(१)
जन जन को पीस रहा
शासन का तंत्र है,
शायद यही जनतंत्र है.
(२)
सन्नाटे की आवाज़
होती है इतनी तेज
कंपा देती है अंदर तक,
फिर भी दबा नहीं पाती
मन का कोलाहल.
(३)
एक मुक़म्मल ज़हां
की तलाश में,
टुकड़े टुकड़े में
जी रहे हैं
ज़िंदगी.
(४)
खुशी तलाशते फिरते हैं
हर गली मोहल्ले में,
लेकिन जब वह
टकरा के निकल जाती है
पहचानते नहीं हैं हम.
(५)
रिश्तों की ठंडक से
होगया है ज़िस्म
इतना सर्द,
ज़म जाते हैं अश्क
आँखों से गिरते ही.
जन जन को पीस रहा
शासन का तंत्र है,
शायद यही जनतंत्र है.
(२)
सन्नाटे की आवाज़
होती है इतनी तेज
कंपा देती है अंदर तक,
फिर भी दबा नहीं पाती
मन का कोलाहल.
(३)
एक मुक़म्मल ज़हां
की तलाश में,
टुकड़े टुकड़े में
जी रहे हैं
ज़िंदगी.
(४)
खुशी तलाशते फिरते हैं
हर गली मोहल्ले में,
लेकिन जब वह
टकरा के निकल जाती है
पहचानते नहीं हैं हम.
(५)
रिश्तों की ठंडक से
होगया है ज़िस्म
इतना सर्द,
ज़म जाते हैं अश्क
आँखों से गिरते ही.
हर क्षणिका बहुत सुन्दर
ReplyDeleteरिश्तों की ठंडक से
होगया है ज़िस्म
इतना सर्द,
ज़म जाते हैं अश्क
आँखों से गिरते ही
यह बहुत पसंद आई
सचमुच हर क्षणिका एक से बढ़कर एक , जन जन को पीस रहा तन्त्र !!
ReplyDeleteगणतन्त्र दिवस आने वाला है अग्रिम बधाई!
बहुत बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
khoobsurat kshanikaayein sharma ji!
ReplyDeleteशानदार क्षणिकाएं
ReplyDeleteसन्नाटे की आवाज़
होती है इतनी तेज
कंपा देती है अंदर तक,
फिर भी दबा नहीं पाती
मन का कोलाहल.
हर क्षणिका बेहतरीन
ReplyDeleteखुशी तलाशते फिरते हैं
हर गली मोहल्ले में,
लेकिन जब वह
टकरा के निकल जाती है
पहचानते नहीं हैं हम.
जीवन के सत्य को याद दिलाती
जिन्दगी की कड़ुवी सच्चाई
ReplyDeleteरिश्तों की ठंडक से
ReplyDeleteहोगया है ज़िस्म
इतना सर्द,
ज़म जाते हैं अश्क
आँखों से गिरते ही.
ज़िन्दगी की कडवी सच्चाइयाँ उजागर की है आज तो आपने…………हर क्षणिका एक से बढकर एक्।
एक से बढ़कर एक , उम्दा क्षणिकाएं।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर क्षणिकाएं....आभार
ReplyDeleteएक मुक़म्मल ज़हां
ReplyDeleteकी तलाश में,
टुकड़े टुकड़े में
जी रहे हैं
ज़िंदगी.
सचमुच हर क्षणिका एक से बढ़कर एक है, जीवन की सच्चाई से अवगत कराती हुई सुन्दर रचना...
हर क्षणिका बहुत सुन्दर
ReplyDeleteशायद यही अब तंत्र है।
ReplyDeleteरिश्तों की ठंडक से
ReplyDeleteहोगया है ज़िस्म
इतना सर्द,
ज़म जाते हैं अश्क
आँखों से गिरते ही.
यूँ तो सब क्षणिकाएं अच्छी है पर दिल में उतर गयी यह, बधाई
bertman ki sunder vyakya ki hai
ReplyDeletebahut hi paini dhardar kshanikayen bahut bahut badhai sir
ReplyDeleteखूबसूरत क्षणिकाएं .....
ReplyDeleteएक मुक़म्मल ज़हां
की तलाश में,
टुकड़े टुकड़े में
जी रहे हैं
ज़िंदगी
खास अच्छी लगी.....
ज़िन्दगी की कडवी सच्चाइयाँ उजागर की है आपने| हर क्षणिका एक से बढकर एक। आभार |
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत क्षणिकाएं .पांचो बेहतरीन.
ReplyDeleteभावपूर्ण प्रस्तुति
ReplyDeleteसन्नाटे की आवाज़
ReplyDeleteहोती है इतनी तेज
कंपा देती है अंदर तक,
फिर भी दबा नहीं पाती
मन का कोलाहल.
raat bhar sone tak nahi deti
very beautiful , sabhee ek se bada ker ek . thanks
ReplyDeleteadarniya sharma sahab,
ReplyDeletepranam
abhivyakti ka apratim prayojan.shubh,vicharniya
prashansniya. man ko chhute bhav.--kiska
-jantantra-- kiske liye.
रिश्तों की ठंडक से
ReplyDeleteहोगया है ज़िस्म
इतना सर्द,
ज़म जाते हैं अश्क
आँखों से गिरते ही.
आदरणीय कैलाश जी ... हर कमाल की है ... बेहतरीन शब्द .. बेहतरीन भाव ... शुभकामनाएँ
सन्नाटे की आवाज़
ReplyDeleteहोती है इतनी तेज
कंपा देती है अंदर तक,
फिर भी दबा नहीं पाती
मन का कोलाहल.
....बहुत सुंदर...........
जीवन की सच्चाई से अवगत कराती पांचो क्षणिकाएं कमाल की है.
ReplyDeleteबेहतरीन
आभार
शुभकामनाएँ
एक से बढ़कर एक क्षणिकाएं...
ReplyDeleteरिश्तों की ठंडक से
ReplyDeleteहोगया है ज़िस्म
इतना सर्द,
ज़म जाते हैं अश्क
आँखों से गिरते ही...bahut khub kaha ji.
उम्दा क्षणिकाएँ.
ReplyDeleteरिश्तों की ठंडक से
ReplyDeleteहोगया है ज़िस्म
इतना सर्द,
ज़म जाते हैं अश्क
आँखों से गिरते ही.
behad khoobsurat magar dukhbhari panktiyan....
खूबसूरत क्षणिकाएं
ReplyDeletebahut achchi kashnikaayen hai..
ReplyDeletesannate kee aawaz bahut pasand aai
kshanikaayen hriday ke taar ko jhankrit karati hain.
ReplyDeleteBhawpurn abhivyakti.
SUNDAR KSHANIKAYEN.
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की आपको हार्दिक शुभकामनायें.
बहुत ही सुन्दर गणतंत्र दिवस की आपको हार्दिक शुभकामनायें.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शब्दों मै पिरोई हुई रचना !
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की बहुत बहुत बधाई !
एक मुक़म्मल ज़हां
ReplyDeleteकी तलाश में,
टुकड़े टुकड़े में
जी रहे हैं
ज़िंदगी
क्या बात कह दी आपने कैलाश जी !
सभी क्षणिकायें बहुत अच्छी हैं कम शब्दों मे कितनी बडी बात कहना ही ़ाणिका का सौंदर्य है जिसे आपने बखूबी निभाया है
ReplyDeleteएक मुकम्मल---- ये क्षणिका सब से अध्क पसंद आयी पहली और आखिरी भी बहुत अच्छी हैं सुन्दर ़ाणिकाओं के लिये बधाई।
सभी क्षणिकायें बहुत अच्छी है एक से बढकर एक। आभार |
ReplyDeleteउत्तम प्रस्तुति... बधाईयां...
ReplyDeleteखुशी तलाशते फिरते हैं
ReplyDeleteहर गली मोहल्ले में,
लेकिन जब वह
टकरा के निकल जाती है
पहचानते नहीं हैं हम.
जीवन भी क्या विरोधाभास है ..बहुत सुंदर हैं सभी क्षणिकाएं
sahi kaha aapne...
ReplyDeleteएक मुक़म्मल ज़हां
की तलाश में,
टुकड़े टुकड़े में
जी रहे हैं
ज़िंदगी!!
kuchh logo jindagi bhar talaashte hi rahte hai...kya talaashte hain?ye shaayad hi samjh payen kabhi vo..
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खुशी तलाशते फिरते हैं
हर गली मोहल्ले में,
लेकिन जब वह
टकरा के निकल जाती है
पहचानते नहीं
jis khushi ko talashte hain..
vo khud ke paas hai..
par hum talashte baahar hi hai-kisi sthaan par,kisi vyakti main ya fir paristhiti main..
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रिश्तों की ठंडक से
होगया है ज़िस्म
इतना सर्द,
ज़म जाते हैं अश्क
आँखों से गिरते ही!!
aur fir unhin aankhon main apne liye pyaar ka geelapan bhi dekhna chaahte hain...