प्यार नहीं मोहताज़ किसी दिन का
यह है एक अनवरत प्रवाह
मरुथल हो या गंगा का शीतल जल,
रहता है प्रेम अव्यक्त
नहीं मांगता कोई प्रतिदान,
चाहे न चलें लेकर हाथों में हाथ
पर दूर कब होता है साथ
सुख में या दुःख में,
मौन प्रयास सुगम बनाने का
रास्ता एक दूसरे का,
क्या ज़रुरत ऐसे प्यार को
इंतज़ार किसी एक दिन का.
...कैलाश शर्मा
बहुत सुंदर .
ReplyDeleteनई पोस्ट : दिल का मलाल क्या कहा जाए
Arthpoorn Baat
ReplyDeleteसुन्दर सार्थक प्रस्तुति...
ReplyDeleteप्रेम ही परमेश्वर है । सार्थक प्रस्तुति ।
ReplyDeleteसही कहा।
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (15-02-2015) को "कुछ गीत अधूरे रहने दो..." (चर्चा अंक-1890) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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पाश्चात्य प्रेमदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार...
Deleteसही बात...प्रेम दिवस पर बहुत सुंदर और सटीक रचना...
ReplyDeleteबस प्रेम होना चाहिये ।
ReplyDeleteसुंदर, अति सुंदर
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आप नें सर।बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत सुंदर ...नमस्ते भैया
ReplyDeleteबिलकुल सच कहा आपने ! सार्थक प्रस्तुति !
ReplyDeleteएकदम सही ! सुंदर रचना।
ReplyDelete~सादर शुभकामनाएँ
sahi baat ..pyaar ek din ka nhi hota :)
ReplyDeleteबस प्रेम होना चाहिये, किसी विशेष दिन नहीं बल्कि हर वक्त और हर दिन
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना। वैसे वेलेन्टाइन डे को भारत में प्रेम दिवस के रूप में मनाना चाहिए। वैसे भी इस देश में तो प्रेम ज़र्रे ज़र्रे में बसा है। इसका अंग्रेजी दिन का भारतीयकरण हो जाए तो क्या कहने।
ReplyDeleteमैं आपसे सहमत हूँ । आपके विचार वरेण्य है ।
DeletePrem mohtaj nahi kisi din vishesh ka.
ReplyDeletePrem mohtaj nahi kisi din vishesh ka.
ReplyDeleteप्यार को किसी एक दिन सीमित कर हम उसे व्यावसायिक जामा पहना रहे हैं... अच्छा प्रश्न , सुंदर कवितांकन
ReplyDeleteआज कल जहां तेज़ी का ज़माना है वहां एक दिन प्रेम को भी याद कर लें ... ऐसे ही कुछ लोगों के लिए है ये प्रेम दिवस ...
ReplyDeleteव्यवसाय का दिवस है यह..भला प्रेम को एक दिन में बाँधा जा सकता है? सुन्दर रचना.
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