Wednesday, July 09, 2014

ज़िंदगी

पैरों में चुभते काँटों से 
बेख़बर ज़िंदगी,
तपती धूप में 
कार के शीशे ठकठकाती
एक रुपया मांगती 
बच्ची के फटे कपड़ों में
काले चश्मे के पीछे से 
ज़वानी ढूंढती नज़रों का
दंश झेलती ज़िंदगी,
लम्बी वातानुकूलित कार में
मालकिन की गोद में
बैठे कुत्ते की ज़िंदगी, 
एक टुकड़ा रोटी का 
कूड़े में ढूँढती 
भूखी मासूम ज़िन्दगी,
पौष की कड़कड़ाती ठंड में
भूखे पेट की आग से 
तन को तापती ज़िंदगी,
अपने मुंह का निवाला
बच्चे को खिलाती माँ
आज वृद्धाश्रम में अकेली
जीवन के दूसरे छोर पर
अँधेरे में ढूँढती ज़िंदगी।

दिखाती नये रूप
बदलती रोज़ रंग,
लगती कभी प्रिय 
कभी हो जाती बेमानी,
कागज़ पर बिखरे
बेतरतीब शब्दों सी
लगती कभी ज़िंदगी,
फ़िर भी न जाने क्यूँ
लगती हर हालात में  
अपनी सी ज़िंदगी।

...©कैलाश शर्मा 

34 comments:

  1. समाज में व्याप्त विसंगतियों एवं विषमताओं को बड़ी संवेदनशीलता के साथ उकेरा है अपनी रचना में ! हम सबकी भी यही विवशता है कि हर हाल में यही है हमारी अपनी ज़िंदगी ! बहुत सुंदर रचना !

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  2. जब तक है जिंदगी हर हाल में इसे बेहतर तरीके से ही जीना चाहिए ...
    दिल को छूती हुयी रचना ...

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  3. फ़िर भी न जाने क्यूँ
    लगती हर हालात में
    अपनी सी ज़िंदगी।
    ..जिंदगी है जिदंगी है भले ही कैसे भी हो जीना पड़ता है कभी कभी अपने से ज्यादा अपनों के लिए ..

    बहुत बढ़िया प्रस्तुति

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  4. हाँ ज़िंदगी तो अपनी ही हर हाल हर किसी को जीनी ही होगी कर्म का लेखा जो है।

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा आज गुरूवार (10-07-2014) को 'उम्मीदें और असलियत { चर्चा - 1670 } पर भी है !
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  6. कहीं धूप तो कहीं छाँव , हाय! कैसा है ये संसार..

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  7. ऐसी क्यूँ है ज़िंदगी ......लेकिन जैसी भी है, है तो अपनी ही ज़िंदगी।

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  8. जिंदगी के कई रंग रे...

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  9. सबकी अपनी-अपनी ज़िन्दगी... बेहद प्रभावशाली रचना, बधाई.

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  10. सुंदर भावाभिव्यक्ति. कहीं है सुख, कहीं है दुःख.ज़िन्दगी तो ऐसी ही हैं.... कुछ खट्टी,कुछ मीठी,कुछ तीखी.

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  11. फ़िर भी न जाने क्यूँ
    लगती हर हालात में
    अपनी सी ज़िंदगी।
    जिंदगी हर बार बस ऐसे ही कुछ सवाल खड़े करती है
    बेहतरीन भावाभिव्‍यक्ति
    सादर

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  12. वास्तव में बहुत ही मार्मिक चित्र खींचा है !

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  13. किसी ने क्या खूब कहा है ज़िंदगी के बारे में...आपकी कविता पढ़ी तो अचानक से ये शेर याद आया
    ज़िंदगी क्या है
    फकत मौत का टलते रहना...

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  14. जिंदगी के पहलुओ पर बेहद मार्मिक शब्दों के साथ आपने कितने ही सवाल खड़े कर दिए है। जो सोचने पर मजबूर कर दे। बहुत ही खूबसूरत और सार्थक रचना

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  15. जिंदगी के विविध रंग.

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  16. आपकी लिखी रचना शनिवार 12 जुलाई 2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  17. वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह
    लाजबाब प्रस्तुति
    बधाई

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  18. फ़िर भी न जाने क्यूँ
    लगती हर हालात में
    अपनी सी ज़िंदगी।
    जिंदगी हर बार बस ऐसे ही कुछ सवाल खड़े करती है
    बेहतरीन भावाभिव्‍यक्ति

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  19. गहन सम्‍वेदना लिए बहुत मार्मिक प्रस्तुति-

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  20. बहुत सुन्दर रचना !

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  21. गहन सम्‍वेदना.....

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  22. sab karm v bhagya ka fer hai .nice expression .thanks

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  23. बहुत सुंदर प्रस्तुति

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  24. सारगर्भित लेखन बधाई

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  25. बहुत ही सुंदर और मार्मिक रचना

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  26. जीवन है.... कितने रंग दिखाती है. सुन्दर रचना.

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