Sunday, July 19, 2015

यादें

कैसा था ज़ुनून
दूर होने का तुम्हारी यादों से,
दफ़ना दिए सब ख़्वाब
कुचल दिया वह दिल
जिसमें बसाया तुम्हें,
खरोंच दी परतें ज़िस्म से
पर फ़िर भी रही बाक़ी
चुभन तेरी छुवन की,
अहसास तेरे होने का
रोम रोम में ज़िस्म के।


शायद घुल गयी तेरी यादें
बूँद बूँद में लहू के
देतीं पल पल दर्द
तेरे न होने पर भी अहसास होने का,
ढोना ही होगा ताउम्र
यह बोझ तेरी यादों का।

...कैलाश शर्मा 

20 comments:

  1. इन यादों को उखाड़ फैंकना आसान नहीं होता ... जिंदगी दूसरी जन्म लेनी होती है ....

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  2. यादें कहाँ पीछा छोड़ती हैं ! इन्हें बोझ ना समझिए ये ही तो हैं सच्ची हमसफर जो जीवन भर हर मोड़ पर साथ रहती हैं ! सुन्दर रचना !

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  3. सुंदर भावाभिव्यक्ति

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  4. सुन्दर भाव पिरोये है . बधाई

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  5. बेहद सुन्दर..बधाई आपको

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  6. बहुत सुन्दर भाव..आभार

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  7. भावपूर्ण रचना...कुछ यादों का बोझ नहीं होता वे तो फूल सी हल्की होती हैं...उड़ा ले जाती हैं मन को पंछी सा मुक्त आकाश में उड़ने को..

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  8. खरोंच दी परतें ज़िस्म से
    पर फ़िर भी रही बाक़ी
    चुभन तेरी छुवन की,
    अहसास तेरे होने का
    रोम रोम में ज़िस्म के।

    यादें इतनी जल्दी कहाँ दूर होती हैं हमसे भले जिस्म की परतें परतें निकाल डालो ! बहुत ही सुन्दर काव्य लिखा है आपने आदरणीय शर्मा जी !!

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  9. बहुत भावपूर्ण रचना ...
    यादों को यूँ याद ही रहने दो
    दिल में उसे आबाद ही रहने दो

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  10. यादों को नोंच फेकनें की बेचैनी इस बात का सबूत है कि चाहत कितनीं गहरी है।मुश्किल है यादों को खत्म करना।इसी कश्मकश से भाव जब अँगड़ाई लेते हैं तो बनती है शर्मा जी की खूबसूरत कविता।बेहतरीन कविता शर्मा जी। बहुत खूब।

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  11. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21-07-2015) को "कौवा मोती खायेगा...?" (चर्चा अंक-2043) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  12. बूँद बूँद में लहू के
    देतीं पल पल दर्द
    सुंदर अभिव्यक्ति कैलाश जी , यादें ऐसी ही होती हैं , पर इनसे मुक्ति भी तो कहाँ है

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  13. कुछ यादें तो बोझ लगती हैं पर साथ ही अच्छी यादें एक संतुलन बैठाती हैं
    पर इनसे दूर जाना किसी के बस में नहीं
    आभार

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  14. यादों की पंखुडि़यां कभी कुम्हलाती नहीं।
    अनुभूतियों से तादात्म्य स्थापित करती अच्छी कविता ।

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  15. भली-बुरी कुछ यादें जीवन में कभी नहीं भुलाये जाती

    बहुत सुन्दर ...

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  16. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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  17. बूँद बूँद में लहू के
    देतीं पल पल दर्द
    ......... सुंदर अभिव्यक्ति कैलाश जी

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