब आओ कहीं दूर चलें,
ReplyDeleteजब ज़मीं अपनी नहीं, आसमां क्यों कर होगा.
बंद खिड़की ये करो, हसरतें जगती दिल में,
खुश्क हैं आँख, मगर दिल भी न क्या तर होगा....
बहुत गहरे जज़्बात में डूबी हुई है रचना ... बहुत खूब
जब ज़मीं अपनी नहीं, आसमां क्यों कर होगा.
ReplyDeleteदर्द की चरम अभिव्यक्ति !सुन्दर रचना!
कह नहीं सकता कि अब आओ कहीं दूर चलें,
ReplyDeleteजब ज़मीं अपनी नहीं, आसमां क्यों कर होगा....
बहुत इमानदारी की झलक नज़र आती है इस रचना में .. कुछ अलग हट कर ... बहुत खूब ...
प्यार से ओत-प्रोत, जज्बातों से लबरेज रचना.
ReplyDeleteज़िस्म के रिश्ते छुपे रहते हैं चादर में यहाँ,
ReplyDeleteसिर्फ ज़ज्बात का रिश्ता ही है पत्थर खाता...
सुन्दर अभिव्यक्ति !
भावपूर्ण अभिव्यक्ति अच्छी है,कविता में शिल्प की दृष्टि से कसाव भी है
ReplyDeleteगर मिला होता कोई कांधा तुम्हें रोने को
ReplyDeleteफेर कर नज़रेंए मैं हट जाता तेरी राहों से
होता बस में मेरे, दे देता उजाले अपने
सर्द रातों को तपा देता, मेरी साँसों से
हर किसी को रोने के लिए एक कंधे की जरूरत होती है।
बहुत ही प्रभावशाली कविता।
सुन्दर भाव अभिव्यक्ति .
ReplyDeleteब्लॉग पर इज्जत अफजाई का बहुत शुक्रिया.
गर आसुओं को मेरे कोई आँचल मिला होता... तो आज ये भी चमकते सितारे होते...
ReplyDeleteबहुत ही भावभीनी रचना...
अब न रिश्ता, न कोई हक़ है करीब आने का,
ReplyDeleteसिर्फ अहसास का अनजान सा है एक नाता.
ज़िस्म के रिश्ते छुपे रहते हैं चादर में यहाँ,
सिर्फ ज़ज्बात का रिश्ता ही है पत्थर खाता.
बहुत ही प्रभावशाली कविता, शुभकामनाये!
ब्लॉग या वेबसाइट से कमाओ हजारो रुपये...
ReplyDeleteTo know more about it click on following link...
http://planet4orkut.blogspot.com/2010/08/blog-post_9159.html
फल दूसरों के आँगन मे ना लगते तो वसीम ,
ReplyDeleteमेरे आँगन मे ये पत्थर भी ना आये होते.....
आप की रचना मे प्रतिक्रिया देना, सूरज को चिराग दिखाना होगा....
गर मिला होता कोई कांधा तुम्हें रोने को,
ReplyDeleteफेर कर नज़रें, मैं हट जाता तेरी राहों से.
होता बस में मेरे, दे देता उजाले अपने,
सर्द रातों को तपा देता, मेरी साँसों से.
hmmmm.....de detaa ujaale apne...sard raaton ko tpaa deta..meri saanson se.............uffffff...ye khyaal mujh tak kyun nhi pahunchaa..............kashish ji............bahut bahut shurkiyaa....mere blog tak aane ka.....jis kaarn main aapki is rchnaa tak pahunch paayii..
bahut hiiiiiiiiii khoooobsurat.....bahut hii pyaari.....
take care
ReplyDeleteदिनांक 17/03/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
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अनाम रिश्ता....हलचल का रविवारीय विशेषांक...रचनाकार-कैलाश शर्मा जी
आभार..
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteबंद खिड़की ये करो, हसरतें जगती दिल में,
ReplyDeleteखुश्क हैं आँख, मगर दिल भी न क्या तर होगा. बहुत कोमलता से मन की पीड़ा लिखी है
सुन्दर रचना बधाई
कह नहीं सकता कि अब आओ कहीं दूर चलें,
ReplyDeleteजब ज़मीं अपनी नहीं, आसमां क्यों कर होगा.
बंद खिड़की ये करो, हसरतें जगती दिल में,
खुश्क हैं आँख, मगर दिल भी न क्या तर होगा.
सुन्दर रचना
" प्रेम - गली अति सॉकुरी जा में दो न समाहिं ।"
ReplyDeleteकबीर