Saturday, August 24, 2013

पतंग और डोर

उड़ती मुक्त गगन में
लिये ख़्वाब छूने का
अनंत आकाश का छोर,
पर कहाँ है स्वतंत्र
बंधी है एक डोर          
है जिसका दूसरा छोर
किसी अन्य के हाथों में
उड़ान भरने से ऊपर पहुँचने तक,
उड़ पाती है उतना ही ऊँचा
जितनी पाती ढील डोर.

हो कर रह गया निर्भर
अस्तित्व केवल डोर पर,
जब भी कट जाती डोर
अनुभव होती आजादी
केवल कुछ पल की,
गिरने लगती
ज़मीन की ओर
और फंस जाती
किसी पेड़ या खंबे पर,
फड़फडाती पल पल
हवा के हर झोंके से
या पहुँच जाती
किसी अज़नबी हाथों में
उड़ने फ़िर
साथ नयी डोर.

उड़ती रही सदैव
पतंग की तरह
बंधी किसी न किसी
रिश्ते की डोर से.
काश होता उसका भी
स्वतंत्र अस्तित्व,
उड़ पाती बिन डोर
कर पाती पूरा सपना
छूने का आसमान
बिना किसी सहारे.

....कैलाश शर्मा

46 comments:

  1. निश्‍चय ही पतंग के साथ यह बड़ी विडम्‍बना है। बहुत सुन्‍दर।

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    1. हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} पर कल पहली चर्चा में आपका सह्य दिल से स्वागत करता है। कृपया पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | आपके नकारत्मक व सकारत्मक विचारों का स्वागत किया जायेगा | सादर .... Lalit Chahar

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  2. खूबसूरत अभिव्यक्ति
    भाई मेरे ये कहानी तो हम बहनों की लगी
    सादर

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    1. हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} पर कल पहली चर्चा में आपका सह्य दिल से स्वागत करता है। कृपया पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | आपके नकारत्मक व सकारत्मक विचारों का स्वागत किया जायेगा | सादर .... Lalit Chahar

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  3. ज़ोर बँधीं अनजाने हाथों,
    ढील मिली, हम उड़े जा रहे।

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  4. uttam racha ... patang ke madhayam se apne bahut kuchh kah diya ... ise hum adhunik nariyo ke sandrbh se jod sakte ha ..or ham nirbal prani jiski dor bhagwan ke haatho me hai ..badhay ..sadar jsk

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    1. हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} पर कल पहली चर्चा में आपका सह्य दिल से स्वागत करता है। कृपया पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | आपके नकारत्मक व सकारत्मक विचारों का स्वागत किया जायेगा | सादर .... Lalit Chahar

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  5. हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} पर कल पहली चर्चा में आपका सह्य दिल से स्वागत करता है। कृपया पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | आपके नकारत्मक व सकारत्मक विचारों का स्वागत किया जायेगा | सादर .... Lalit Chahar

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  6. खूबसूरत अभिव्यक्ति ,बेजोड़ रचना

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    1. हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} पर कल पहली चर्चा में आपका सह्य दिल से स्वागत करता है। कृपया पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | आपके नकारत्मक व सकारत्मक विचारों का स्वागत किया जायेगा | सादर .... Lalit Chahar

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  7. भावुक करती अभिव्यक्ति ...

    ~मजबूर कितनी है पतंग वो....
    कटती, गिरती, होती लहूलुहान...
    पर फिर नयी डोर में बँध कर...
    उड़ने को मजबूर है जो.... ~

    ~सादर!!!

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  8. खूबसूरत अभिव्यक्ति, बेजोड़ रचना।

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  9. बहुत सुन्‍दर। बेजोड़ रचना।

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  10. ak dor kahin hai tabhi to ushi sarthakta hai sharma jee ...dil ke kashamkash ko accha roop diya hai ...

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  11. जीवन भी पतंग जैसा ही तो है...कहां से आया कहां जायेगा? कुछ पता अन्ही, बस पतंग की भांति कुछ वर्षों तक हिचकोले खाता रहता है, फ़िर कहां जायेगा? कुछ पता नही.

    बहुत ही गूढ अभिव्यक्ति.

    रामराम.

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  12. बढ़िया बाल कविता-
    आभार -

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  13. भावपूर्ण रचना बहुत कुछ संकेत है... अच्छी प्रस्तुति !!

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  14. अस्तित्व बंध कर रह गया बस डोर से…

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  15. बहुत सुन्दर भावों को स्वयम में समाहित किये है आपकी यह रचना ... आपकी इस उत्कृष्ट रचना का प्रसारण कल रविवार, दिनांक 25/08/2013 को ब्लॉग प्रसारण http://blogprasaran.blogspot.in/ पर भी .. कृपया पधारें !

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  16. नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (25-08-2013) के चर्चा मंच -1348 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

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  17. पतंग के अस्तित्व की सार्थकता ही तब तक है जब तक वह डोर से बंधी है ! उसे आसमान की ऊंचाइयाँ भी तब ही मिल पाती हैं जब उसकी डोर संवेदनशील हृदय रखने वाले व्यक्ति के कुशल हाथों में हो ! ऐसा भाग्य भी थोड़ी ही पतंगों का होता है बाकी सभी की उड़ाने तो असमय ही खत्म कर दी जाती हैं ! बहुत संवेदनशील रचना कैलाश जी ! बधाई स्वीकार करें !

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  18. जेने कितनी माया और मोह के लपेटोंवाली डोर संचालित करती है और आदमी उतना भर उड़ पाता है !

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  19. हम भी तो पतंग जैसे शायद..डोर किसी और के हाथ में. अति सुन्दर.

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  20. कल 26/08/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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  21. itna sundar itna umda likha hai ki kya kahu....laga ki hamari kahani likh di......bahut sundar

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  22. बहुत ही भावपूर्ण रचना...

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  23. ये जीवन और पतंग
    चलें ये दोनों किसी
    और के हाथों थमी
    डोर के संग .....

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  24. ये उड़ने की चाहत है न..आह..

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  25. वाह बहुत सुगमता से गहन दार्शनिक भाव को शब्दों में बाँधा है. बहुत सुन्दर..

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  26. जीवन के खूबसूरत अहसास ....

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  27. वाह,बहुत खूब

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  28. भावुक करती अभिव्यक्ति
    शब्दों की मुस्कराहट पर....तभी तो हमेशा खामोश रहता है आईना !!

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  29. वाह !पतंग का मानवीकरण कर दिया। हमारी डोर भी तो कर्मों के खाते से बंधी चली आ आरही है जन्म जन्मान्तरों के कर्म परछाईं से पीछे चले आ रहे हैं। सुन्दर प्रस्तुति।

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  30. इन मुक्त उड़ानों का हम भी समर्थन करते हैं

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  31. हर कोई किसी न किसी डोर से बंधे हैं ,डोर अगर सही हाथों में है ,आसमान की हर ऊंचाई पहुँच के अन्दर होता है और यदि गलत हातों में है उडान एक ख्वाब बनकर रह जाता है -बहुत अच्छी रचना ,बधाई कैलाश जी
    latest post आभार !
    latest post देश किधर जा रहा है ?

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  32. खूबसूरत अहसास .....बहुत सुन्दर

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  33. बहुत सुन्दर रचना

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  34. बंधन चुभता है ..

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  35. गहन भाव लिये ... सशक्‍त अभिव्‍यक्ति

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  36. ज़िंदगी भी तो एक पतंग कि तरह ही सदा किसी न किसी रिश्ते से बंधी रहती है। गहन भाव अभिव्यक्ति...

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  37. पतंग ओर नारी ....शायद दोनों की इस प्रवृति को बखूबी शब्दों में उकेरा है कैलाश जी ...
    काश ये समाज परिपक्व हो पाता ...

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  38. wowwwwwwwwwwww......................spcl hai isme bahut kuch.

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