आज़ फ़िर
काली घटा छाई है,
आँख में फ़िर
से नमी छाई है.
है नहीं
कोई सुने आवाज़ मेरी,
सिर्फ़
मैं और मेरी तनहाई है.
चलते रहे
बोझ उठाए सर पर,
धूप में
न छांव नज़र आई है.
सर्द
अहसास हुए इस हद तक,
खून में
घुल गयी सियाही है.
अब न ज़लते चराग उमीदों के,
ज़ब से आंधी
फ़लक पे छाई है.
आज फ़िर
खुल के बहेंगे आंसू,
साथ देने
बरसात चली आई है.
...कैलाश शर्मा
बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति , मन छू गयी .
ReplyDeleteवाह। जीवन में फैले दु:खों का कितना बढ़िया शब्दांकन किया है।
ReplyDeleteआज फ़िर खुल के बहेंगे आंसू,
ReplyDeleteसाथ देने बरसात चली आई है.
***
जैसे मेरे ही भाव लिख गयी आपकी कलम!
खूबसूरत गज़ल
ReplyDeleteबहुत सुंदर गज़ल ! हर शेर मन को भाव विभोर करने में सक्षम है ! बहुत खूब !
ReplyDeletekhubsurat ... ek ek panktiyan ehsaso me piroyi huyi dil ko chhu gayi .. :)
ReplyDeleteबहुत सुंदर गज़ल कैलाश जी।
ReplyDeleteशेर मन को भाव विभोर करने में सक्षम है
ReplyDeleteबहुत सुंदर गज़ल !!
har sher lajwaab hai bahut sundar gajal likhi hai aapne
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति कैलाश जी।।।
ReplyDeletekhoobsurat gazal
ReplyDeleteलगी आज सावन की फिर वो झड़ी है,
ReplyDeleteवही आग सीने में फिर जल पड़ी है...सुंदर भावभिव्यक्ति।
चलते रहे बोझ उठाए सर पर,
ReplyDeleteधूप में न छांव नज़र आई है...बहुत सुन्दर ..
प्रभावी अभिव्यक्ति...बधाई...
ReplyDeleteअब न ज़लते चराग उमीदों के,
ज़ब से आंधी फ़लक पे छाई है.
वाऽहऽऽ…!
आदरणीय कैलाश जी भाईसा'ब
सुंदर भावप्रवण रचना के लिए साधुवाद !
सादर बधाई और शुभकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
भावपूर्ण गजल के लिए बधाई स्वीकारें कैलाश जी ,,,
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाए,,,
RECENT POST: आज़ादी की वर्षगांठ.
आभार...
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत रचना …. आभार
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत रचना !!!
ReplyDeletevaah bahut khub...behad achi gazal hui hai......bahut khub
ReplyDeleteचलते रहे बोझ उठाए सर पर,
ReplyDeleteधूप में न छांव नज़र आई है.
सर्द अहसास हुए इस हद तक,
खून में घुल गयी सियाही है.
bahut badhiya
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण ग़ज़ल
latest os मैं हूँ भारतवासी।
latest post नेता उवाच !!!
बहुत खुबसूरत ,भावपूर्ण ज़ज़्बात!
ReplyDeleteमुबारक कबूलें भाई जी ...
बहुतत सुन्दर भाव पिरोये हैं।
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण अहसास पिरोये हैं।
ReplyDeleteआभार आदरणीय कैलाश जी
आज फ़िर खुल के बहेंगे आंसू,
ReplyDeleteसाथ देने बरसात चली आई है.
ज़बरदस्त शे'र बना है. सुन्दर ग़ज़ल.
wah ! bhavpurn rachna....dil ko chuti hui
ReplyDeleteआज फ़िर खुल के बहेंगे आंसू,
ReplyDeleteसाथ देने बरसात चली आई है.
Waah! Waah! Waah!
Behtareen....
वाह बहुत खूब… दाद कबूल करें
ReplyDeletebahut khoob kailash ji
ReplyDeleteअक्सर यादों की बारिश आँखों में आंसू ले ही आती है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
वाह बहुत खूब !,बहुत सुन्दर .
ReplyDeleteBohot hi khoobsurat :)
ReplyDeleteलाजवाब गजल.
ReplyDeleteरामराम.
बेहद खुबसूरत रचना....
ReplyDeleteलाजवाब....
:-)
बहुत सुन्दर ग़ज़ल
ReplyDeleteआज फ़िर खुल के बहेंगे आंसू,
ReplyDeleteसाथ देने बरसात चली आई है ।
आह , दर्द भरी गज़ल
khubsurat gazal...
ReplyDeleteचलते रहे बोझ उठाए सर पर,
ReplyDeleteधूप में न छांव नज़र आई है...
जिंदगी की धूप में ये जीवन का बोझ उठाए अकेले ही चलना होता है ...
लाजवाब गज़ल है ...
संवेदना युक्त प्रस्तुति......
ReplyDeleteआज फ़िर खुल के बहेंगे आंसू,
साथ देने बरसात चली आई है..
....
सुन्दर भाव और शब्द संयोजन..
वाह बहुत खूब ...
ReplyDeleteआज फ़िर खुल के बहेंगे आंसू,
ReplyDeleteसाथ देने बरसात चली आई है.
BEAUTIFUL LINES WITH GREAT EXPRESSION
behtareen likhte ho sir......
ReplyDeleteखूबसूरत गज़ल..वाह!
ReplyDeletewaah sir, kya jabardast likhe hain sir.,.,bahot sundar bhav
ReplyDeleteकैलाश जी ,
ReplyDeleteमैंने कई बार इसे पढ़ा. मन में कही जाकर बस गयी इसकी हर पंक्ति ... हर शब्द जाने कुछ कहता है ..
दिल से बधाई स्वीकार करे.
विजय कुमार
मेरे कहानी का ब्लॉग है : storiesbyvijay.blogspot.com
मेरी कविताओ का ब्लॉग है : poemsofvijay.blogspot.com
ati uttam...........gazal...
ReplyDeleteplz visit here...
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