कैसा था ज़ुनून
दूर होने का तुम्हारी यादों से,
दफ़ना दिए सब ख़्वाब
कुचल दिया वह दिल
जिसमें बसाया तुम्हें,
खरोंच दी परतें ज़िस्म से
पर फ़िर भी रही बाक़ी
चुभन तेरी छुवन की,
अहसास तेरे होने का
रोम रोम में ज़िस्म के।
दूर होने का तुम्हारी यादों से,
दफ़ना दिए सब ख़्वाब
कुचल दिया वह दिल
जिसमें बसाया तुम्हें,
खरोंच दी परतें ज़िस्म से
पर फ़िर भी रही बाक़ी
चुभन तेरी छुवन की,
अहसास तेरे होने का
रोम रोम में ज़िस्म के।
शायद घुल गयी तेरी यादें
बूँद बूँद में लहू के
देतीं पल पल दर्द
तेरे न होने पर भी अहसास होने का,
ढोना ही होगा ताउम्र
यह बोझ तेरी यादों का।
बूँद बूँद में लहू के
देतीं पल पल दर्द
तेरे न होने पर भी अहसास होने का,
ढोना ही होगा ताउम्र
यह बोझ तेरी यादों का।
...कैलाश शर्मा
आभार..
ReplyDeleteइन यादों को उखाड़ फैंकना आसान नहीं होता ... जिंदगी दूसरी जन्म लेनी होती है ....
ReplyDeleteयादें कहाँ पीछा छोड़ती हैं ! इन्हें बोझ ना समझिए ये ही तो हैं सच्ची हमसफर जो जीवन भर हर मोड़ पर साथ रहती हैं ! सुन्दर रचना !
ReplyDeleteसुंदर ।
ReplyDeleteसुंदर भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteसुन्दर भाव पिरोये है . बधाई
ReplyDeleteबेहद सुन्दर..बधाई आपको
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव..आभार
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना...कुछ यादों का बोझ नहीं होता वे तो फूल सी हल्की होती हैं...उड़ा ले जाती हैं मन को पंछी सा मुक्त आकाश में उड़ने को..
ReplyDeleteखरोंच दी परतें ज़िस्म से
ReplyDeleteपर फ़िर भी रही बाक़ी
चुभन तेरी छुवन की,
अहसास तेरे होने का
रोम रोम में ज़िस्म के।
यादें इतनी जल्दी कहाँ दूर होती हैं हमसे भले जिस्म की परतें परतें निकाल डालो ! बहुत ही सुन्दर काव्य लिखा है आपने आदरणीय शर्मा जी !!
बहुत भावपूर्ण रचना ...
ReplyDeleteयादों को यूँ याद ही रहने दो
दिल में उसे आबाद ही रहने दो
यादों को नोंच फेकनें की बेचैनी इस बात का सबूत है कि चाहत कितनीं गहरी है।मुश्किल है यादों को खत्म करना।इसी कश्मकश से भाव जब अँगड़ाई लेते हैं तो बनती है शर्मा जी की खूबसूरत कविता।बेहतरीन कविता शर्मा जी। बहुत खूब।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21-07-2015) को "कौवा मोती खायेगा...?" (चर्चा अंक-2043) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार...
Deleteबूँद बूँद में लहू के
ReplyDeleteदेतीं पल पल दर्द
सुंदर अभिव्यक्ति कैलाश जी , यादें ऐसी ही होती हैं , पर इनसे मुक्ति भी तो कहाँ है
कुछ यादें तो बोझ लगती हैं पर साथ ही अच्छी यादें एक संतुलन बैठाती हैं
ReplyDeleteपर इनसे दूर जाना किसी के बस में नहीं
आभार
यादों की पंखुडि़यां कभी कुम्हलाती नहीं।
ReplyDeleteअनुभूतियों से तादात्म्य स्थापित करती अच्छी कविता ।
भली-बुरी कुछ यादें जीवन में कभी नहीं भुलाये जाती
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबूँद बूँद में लहू के
ReplyDeleteदेतीं पल पल दर्द
......... सुंदर अभिव्यक्ति कैलाश जी